भारत की राजधानी नई दिल्ली में नीति निर्माताओं और विभिन्न हितधारक समूहों के प्रतिनिधियों की यह बैठक, सितम्बर में यूएन मुख्यालय में आयोजित ‘भविष्य के शिखर सम्मेलन’ के बाद आयोजित की गई है.
भविष्य-सम्मेलन में विश्व नेताओं ने ‘भविष्य के लिए सहमति-पत्र’ को अपनाया, और साझा लक्ष्यों को हासिल करने तथा नई चुनौतियों से निपटने के लिए अन्तरराष्ट्रीय सहयोग पर बल दिया.
नई दिल्ली में तीन दिवसीय फ़ोरम के दौरान पाँच टिकाऊ विकास लक्ष्यों पर विशेष रूप से ध्यान केन्द्रित किया जाएगा: स्वास्थ्य एवं कल्याण (लक्ष्य 3), लैंगिक समानता (लक्ष्य 5), कामकाज एवं आर्थिक विकास (लक्ष्य 8), जल के नीचे स्थित जीवन (लक्ष्य 14), और साझेदारियाँ (लक्ष्य 17).
संयुक्त राष्ट्र की अवर महासचिव और एशिया और प्रशान्त के लिए आर्थिक और सामाजिक आयोग (ESCAP) की कार्यकारी सचिव, आर्मिडा सालसियाह अलिसजहबाना ने कहा, “हमें अपने स्वास्थ्य के लिए मौजूदा बहुआयामी चुनौतियों का समाधान ढूंढना चाहिए.”
“हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि महिलाओं व लड़कियों को आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक क्षेत्रों में समान अवसर मिलें और उनका सशक्तिकरण सम्भव हो.”
उन्होंने देशों से समावेशी और सतत विकास हासिल करने, उत्पादक रोज़गार उत्पन्न करने और सभी श्रमिकों को कामकाज का उचित माहौल दिए जाने के लिए नई प्रतिबद्धताएँ जताने का आह्वान किया.
अवर महासचिव ने कहा कि “दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम एशिया में युवजन की विशाल आबादी है, इसलिए युवाओं के लिए रोज़गार के अवसर पैदा करना बड़ी प्राथमिकता होगी.”
भारत सरकार के नीति आयोग के उपाध्यक्ष, सुमन बेरी ने कहा कि विकास प्रक्रिया की एक सम्पूर्ण झांकी प्रस्तुत करने के नज़रिये से टिकाऊ विकास लक्ष्य अहम हैं. इनसे क्षेत्रीय सहयोग व ज्ञान के आदान-प्रदान में भी मदद मिल सकती है.
संयुक्त राष्ट्र के रैज़िडेंट कोऑर्डिनेटर, शॉम्बी शार्प ने एसडीजी हासिल करने के लिए भारत के नेतृत्व को सराहते हुए, एसडीजी सूचकाँक प्रणाली समेत अन्य पहल का उल्लेख किया और दक्षिण-दक्षिण सहयोग में निहित अवसरों पर बल दिया.
दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम एशिया में, वैश्विक संकटों और प्राकृतिक आपदाओं से विशाल आबादी के प्रभावित होने के मद्देनज़र, एसडीजी की दिशा में प्रगति असमान रही है.
फ़ोरम में हिस्सा ले रहे प्रतिनिधि, मौजूदा प्रगति की समीक्षा करने के लिए एकत्रित हुए हैं. साथ ही, पर्यावरण एवं जल निकायों के संरक्षण, अनौपचारिक रोज़गार की व्यापकता एवं लिंग व युवा रोज़गार में पसरी खाई जैसे मुद्दों पर ठोस सिफ़ारिशें विकसित की जाएंगी.