यूएन महासभा प्रमुख ने मंगलवार को 193 सदस्य देशों वाली जनरल असेम्बली को सम्बोधित करते हुए दो-राष्ट्र समाधान की अहमियत को दोहराया और कहा कि स्थाई शान्ति की ओर जाने वाला यह एकमात्र रास्ता है.
“एक वर्ष से अधिक के युद्ध और पीड़ा के बाद, इस दृष्टि को साकार करना पहले के किसी दौर की तुलना में कहीं अधिक अहम हो गया है.”
फ़िलेमॉन यैंग ने ध्यान दिलाया कि दो-राष्ट्र समाधान को पहली बार, 77 वर्ष पहले यूएन महासभा में पारित हुए प्रस्ताव 181 के ज़रिये प्रस्तुत किया गया था, मगर अब भी यह पहुँच से दूर है.
महासभा अध्यक्ष ने कहा कि फ़लस्तीन को एक स्वतंत्र राष्ट्र का दर्जा नकारे जाने से हिंसा व हताशा बढ़ती है, जबकि दो-राष्ट्र समाधान राजनैतिक फ़्रेमवर्क के नज़रिये से ज़रूरी और नैतिक अनिवार्यता है.
“यह फ़लस्तीनियों के स्व-निर्धारण के अधिकार को सुनिश्चित करता है और इसराइल की दीर्घकालिक सुरक्षा की हिफ़ाज़त भी. इस तरह से, दोनों पक्षों के पास समान अधिकारों व मानव गरिमा के साथ जीने का अवसर होगा.”
लेबनान में युद्धविराम, एक अहम क़दम
उन्होंने लेबनान में इसराइल और हिज़बुल्ला के बीच हुए युद्धविराम का स्वागत किया, जहाँ पिछले एक वर्ष में हिंसक टकराव के दौरान हज़ारों लोग हताहत हुए हैं और व्यापक पैमाने पर विध्वंस व विस्थापन हुआ है.
महासभा प्रमुख ने इस समझौते को साकार करने में शामिल पक्षों की सराहना की और सभी पक्षों से युद्धविराम और सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1701 का पालन करने का आग्रह किया.
“यह युद्धविराम टकराव में कमी लाने और स्थिरता की ओर लौटने की दिशा में एक अहम क़दम है.”
ग़ाज़ा में युद्धविराम की मांग
महासभा अध्यक्ष ने ग़ाज़ा में गम्भीर हालात पर चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा कि वहाँ तत्काल युद्धविराम लागू करने और सभी बन्धकों की बिना शर्त रिहाई की आवश्यकता है.
उन्होंने क्षोभ जताया कि हिंसक टकराव में हज़ारों लोगों की जान गई है, भयावह हालात हैं, लाखों विस्थापित हैं और नागरिक प्रतिष्ठान व बुनियादी ढाँचा बर्बाद हो चुका है.
फ़िलेमॉन यैंग के अनुसार, मौजूदा टकराव का अन्त किया जाना ज़रूरी है. “यह हमारे हाथ में है और अब इसमें और देरी नहीं की जा सकती है.”
उन्होंने सभी पक्षों से आग्रह किया कि विनाशकारी हालात से जूझ रही ज़रूरतमन्द आबादी तक बेरोकटोक मानवीय सहायता पहुँचाने की अनुमति दी जानी होगी.