“जब मन ख़ुश होता है, तो मुझे बहुत सारे सुखद विचार आते हैं. कभी-कभी, मुझे लगता है कि मैं अपनी बात खुलकर कह सकती हूँ और अपनी ख़ुशी दुनिया के साथ बाँट सकती हूँ.”
ललिता (पहचान गुप्त रखने के लिए नाम बदल दिया गया है), छत्तीसगढ़ के दन्तेवाड़ा ज़िले में स्थित एक आदिवासी आवासीय संस्थान में रहने वाले लगभग 2 लाख बच्चों में से एक हैं.
छत्तीसगढ़ की आबादी लगभग 2 करोड़ 60 लाख है, जिसमें बड़ी संख्या में ग्रामीण और विविध आदिवासी समुदाय शामिल हैं. प्रदेश की कुल आबादी में 41 प्रतिशत संख्या, 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों की है.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5) के अनुसार, 5.6% बच्चे अपने माता-पिता में से एक या दोनों को खो चुके हैं.
स्कूलों में नामांकन की दर तो अधिक है, लेकिन केवल 61% बच्चे ही उच्च माध्यमिक शिक्षा पूरी कर पाते हैं, वहीं 15 से 19 वर्ष की 3% लड़कियाँ, कम उम्र में ही मातृत्व का बोझ उठाने को मजबूर होती हैं.
ऐसे में छत्तीसगढ़ सरकार ने बच्चों को बेहतर शिक्षा और रोज़गार के अवसर देने की आवश्यकता को पहचानते हुए, आदिवासी आवासीय संस्थानों की स्थापना की है.
इन संस्थानों में, ख़ासतौर पर दूर-दराज़ के क्षेत्रों के बच्चों को सकारात्मक माहौल मुहैया कराया जाता है. यहाँ उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और करियर विकास के अवसर मिलते हैं, जिससे वे अपना भविष्य उज्ज्वल बना सकें.
चूँकि ये संस्थान आवासीय शिक्षण कार्यक्रम के रूप में कार्य करते हैं, इसलिए बच्चों को अपने परिवारों से दूर रहना पड़ता है. यह उनके लिए एक बिल्कुल नया अनुभव होता है. कुछ बच्चों ने जहाँ अपने नए परिवेश को अपनाया, वहीं कई बच्चे अपने घर-परिवार को याद करते हैं.

आस्था गुरुकुल के अधीक्षक ओनेश्वर झाड़ी बताते हैं, “यहाँ मानसिक स्वास्थ्य परामर्श की सुविधा मुहैया करवाना बहुत ज़रूरी होता है क्योंकि ये बच्चे दूर-दराज़ के गाँवों से आते हैं और अपने माता-पिता को बहुत याद करते हैं. कभी-कभी, वे रात में अपने घर की याद में बहुत रोते हैं. यहाँ तक कि स्कूल में किसी प्रकार की कठिनाई होने पर वो वापस घर भागने की कोशिश करते हैं.”
मन्थन परियोजना
प्रदेश सरकार ने, इस स्थिति के मद्देनज़र मन्थन परियोजना की स्थापना की. 2020 से, यह पहल जनजातीय और अनुसूचित जाति विभाग, छत्तीसगढ़ सरकार और भारत में यूनीसेफ़ के सहयोग से शुरू की गई.
इस पहल के ज़रिए, मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों को बस्तर क्षेत्र के छह ज़िलों—कांकेर, कोंडागाँव, नारायणपुर, बस्तर, दन्तेवाड़ा और सुकमा—में स्थित आवासीय संस्थानों से जोड़ा गया.
पहल के तहत, अधीक्षकों को तकनीकी प्रशिक्षण दिया गया ताकि वे बच्चों के लिए अभिभावक की भूमिका निभा सकें और उनकी शिक्षा, तथा शारीरिक, मानसिक व सामाजिक कल्याण सुनिश्चित कर सकें.
मनोसामाजिक समर्थन
इसके अलावा, उनकी ज़रूरतों को बेहतर ढंग से समझने व हर बच्चे को पर्याप्त समय एवं मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए, सभी संस्थानों में बच्चों के साथ सामूहिक सत्र आयोजित किए गए.
इसके लिए महिला एवं बाल विकास विभाग को क्षमता निर्माण और मनोसामाजिक समूह सत्रों से सहायता प्रदान की गई.

ज़िला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (DMHP) को अधिक सशक्त बनाया गया.
इस पहल के तहत बाह्य रोगी विभागों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराई गईं और विभिन्न क्षेत्रों में जन-जागरूकता गतिविधियों का आयोजन किया गया.
एसटी गर्ल्स हॉस्टल की अधीक्षक रोचिका देशमुख ने कहा, “हम बच्चों के लिए कई तरह के सत्र और गतिविधियाँ आयोजित करते हैं. हम उन्हें सांस लेने की तकनीक और हाथों की व्यायाम विधियाँ सिखाते हैं, जो उनके लिए काफ़ी लाभदायक हैं.”
“इसके अलावा, हम सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन कर रहे हैं, जिससे बच्चों की झिझक कम हो और वे अपने मूल्यों को आत्मविश्वास के साथ व्यक्त कर सकें.”
परियोजना मन्थन का उद्देश्य, आवासीय संस्थानों में बच्चों के लिए एक सहायक और पोषणीय वातावरण तैयार करना है. यह पहल मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने, मानसिक समस्याओं की शुरुआती पहचान करने और आवश्यक सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने पर केन्द्रित है.
इसके परिणामस्वरूप, यह बच्चों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव डाल रही है.

