यूएन प्रमुख ने कहा कि वह रमदान के पवित्र महीने के दौरान रोहिंज्या शरणार्थियों और उनके उदार मेज़बान बांग्लादेशी समुदायों के साथ एकजुटता व्यक्त करने के इरादे से कॉक्सेस बाज़ार पहुँचे हैं.
महासचिव ने कहा कि वह रोहिंज्या शरणार्थियों की व्यथा को दुनिया के सामने लाना चाहते हैं, बल्कि उनमें निहित सम्भावनाओं को भी. “यहाँ 10 लाख से अधिक रोहिंज्या शरणार्थी गर्वित हैं. वे सहनसक्षम हैं. और उन्हें दुनिया के समर्थन की आवश्यकता है.”
यूएन प्रमुख के अनुसार, इस यात्रा के दौरान उन्होंने शरणार्थियों से दो सन्देश सुने: सुरक्षित हालात में म्याँमार वापिस लौटने की इच्छा और यहाँ शिविरों में रहन-सहन की बेहतर परिस्थितियों की ज़रूरत.
उन्होंने आगाह किया कि संयुक्त राज्य अमेरिका और कुछ अन्य योरोपीय देशों द्वारा सहायता धनराशि में कटौती किए जाने की घोषणाओं से मानवतावादी अभियान पर असर पड़ने की आशंका है.
“हम पर इस शिविर में खाद्य रसद की कटौती होने का जोखिम है.”
“मैं आपसे वादा कर सकता हूँ कि इसे टालने के लिए हम हरसम्भव कोशिश करेंगे और मैं दुनिया में सभी देशों से बात करूंगा, जो हमे समर्थन दे सकते हैं, ताकि रक़म की उपलब्धता सुनिश्चित हो सके.”
उन्होंने सचेत किया कि इन शरणार्थी शिविरों में गुज़र-बसर के लिए बेहद कठिन हालात हैं, जोकि जलवायु परिवर्तन की वजह से और बिगड़ रहे हैं.
“ये शिविर, उनकी मेज़बानी करने वाले समुदाय, जलवायु संकट के अग्रिम मोर्चे पर हैं. गर्मियाँ भीषण हो रही हैं और आग लगने का जोखिम बढ़ जाता है. चक्रवाती तूफ़ान व मॉनसून के मौसम में, बाढ़ और जानलेवा भूस्खलन से घर व ज़िन्दगियाँ बर्बाद हो जाती हैं.”
सुरक्षा व गरिमा की तलाश
बांग्लादेश में 10 लाख से अधिक रोहिंज्या शरणार्थियों ने शरण ली है, जो 2017 में पड़ोसी देश म्याँमार में सुरक्षा बलों के क्रूर हमलों से बचकर वहाँ पहुँचे थे.
महासचिव ने ध्यान दिलाया कि दशकों के भेदभाव व उत्पीड़न के बाद, आठ वर्ष पहले लाखों रोहिंज्या लोगों ने म्याँमार के राख़ीन प्रान्त में जनसंहार के बाद सुरक्षा की अन्य देशों में शरण ली. संरक्षण, गरिमा व अपने परिवारों के लिए सुरक्षा की तलाश में.
बड़ी संख्या में शरणार्थी, मानवाधिकारों के बर्बर दमन से बचकर हाल के वर्षों में जान बचाकर भागे हैं, जिसे मुस्लिम-विरोधी नफ़रत भड़की है.
यूएन प्रमुख ने कहा कि ‘इस्लामोफ़ोबिया’ से लड़ाई के लिए 15 मार्च को मनाए जाने वाले अन्तरराष्ट्रीय दिवस के सन्दर्भ में यह अहम है.
महासचिव ने कॉक्सेस बाज़ार में अनेक रोहिंज्या शरणार्थियों से बात की और म्याँमार से वहाँ तक पहुँचने की कठिनाइयों, उनके कठोर अनुभवों के बारे में सुना.
“वे घर जाना चाहते हैं – म्याँमार उनकी गृहभूमि है. और इस संकट का प्राथमिक समाधान, स्वैच्छिक रूप से एक सुरक्षित व गरिमामय माहौल में उनका घर लौटना है.”

बांग्लादेश के कॉक्सेस बाज़ार में मुसलमान, रमदान के महीने में अपना उपवास तोड़ने के लिए इफ़्तार की तैयारी कर रहे हैं.
‘नज़रे नहीं फेरनी होंगी’
यूएन प्रमुख ने ज़ोर देकर कहा कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय, रोहिंज्या संकट को नज़रअन्दाज़ नहीं कर सकता है.
“हम यह नहीं स्वीकार कर सकते हैं कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय रोहिंज्या संकट को भूल जाए.” इसके मद्देनज़र, उन्होंने भरोसा दिलाया कि वह विश्व नेताओं से रोहिंज्या आबादी के लिए समर्थन बढ़ाने की अपील करेंगे.
उनके अनुसार, यह ज़रूरी है कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा म्याँमार में शान्ति स्थापना और रोहिंज्या के अधिकारों के सम्मान के लिए हरसम्भव कोशिश की जाए, ताकि अतीत में हुए भेदभाव व उत्पीड़न पर विराम लगाया जा सके.
महासचिव गुटेरेश ने कहा कि इस संकट का समाधान, म्याँमार में ढूंढा जाना होगा, और रोहिंज्या शरणार्थियों की स्वैच्छिक ढंग से, सुरक्षित व सतत वापसी के लिए अनुकूल माहौल तैयार किए जाने की आवश्यकता है.
यूएन प्रमुख ने कॉक्सेस बाज़ार में अपनी यात्रा का समापन, उपवास के बाद रोहिंज्या शरणार्थियों के साथ इफ़्तार के लिए भोजन करने के बाद किया. “उपवास और आप सभी के साथ इफ़्तार, आपके धर्म और आपकी संस्कृति के प्रति मेरे मन में गहरे सम्मान के भाव को दर्शाता है.”
उन्होंने कहा कि रमदान का महीना, एकजुटता का समय है और इस दौरान यह अस्वीकार्य होगा कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय, बांग्लादेश में रोहिंज्या शरणार्थियों के लिए अपने समर्थन को कम कर दे. ऐसा होने से रोकने के लिए हर कोशिश की जाएगी.

यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने बांंग्लादेश के कॉक्सेस बाज़ार में रोहिंज्या शरणार्थियों के साथ मिलकर इफ़्तार किया.
