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भारत: विस्थापन से सपने साकार करने तक का सफ़र

भारत: विस्थापन से सपने साकार करने तक का सफ़र

श्रीलंका से आए गौरी स्वरन, भारत के तमिलनाडु प्रदेश में शरणार्थी हैं. कम्प्यूटर पर कैमरे का चिह्न देखकर, फ़ोटोग्राफ़र बनने के लिए प्रेरित हुए गौरी, अपनी अभूतपूर्व दास्तान सुनाते हुए कहते हैं, “बुरे से बुरे समय में भी मैंने हार नहीं मानी. अधिक सीखने की मेरी दृढ़ता और दिलचस्पी ने मुझे आगे बढ़ने की शक्ति दी.”  

2006 में गौरी स्वरन श्रीलंका में गृहयुद्ध से बचकर, अपने परिवार समेत भागकर भारत आ गए थे. उस समय उनकी उम्र केवल 16 साल थी. जब उनका भाई मौन विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने के लिए क़ानून प्रवर्तन एजेंसियों की जाँच के घेरे में आ गया, तो उनके परिवार ने तुरन्त देश छोड़ने का फ़ैसला लिया. अपना सब-कुछ छोड़कर, श्रीलंका के मन्नार से एक नाव में ख़तरनाक समुद्री यात्रा करके, उनका परिवार भारत के रामानन्थपुरम पहुँचा.

वो बताते हैं, “शरणार्थी शिविर में हमारी कल्पना के विपरीत जीवन बहुत मुश्किल था. मुझे अपनी शिक्षा छोड़नी पड़ी क्योंकि यहाँ के स्कूल बहुत अलग थे और मैं उनसे तालमेल नहीं बैठा पाया. तो अपने भाई की कॉलेज की पढ़ाई में मदद करने के लिए मैंने दिहाड़ी पर काम करना शुरू कर दिया.

चुनौतियाँ अनेक

विस्थापन से सपने साकार करने तक का गौरी का सफ़र चुनौतीपूर्ण रहा, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी.

विस्थापन से सपने साकार करने तक का गौरी का सफ़र चुनौतीपूर्ण रहा, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी.

मंडपम शिविर पहुँचने पर, गौरी को अनगिनत चुनौतियों का सामना करना पड़ा. वो बताते हैं, “एक शरणार्थी के रूप में शिविर में ज़िन्दगी बहुत मुश्किल भरी थी. सबसे अधिक कठिनाई थी, स्कूलों में दाख़िला मिलने की.”

शिक्षा व्यवस्था भिन्न होने और पहले की पढ़ाई के प्रमाण पत्र न होने के कारण, उन्हें छोटी कक्षाओं में दाख़िला लेना पड़ा. भाग्यवश, उनके परिवार का दूसरा बेटा अपना स्कूली पढ़ाई पूरा करने का प्रमाण पत्र साथ ले आया था, जिससे उसे उच्च शिक्षा के लिए दाख़िला लेने में आसानी हो गई.

वो याद करते हुए बताते हैं, “हमने उसकी पढ़ाई को प्राथमिकता दी. लेकिन उसकी बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ी – उसकी फ़ीस भरने के लिए माँ को अपने गहने बेचने पड़े, तथा मैं और मेरे बड़े भाई को परिवार के भरण-पोषण के लिए दिहाड़ी पर काम करना पड़ा.”

इन मुश्किलों के बावजूद, गौरी ने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा. श्रीलंका में हासिल कम्प्यूटर की शिक्षा व तमिल भाषा की टाइपिंग का उनका कौशल काम आया. “मुझे आज भी याद है, जब मैं पहली बार मंडपम शरणार्थी शिविर के फ़ोटो स्टूडियो में आया था, जहाँ मुझे Adobe Photoshop देखने को मिला था. फ़ोटोग्राफ़र ने मुझे फ़ोटो एडिटिंग के लिए अपना कम्प्यूटर इस्तेमाल करने दिया था.” 

गौरी का कहना है कि यही वो पहला क़दम था, जिसने उन्हें अपने सपने साकार करने की दिशा सुझाई.

उन्होंने बहुत मेहनत से काम करते हुए, अपने दैनिक भत्ते से धन बचाते हुए, इंटरनेट सेंटर जाकर, यू ट्यूब ट्यूटोरियल के ज़रिए, ख़ुद ही Adobe Photoshop सीखना आरम्भ कर दिया.

फिर कुछ समय बाद, अन्य श्रीलंकाई शरणार्थियों व रिश्तेदारों की मदद से अपना ख़ुद का कम्प्यूटर और कैमरा ख़रीद लिया. ख़ास बात यह है कि एक प्रेरक से एक मास्टर फ़ोटोग्राफ़र बनने तक का यह सफ़र, गौरी ने ख़ुद सीखकर तय किया.  

प्रगति के अवसर

वर्तमान में, वो चेन्नई में एक फ़्रीलांस फ़ोटोग्राफ़र के रूप में काम करते हुए, विभिन्न आयोजनों में फोटो खींचने का काम करते हैं, जिनमें फ़िल्मों की परदे के पीछे की फोटो व फ़ैशन फ़ोटोग्राफ़ी भी शामिल है.

हाल ही में उन्होंने एक तमिल फ़ीचर फ़िल्म के लिए परदे के पीछे के चित्र खींचे हैं, “अब मेरी एक साल की एक बेटी है. मैं अपना काम जमाकर, फ़ोटोग्राफ़ी के ज़रिए ही अपने परिवार का पालन-पोषण करना चाहता हूँ. मैं अभी भी नए कौशल सीख रहा हूँ. हाल ही में मुझे तमिल फीचर फ़िल्म ‘सेयोरी’ के निर्माण के समय की तस्वीरें खींचने का मौक़ा मिला.”  

गौरी अब, भारत के चेन्नई शहर में एक फ्रीलाँस फ़ोटोग्राफ़र के रूप में काम करते हैं.

आज, गौरी फ़ोटोग्राफ़ी में बड़ा मुक़ाम हासिल करने का सपना देखते हैं, न केवल अपने जीवन यापन के लिए, बल्कि अपना शौक़ पूरा करने के लिए भी. वो उन समुदाय आधारित संगठनों के समर्थन के लिए आभारी हैं, जिन्होंने यह सपना पूरा करने में उनकी सहयाता की, जिससे उनके परिवार के लिए एक उज्जवल भविष्य का रास्ता प्रशस्त हो सका.

उनका यह सफ़र अन्य शरणार्थियों को, कठिनाइयों में भी हिम्मत नहीं हारने की प्रेरणा देता है.  

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