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भारत: एसडीजी की ख़ातिर ‘मेक-ब्रेक-क्रिएट’ कार्यक्रम

सामाजिक उद्यमिता से प्रेरित नवाचार, टिकाऊ विकास लक्ष्यों (SDG) को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इसके ज़रिए लोग लक्षित, संदर्भ-विशिष्ट और टिकाऊ समाधानों के साथ गम्भीर सामाजिक चुनौतियों का समाधान करने के लिए मज़बूत बनते हैं.

भारत में 2016 में, Makers Asylum नामक संस्था के नेतृत्व में इंडो-फ़्रेंच सहयोग से एसडीजी स्कूल की स्थापना की गई थी. संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) इसमें, वर्ष 2021 से एक अहम भागीदार रहा है. आज तक, इस कार्यक्रम से 40 से अधिक देशों में 3 हज़ार से अधिक युवजन को लाभ सम्भव हुआ है.

भारत का एसडीजी स्कूल, विविध पृष्ठभूमि के व्यक्तियों को एसडीजी हासिल करने के अभिनव समाधान विकसित करने के लिए एक अनूठा मंच प्रदान करता है. 

प्रतिभागी, परस्पर सहयोग के ज़रिए वैश्विक मुद्दों से निपटने और अपने समुदायों के भीतर सार्थक प्रभाव लाने के लिए रचनात्मक रास्ते, विशेष रूप से मितव्ययी नवाचार तलाशते हैं.

प्रतिभागियों को विभिन्न समूहों में बाँटकर, एसडीजी से सम्बन्धित समस्याओं के समाधान ढूँढने के लिए प्रोत्साहित किया गया.

एसडीजी स्कूल में हाल ही में नवाचार समारोह आयोजित किया गया जिसका उद्देश्य नवाचार को बढ़ावा देना, बाधाएँ तोड़ना और एसडीजी के लिए समाधान तैयार करना था. इस वर्ष समूह में, 45 अन्तःविषय प्रतिभागी शामिल थे. 

इस कार्यक्रम का आयोजन, सोच एवं मितव्ययी नवाचार की व्यापक समझ प्रदान करने के लिए किया गया था. इसके तहत, प्रतिभागियों को एसडीजी-सम्बन्धित समस्याओं पर सहयोग व नवीन समाधान विकसित करने के लिए समूहों में बाँटा गया. 

प्रारम्भिक प्रोटोटाइप बनाने, अनुभव-जानकारी एकत्र करने और कई पुनरावृत्तियों के ज़रिए प्रतिभागियों ने अपने समाधानों को बेहतर बनाने की क़वायद शुरू की.

एसडीजी स्कूल का एक प्रमुख पहलू है – तेज़ी से प्रोटोटाइपिंग, डिज़ाइन सोच और मितव्ययी नवाचार को बढ़ावा देना, क्षमता निर्माण करना तथा एसडीजी से जुड़ी चुनौतियों का समाधान करना. 

इससे न प्रतिभागियों को ना केवल एसडीजी के लिए विचार-मन्थन करने और समाधानों पर विचार करने का मौक़ा मिलता है, बल्कि प्रोटोटाइप बनाकर सीखे गए सबक़ का परीक्षण भी हो जाता है.

Makers Asylum की निदेशक ऋचा श्रीवास्तव का कहना था, “केवल अवधारणाएँ ही नहीं, बल्कि समाधान का कार्यन्वयन भी महत्वपूर्ण है. त्वरित प्रोटोटाइप से, कार्रवाई योग्य समाधानों के लिए, सभी विचारों का परीक्षण करने और निर्माण प्रक्रिया को आगे बढ़ाकर, त्वरित, मितव्ययी समाधान बनाने में मदद मिलती है.”

“एसडीजी के सन्दर्भ में, यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके लिए समय बहुत मायने रखता है.

प्रतिभागियों को तेज़ी से प्रोटोटाईप बनाने के लिए समर्थन दिया गया.

अनूठे समाधान

ऐश्वर्या लखानी, Sense Ed नामक बोर्ड गेम की डिज़ाइनर हैं, जिसका उद्देश्य किशोरों को चिन्ता से बचने की तकनीकों के बारे में शिक्षित करना है. वो कहती हैं, “मैं अभी तक इस बात से हैरान हूँ कि हमने किस तरह अपने प्रोटोटाइप (एक बोर्ड गेम) को ‘तोड़कर’, सब कुछ दोबारा डिज़ाइन करके, एक बिल्कुल नया प्रोटोटाइप तैयार किया – वो भी 5-दिवसीय कार्यक्रम के अन्तिम 2 दिनों के भीतर!”

ऐश्वर्या लखानी कहती हैं, “मेरा मानना ​​है कि हर कोई मेरी इस बात से सहमत होंगे कि यह वास्तव में एक चिन्तन योग्य बात है कि हम इस तरह की समस्याओं के समाधान खोजते समय ख़ुद को कितना सीमित कर लेते हैं!”

हाल ही में सम्पन्न कार्यक्रम के आशाजनक नवाचारों में से एक था RE PLAY – यानि रीसायकिल की गई कपड़ा सामग्री से बनी एक Do-It-Yourself यानि DIY किट.

भारत के नई दिल्ली जैसे शहरी वातावरण में, सीमित शिक्षा और पर्यावरणीय जोखिमों के कारण बच्चों में अक्सर टिकाऊ सामग्रियों तथा रीसायकलिंग के बारे में जागरूकता की कमी होती है. इसका परिणाम ये होता है कि लोग जानकारी के अभाव में चीज़ों का अत्यधिक उपभोग करते हैं. 

पिछले 15 वर्षों में, कपड़ों का उत्पादन लगभग दोगुना हो गया है और प्रदूषण के मामले में परिधान उद्योग तेल उद्योग के बाद दूसरे स्थान पर है.

