भारत के पश्चिमी तट के एक प्रमुख बंदरगाह, कोच्चि को “अरब सागर की रानी” के रूप में जाना जाता है. नदियों, संकरी खाड़ियों और नहरों का घना नैटवर्क, एक समय इस शहर की जीवन रेखा हुआ करता था.
जलमार्ग, लोगों व सामान की आवाजाही का ज़रिया थे, दैनिक उपयोग के लिए जल प्रदान करते थे, और मानसून के तूफ़ानी पानी का रिसाव वापिस समुद्र में करते थे.
लेकिन हाल के दशकों में तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण के बीच, कई जलमार्ग या तो उपेक्षित रह गए हैं, या अनियोजित.
जलमार्गों पर इमारतों और पुलों के अतिक्रमण से जल प्रवाह बाधित हो रहा है. अशोधित (untreated) कचरे से पानी प्रदूषित हो गया है और मछलियों व पक्षियों की जगह, मच्छरों या ऐसे पौधों ने ले ली है जोकि तेज़ी से फैलते हैं और पर्यावरण व मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं.
जलवायु परिवर्तन की वजह से ये समस्याएँ और बढ़ रही हैं: समुद्री जलस्तर में वृद्धि, अत्यधिक बारिश और तेज़, उफ़नती लहरों से, छह लाख की आबादी वाले इस शहर में बाढ़ का जोखिम बढ़ गया है.
नवीन पहल
कोच्चि में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) द्वारा समर्थित, स्थानीय अधिकारियों की एक पहल के तहत, अब शहर के जलमार्गों को बहाल करने की कोशिशें की जा रही हैं. इस परियोजना ने शहर के निवासियों को ऐसी स्वच्छ नहरें देखने का सपना दिया है, जिसमें शायद तैराक़ी करना भी सम्भव हो.
दुनिया भर के शहरी क्षेत्रों में पर्यावरण चुनौतियों के समाधान के लिए, प्रकृति-आधारित समाधानों को बढ़ावा दिया जा रहा है. इसी सिलसिले में यह परियोजना, UNEP के Generation Restoration Cities initiative नामक पहल का हिस्सा है.

UNEP के जलवायु परिवर्तन प्रभाग में अनुकूलन एवं सहनसक्षमता शाखा की प्रमुख, मिरेय अताल्लाह ने बताया कि, “कोच्चि की स्थिर, निर्जीव नहरें, हमारे दौर के तीन बड़े पर्यावरण संकटों का प्रतीक हैं: जलवायु परिवर्तन, प्रकृति की हानि और प्रदूषण.”
“उन्हें पुनर्जीवित करने से अस्तित्व पर मंडराते इन ख़तरों से शहर की रक्षा होगी और इसके निवासियों को एक बेहतर शहर व एक सुरक्षित भविष्य हासिल होगा.”
UNEP और कोच्चि नगर निगम ने, पुनर्बहाली अभियान की शुरूआत, थेवारा-पेरंडूर नहर, यानि टीपी नहर से की, जोकि शहर के मुख्य व्यवसायिक इलाक़े और घनी आबादी वाले आवासीय क्षेत्रों से होकर लगभग 10 किलोमीटर क्षेत्र में बहती है.
पिछले कई वर्षों से, विशेषज्ञ और अधिकारी, टीपी नहर को पुनर्जीवित करने के तरीक़ों पर चर्चा करते रहे हैं. नहर व इसके पारिस्थितिकी तंत्र को अन्य जलमार्गों से दोबारा जोड़ने, जैव विविधता बढ़ाने के लिए इसके किनारों पर बेहतर व्यवस्था करने और सीवेज एवं कचरा प्रबन्धन में निवेश बढ़ाने की सिफ़ारिशें भी की गईं.
हर साल मॉनसून के मौसम के दौरान अधिकारी, निचले इलाक़ों में बाढ़ के पानी को कम करने के लिए नहरों की खुदाई करते हैं. लेकिन सार्वजनिक और राजनैतिक समर्थन की कमी के कारण, अधिक महत्वाकाँक्षी समाधानों पर पूरी तरह काम नहीं हो पाया.

