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भारत: सामुदायिक सहभागिता के ज़रिए ज़िन्दगियाँ बदलने की मुहिम

तमिलनाडु के रामानन्थपुरम ज़िले के कामुथी तालुका में स्थित पकुवेट्टी, ज़िले के दो आकाँक्षी गाँवों में से एक है. इस गाँव के लोगों की आजीविका का मुख्य स्रोत है, गाँव के इर्द-गिर्द उगने वाले विलायती कीकर (Prosopis Juliflora) की झाड़ियाँ काटकर, लकड़ी का कोयला तैयार करना.

क्या थी समस्या

खेती केवल बारिश के मौसम में होती है, और इस दौरान वर्षा भी बहुत कम होती है. इससे अन्य कामकाज के लिए भी पानी की कमी का सामना करना पड़ता है और पीने के पानी की क़िल्लत बनी रहती है. 

कभी-कभी तो हालात इतने दूभर हो जाते हैं कि गाँववालों को घड़ों में पानी लाने के लिए बैलगाड़ियों या फिर पैदल ही दो किलोमीटर दूर तक का सफ़र करना पड़ता है.

अभी तक, गाँव में पानी की आपूर्ति, स्थानीय तालाब से होती थी. इसी पानी को पीने, साफ़-सफ़ाई, खाना पकाने व कपड़े धोने के लिए इस्तेमाल किया जाता था. 

जब तालाब सूख जाता था तो लोगों को निजी टैंकरों से 10 रूपए प्रति घड़े के हिसाब से गुणवत्तापूर्ण जल ख़रीदने के लिए मजबूर होना पड़ता था. जो परिवार इतनी क़ीमत चुकाने में असमर्थ थे, वहाँ महिलाओं को दिन में 5-6 घंटे मेहनत करके, पानी अपने सिर पर या बैलगाड़ियों में रखकर दूर से भरकर लाना पड़ता था.

गाँव के जल व स्वच्छता समूह की सदस्य वनीथा बताती हैं, “हमें हर रोज़ लकड़ी काटने के लिए जाना पड़ता है. अगर हम सुबह 8 बजे जाते हैं तो काम पूरा करके, शाम 6 बजे तक ही वापिस लौटते हैं.”

“उसके बाद हमें एक घंटे से अधिक का समय, तालाब से पानी लाने में लगता था, फिर खाना बनाना, बच्चों को भोजन खिलाना, उनकी पढ़ाई देखना – सारे काम में बहुत समय लग जाता था और महिलाओं के ऊपर बहुत बोझ था.”

UNOPS की पहल

इसी समस्या के निदान के लिए UNOPS ने ‘Sanitation First’ संस्था के साथ मिलकर, भारत सरकार के जल जीवन मिशन के तहत एक परियोजना शुरू की. इसमें रामनन्थपुरम व विरुधुनगर के आकाँक्षी ज़िलों में, मॉडल गाँवों बनाने का काम आरम्भ किया गया, जिनमें से एक गाँव पकुवेट्टी भी था.

UNOPS की टीम ने पाँच महिलाओं का समूह बनाकर, उन्हें परीक्षण किट का उपयोग करके, पानी की जाँच करने का प्रशिक्षण दिया. इसके बाद इसी टीम को एक विस्तृत चित्रित मैनुअल दिया, जिससे वो स्वयं ही जल के नमूनों का परीक्षण करने में समर्थ हो सकें.

जल परीक्षण समूह की सदस्य बॉमी राधा बताती हैं, “हमने प्रशिक्षण के बाद महीने में दो बार, पानी के नमूनों की जाँच करनी शुरू की. चित्रित मैनुअल और फ़ील्ड टेस्टिंग किट से मदद मिली. हम मैनुअल देखकर आसानी से परीक्षण कर लेते हैं. ”

UNOPS की टीम ने जल योजना के बारे में, ग्रामीणों के साथ बैठकें कीं, और ज़िला प्रशासन के सहयोग से, कावेरी नदी के पानी की आपूर्ति वाले एक निकटवर्ती स्रोत से पाइपलाइन निकाली, जिससे गाँव के टैंक में उस जल का भंडारण किया जा सके. लेकिन 2 किलोमीटर लम्बी पाइपलाइन द्वारा पानी खींचने से यह भंडारण टैंक अक्सर टूट जाता था.  

बदलाव की बयार

गाँववालों द्वारा बनाया गया, पकुवेट्टी गाँव का नक्शा.

UNOPS की टीम ने गाँव में पानी की समस्या को इलाक़े के अतिरिक्त कलैक्टर के सामने प्रस्तुत किया, और उन्होंने पकुवेट्टीगाँव के लोगों को विशेष ग्राम सभा में अपनी बात रखने का अवसर दिया. ग्रामीणों ने जीर्ण-शीर्ण जल टैंक को हटाकर नया टैंक स्थापित करने, पीना का साफ़ पानी सुनिश्चित करने और व्यक्तिगत शौचालयों का निर्माण करने की माँग सामने रखी.

गाँव के जल व स्वच्छता समूह की सदस्य वनीथा बताती हैं, “उन्होंने हमें गाँव का एक नक्शा बनाने को कहा, जिससे गाँव की स्थिति समझी जा सके. फिर हमने जल स्रोतों, स्कूल, आंगनवाड़ी, शौचालय, मंदिर और सब कुछ दिखाते हुए गाँव का नक्शा बनाया. इससे हमें समझ आया कि हमारे गाँव की प्राथमिकताएँ क्या हैं.”

नतीजतन, आज वहाँ एक नए ओवरहैड टैंक का निर्माण हो रहा है, साफ़ पानी के लिए जलों के स्रोत लगाए जा रहे हैं, और तालाब से गाद हटाई गई है, जिससे वो गर्मी के मौसम में भी पानी से भरा रहने लगा है.

ग्राम समूह की सदस्य गौरी बताती हैं, “हमने अपने निरीक्षण में पाइपों की स्थापना करवाई, जिससे कोई भी घर इससे वंचित न रह जाए. साथ ही, तालाब की साफ़-सफ़ाई का काम भी हमारे ज़िम्मे है. हम यह सुनिश्चित करते हैं कि जल स्रोतों का उपयोग सही प्रकार से होता रहे.”

UNOPS ने सामुदायिक सहभागिता के ज़रिए गाँव की तस्वीर ही बदल दी है.

इसके अलावा, UNOPS की टीम ने गाँव में 15 सदस्यों का एक जल एवं स्वच्छता समूह भी बनाया है, जिसके सदस्यों को विभिन्न प्रकार के प्रशिक्षण दिए जा रहे हैं.

साथ ही, लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए, सार्वजनिक स्थानों पर जल जीवन मिशन की विभिन्न गतिविधियों व सामुदायिक जल के कुँओं के निर्माण को दर्शाती पेंटिंग भी लगाई जा रही हैं.

UNOPS की इस परियोजना का ही असर है कि ग्रामीण, ख़ासतौर पर महिलाएँ, अब पीने के पानी, जल स्रोत के रखरखाव व सततता एवं साफ़-सफ़ाई की महत्ता को समझने लगी हैं और परिणामस्वरूप यह गाँव एक मॉडल गाँव में तब्दील हो चुका है.

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