विशेष समन्वयक टोर वैनेसलैंड ने गुरूवार को सुरक्षा परिषद की बैठक को सम्बोधित करते हुए सभी पक्षों से आग्रह किया कि ऐसे किसी भी क़दम से परहेज़ बरतना होगा, जिससे परिस्थितियाँ और बिगड़ने का जोखिम हो.
उन्होंने कहा कि ग़ाज़ा में तबाही लाने वाले हिंसक टकराव के साथ, क़ाबिज़ पश्चिमी तट में भी हर दिन हिंसा हो रही है.
यूएन दूत ने सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 2334 (2016) को लागू किए जाने के विषय में सदस्य देशों को जानकारी दी, जिसके तहत क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़े में, इसराइल द्वारा बस्तियाँ बसाए जाने पर रोक लगाने की मांग की गई है.
“इसके बावजूद, बस्तियाँ बसाए जाने की गतिविधियाँ जारी रही हैं.”
इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र की एक नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, 11 जून से 11 सितम्बर की अवधि में, पूर्वी येरूशेलम समेत क़ाबिज़ पश्चिमी तट में साढ़े हज़ार से अधिक आवासीय इकाइयों को स्वीकृति दी गई या उन पर काम को आगे बढ़ाया गया.
इसके अलावा, ऐसी बस्तियों में एक हज़ार से अधिक आवासों के निर्माण के लिए निविदाओं को आमंत्रित किया गया है.
उधर, इसराइली सैन्य बलों ने 18 जुलाई को एक आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें ओस्लो समझौतों को अमल में लाने वाले आदेश में संशोधन किया गया है. इसराइल और फ़लस्तीन के बीच सीधे तौर पर यह पहला शान्ति समझौता था.
इस क़दम से, इसराइल में स्थानीय सैन्य कमांडर के पास पश्चिमी तट के कुछ इलाक़ों में निर्माण गतिविधियों के लिए अधिकार मिल गए हैं. इन्हें पहले फ़लस्तीनी प्राधिकरण को हस्तांतरित कर दिया गया था.
ध्वस्तीकरण व बेदख़ली
इस बीच, फ़लस्तीनियों के स्वामित्व वाले ढाँचों को ढहाए व उन्हें ज़ब्त किए जाने की गतिविधि जारी हैं.
इसराइली अनुमति ना होने का हवाला देकर, फ़लस्तीनी आबादी के 373 ढाँचों को ध्वस्त, ज़ब्त किया गया है और जबरन बेदख़ली से 553 लोग विस्थापित हुए हैं जिनमें 247 बच्चे हैं. विशेष समन्वयक ने बताया कि इसराइल द्वारा पूर्वी येरूशेलम में फ़लस्तीनियों को उनके घर से निकाला जा रहा है.
अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय ने 19 जुलाई इस विषय में अपनी राय प्रस्तुत की थी कि इसराइली बस्तियाँ, अन्तरराष्ट्रीय क़ानून का उल्लंघन हैं और ऐसी नई गतिविधियों पर रोक लगाई जानी होगी.
साथ ही, कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़े में इसराइल की उपस्थिति, ग़ैरक़ानूनी है और जल्द से जल्द इसका अन्त किया जाना होगा.