आपस में बातचीत व चर्चा करके व उपाय खोज़कर, बच्चों ने एसडीजी के प्रोटोटाईप तैयार किए.

चार युवा नवप्रवर्तकों – अनीश, सानिया, दिशा और अनन्या की एक टीम ने RE PLAY को विकसित किया है जिसका उद्देश्य, पर्यावरणीय अपशिष्ट और स्थिरता के बारे में जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ बच्चों में रचनात्मक सोच बढ़ाना.

एक अन्य समाधान है – Trash 2 Treasure, जो समुद्री अपशिष्ट की चुनौती से निपटने के लिए समूह की सबसे युवा टीमों में से एक ने विकसित किया है.

तिगरान मार्गेरियन, सूर्यांशा शेठ, अरनव चावला और मनुश्री एमएम की टीम ने, नैटफ़्लिक्स सिरीज़ “Stranger Things” और नरक के एक पौराणिक प्राणी Demogorgon से प्रेरित होकर, अपने उत्पाद का नाम “ट्रैश डेमोगोर्गन” रखा है. 

एसडीजी हासिल करने के लिए समसयाओं से निपटने के रचनात्मक समाधान.

यह समुद्र तटों पर कचरा उठाने का एक उपकरण है, जिसका उद्देश्य सामुदायिक स्तर पर कचरे के संग्रह को प्रोत्साहन देना और इसे री-सायकलिंग  इकाइयों में भेजने वाले केन्द्रों में जमा करना है. 

इसके अतिरिक्त, इस टीम ने कचरा संग्रहण को बढ़ावा देने के लिए एक सरल, सहायक ऐप विकसित करने की भी योजना बनाई है.

Trash 2 Treasure के 16 वर्षीय सह-निर्माता, अरनव चावला एसडीजी स्कूल कार्यक्रम में अपने अनुभव के बारे में बताते हुए कहते हैं, “मुझे लगता है कि नवीनता और शुद्ध ऊर्जा से ओत-प्रोत इस कार्यक्रम बीच, मेरे लिए हर एक दिन जुनून, प्रगति, असफलताओं और सफलताओं से भरा एक जीवन्त पृष्ठ बनकर सामने आया. ऐसे उत्साही और विविध लोगों से मिलने का अनुभव बेहद प्रेरणादायक रहा. सभी प्रतिभागी एक स्थाई भविष्य के लिए मिलकर काम कर रहे हैं.”

अपने-आप कार्रवाई करने के लिए सरल दिशानिर्देश.

नवाचार में समावेशन की महत्ता 

सर्वजन के लिए समावेशी और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, सतत विकास के सबसे शक्तिशाली औज़ारों में से एक है, और First Steps नवाचार, इस उद्देश्य में सक्रिय योगदान दे रहा है. 

टीम ने एक ‘इंटरैक्टिव पहेली जैसा उपकरण’ तैयार किया है, जिसका मक़सद, शिक्षार्थियों को अंग्रेज़ी भाषा के बुनियादी सिद्धान्तों को समझने में मदद करना है.

इस समाधान के पीछे धारावी के वंचित वर्ग से आए, ज़बेरी और अनस जैसे, पहली पीढ़ी के शिक्षार्थी हैं, जो Makers Asylum के साथ गहराई से जुड़े हुए हैं. 

ज़बेरी अंसारी ने कार्यक्रम के साथ अपना सकारात्मक अनुभव व्यक्त करते हुए कहा, “हमने ‘फ़र्स्ट स्टेप्स’ प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए 5 दिन समर्पित किए, जिसका समापन 6वें दिन एक पिच प्रस्तुति से हुआ. हमारा प्रोजेक्ट 16 मार्च को ‘मेक ब्रेक क्रिएट’ सम्मेलन में प्रदर्शित किया गया, जहाँ हमें अपने गुरुओं के मार्गदर्शन के ज़रिए अपना उत्पाद निखारने का मौक़ा मिला.”

'फ़र्स्ट स्टेप्स' टीम ने एक इंटरैक्टिव पहेली जैसी डिवाइस तैयार की, जिसका उद्देश्य शिक्षार्थियों को अंग्रेज़ी भाषा के बुनियादी सिद्धान्त समझने में मदद करना है.

इस समूह का समापन, अपनी तरह के पहले ‘मेक-ब्रेक-क्रिएट’ शिखर सम्मेलन के साथ हुआ, जिसमें शिक्षा जगत, कॉरपोरेट्स, एनजीओ, नई-छोटी कम्पनियों के 150 से अधिक लोगों ने भाग लिया. इसमें न केवल एसडीजी स्कूल के प्रतिभागियों के नवाचार सफ़र, बल्कि समाधान खोजने कीउनकी भावना का भी जश्न मनाया गया.

Sense Ed की इन्दुजा ने कहा, “मैंने पाया है कि रचना एवं निर्माण जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया है जिसे हर मोड़ पर बार-बार करने की आवश्यकता होती है, और  केवल 10 दिनों में भी बहुत कुछ किया जाना सम्भव है.”

एसडीजी स्कूल के ज़रिए, रचनात्मकता और नवाचार के मूल्यों का जश्न मनाते हुए, युवजन को अपने विचारों को दुनिया की सबसे गम्भीर समस्याओं के समाधान के लिए मार्गदर्शन दिया जा रहा है. इससे ये युवजन, समाज की सामाजिक-आर्थिक, पर्यावरणीय और सांस्कृतिक प्रगति में योगदान देकर, उज्जवल भविष्य की नींव रखने में सक्षम होते हैं.

प्रतिभागियों को परस्पर जुड़ने, बातचीत करने और एक्सपो में अपने समाधान पेश करने का मौक़ा मिला.

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