पुनर्बहाली के उपाय
नवीन परियोजना और नए सिरे से किए जा रहे प्रयासों के तहत, स्थानीय निवासियों एवं अधिकारियों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए नहरों की पुनर्बहाली का महत्व समझाने के प्रयास किए जा रहे हैं. नहरों को पुनर्जीवित करने से मॉनसून के मौसम में शहर में जल-भराव की स्थिति से निपटने में मदद मिलेगी.
नहरों के किनारे पेड़ लगाने से हरित गलियारे बनेंगे, जिससे जलवायु परिवर्तन के कारण अत्यधिक गर्मी को कम करने में मदद मिलेगी.
पिछले साल 5 जून को, विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर एक फ़ोटो प्रतियोगिता आयोजित की गई, जिसके ज़रिये स्थानीय निवासियों को अतीत में नहरों की समृद्धि याद दिलाई गई.
इसमें लगभग 400 स्कूली छात्रों ने नहर को पुनर्बहाल करने के तरीक़ों की कल्पना करने के लिए चित्रण एवं निबंध लेखन प्रतियोगिताओं में भाग लिया. इसके अलावा, शहर के एक पार्क में एक प्रदर्शनी लगाकर नहर की दर्जनों ऐतिहासिक व वर्तमान तस्वीरें प्रस्तुत की गईं.
धरोहर, पर्यावरण व विकास केन्द्र के निदेशक राजन चेदम्बथ ने बताया, “हमने प्रदर्शनी में लोगों से पूछा कि क्या वे नहर में तैरना चाहेंगे. उन सभी ने हाँ में उत्तर दिया. लेकिन उन्होंने यह भी कहा: ‘अभी नहीं, केवल तभी, जब पानी फिर से साफ़ हो जाए!”

राजन चेदम्बथ कहते हैं कि वरिष्ठ नागरिकों ने उन्हें बताया कि किस तरह एक समय यह नहर स्वच्छ, बहते पानी का स्रोत हुआ करती थी, और लोग खाना पकाने व कपड़े धोने के लिए इसका उपयोग करते थे.
नहर के ज़रिये, ‘वंचिस’ के नाम से जाने जानी वाली छोटी पारम्परिक नावों से, शहर भर में सामग्री का परिवहन किया जाता था. साथ ही, मछुआरों के जीवन-व्यापन के लिए इसमें पर्याप्त मछलियाँ भी हुआ करती थीं.
राजन चेदम्बथ के अनुसार, “अब इन बातों की कल्पना करना भी मुश्किल है. लेकिन हमें विश्वास है कि नहर को पुनर्जीवित करने के लिए, मज़बूत सार्वजनिक समर्थन मौजूद है.”
परियोजना के कर्मचारी, अभी तक हुई चर्चाओं से मिली सिफ़ारिशों को एक कार्यान्वयन योजना में शामिल कर रहे हैं जो प्रमुख हितधारकों और सम्भावित निवेशकों के सामने प्रस्तुत की जाएगी.
परियोजना के लिए, यूनेप नवाचारी उपाय भी अपना रहा है जिससे शहरों के पर्यावरणीय एवं जनसंख्या सम्बन्धी डेटा की मदद से प्रकृति-आधारित समाधानों का विस्तार करने में मदद मिलेगी.
“कुछ साल पहले तक, कोई भी नहरों के महत्व को नहीं समझता था. लेकिन नहर के आसपास लगातार बाढ़ के पानी बढ़ने व अन्य समस्याओं से, लोग एवं राजनैतिक नेता अब इस मुद्दे को गम्भीरता से लेने लगे हैं. लोगों ने महसूस किया है कि नहरों की हालत, सीधे तौर पर शहर की हर एक जगह व जीवन को प्रभावित करती है, यहाँ तक कि शायद इसके भविष्य व अस्तित्व को भी.”

इस लेख का विस्तृत संस्करण पहले यहाँ प्रकाशित हुआ.
