पर्यावरण

बढ़ते समुद्री जलस्तर की चुनौती से निपटने के लिए, वैश्विक निवेश में बढ़ोत्तरी किए जाने पर बल

बढ़ते समुद्री जलस्तर की चुनौती से निपटने के लिए, वैश्विक निवेश में बढ़ोत्तरी किए जाने पर बल

यूएन के शीर्षतम अधिकारी ने टोंगा की राजधानी नुकुअलोफ़ा में एक प्रैस वार्ता के दौरान, विश्व नेताओं से वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में बड़ी कटौती लाने, जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल रोकने और विशाल पैमाने पर जलवायु अनुकूलन के लिए निवेश किए जाने का आग्रह किया.

उन्होंने कहा कि यह एक बेहद चुनौतीपूर्ण स्थिति है: बढ़ते समुद्री जलस्तर के लिए पूर्ण रूप से मानवता ज़िम्मेदार है, और यह संकट जल्द ही एक ऐसे स्तर तक पहुँच जाएगा, जहाँ से कोई भी सुरक्षा उपाय कारगर साबित नहीं होगा.

“मगर, यदि हम प्रशान्त क्षेत्र को बचाते हैं, तो हम अपनी भी रक्षा करेंगे. दुनिया को हरकत में आना होगा और बहुत देर होने से पहले ही जीवन की रक्षा सुनिश्चित करनी होगी.”

यूएन प्रमुख के अनुसार, विश्व भर में औसत समुद्री जलस्तर के बढ़ने की दर, अभूतपूर्व ढंग से पिछले तीन हज़ार वर्षों से बढ़ती जा रही है.

“इसकी वजह स्पष्ट है: ग्रीनहाउस गैस, जोकि जीवाश्म ईंधन को जलाने से उत्पन्न होती हैं, हमारे ग्रह को पका रही हैं, और यह गर्मी हमारे समुद्रों में प्रवेश कर रही है.”

एक अनुमान के अनुसार, पिछले 50 वर्षों में वैश्विक तापमान में हुई क़रीब 90 फ़ीसदी वृद्धि को समुद्रों ने सोख लिया है. गर्म होने की स्थिति में जल के आकार में विस्तार होता है. वहीं, पिघलते हिमनदों और जमे हुए पानी की चादरों से समुद्री जल की मात्रा बढ़ी है और महासागर का स्तर बढ़ रहा है.

महासागरों में बदलाव

इस बीच, संयुक्त राष्ट्र की दो नई रिपोर्ट दर्शाती हैं कि महासागरों में बदलाव की रफ़्तार तेज़ हो रही है, और समुद्रों में मासिक तापमान के रिकॉर्ड ध्वस्त हो रहे हैं जिसके विनाशकारी असर सामने आ रहे हैं.

समुद्री क्षेत्र में ताप लहरों की अवधि बढ़ रही है, वे गहन हो रही हैं, और 1980 के दशक से अब तक उनकी आवृत्ति दोगुनी हो गई है. बढ़ते समुद्री जलस्तर से तूफ़ान की गम्भीरता और तटीय इलाक़ो में आने वाली बाढ़  में बढ़ोत्तरी हो रही है.

यूएन प्रमुख ने आगाह किया कि मंगलवार को जारी रिपोर्टे दर्शाती हैं कि समुद्री जलस्तर में होने वाली वृद्धि से दक्षिणी-पश्चिमी प्रशान्त क्षेत्र में समुद्री जलस्तर, वैश्विक औसत की तुलना में अधिक तेज़ी से बढ़ा है. पिछले तीन दशकों के दौरान वृद्धि की रफ़्तार दोगुने से अधिक नज़र आई है.

“उत्सर्जनों में नाटकीय कटौती के अभाव में, प्रशान्त क्षेत्र के द्वीपों में इस सदी के मध्य तक समुद्री जलस्तर में कम से कम 15 सेंटीमीटर अतिरिक्त वृद्धि होने की आशंका है, और कुछ स्थानों पर प्रतिवर्ष 30 दिन तक तटीय बाढ़ हो सकती है.”

महासचिव गुटेरेश ने वैज्ञानिक तथ्यों की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि पूर्व औद्योगिक काल की तुलना में वैश्विक तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से ग्रीनलैंड और पश्चिमी अंटार्कटिक क्षेत्र में जमे हुए पानी की चादरों के ध्वस्त होने की आशंका है.

इससे भावी पीढ़ियों के लिए एक हज़ार वर्षों में समुद्री जलस्तर में 20 मीटर तक की वृद्धि हो सकती है.

तुवालू में कामगार, समुद्री तट पर क्षरण से निपटने के लिए अवरोध तैयार कर रहे हैं.

© UNICEF/Lasse Bak Mejlvang

तुवालू में कामगार, समुद्री तट पर क्षरण से निपटने के लिए अवरोध तैयार कर रहे हैं.

हम सभी के लिए ख़तरा

यूएन प्रमुख ने कहा कि दुनिया फ़िलहाल, पूर्व औद्योगिक काल के स्तर की तुलना में वैश्विक तापमान में तीन डिग्री सेल्सियस की वृद्धि की ओर बढ़ रही है. इससे समुद्री जलस्तर में ज़्यादा तेज़ी से बढ़ोत्तरी होगी और इसके टोंगा व उससे इतर अन्य देशों में विनाशकारी असर हो सकते हैं.

अनुमान है कि विश्व भर में 90 करोड़ लोग, यानि हर 10 में से एक व्यक्ति समुद्र के नज़दीक रहते हैं.

घनी आबादी वाले देशों, जैसेकि बांग्लादेश, चीन, भारत, नैदरलैंड्स और पाकिस्तान समेत अन्य देशों में तटीय इलाक़ों में बसे समुदायों के लिए जोखिम है और उन्हें विनाशकारी बाढ़ से जूझना पड़ सकता है.

इनके अलावा, हर महाद्वीप पर बड़े शहरों, जैसेकि बैंकॉक, ब्यूनस आयर्स, लागोस, लंदन, मुम्बई, न्यूयॉर्क व शंघाई समेत अन्य शहरों को ख़तरा है.

लघु द्वीपीय देशों और निचले तटीय इलाक़ों के लिए यह एक विकराल चुनौती है. समुद्री जलस्तर के बढ़ने और अन्य जलवायु प्रभावों के कारण प्रशान्त महासागर में स्थित देशों, फ़िजी, वानुआतू और सोलोमन आइलैंड्स में लोग जबरन विस्थापन का शिकार हो रहे हैं.

उन्होंने कहा कि नए अनुकूलन व संरक्षण उपायों के अभाव में, हज़ारों अरब डॉलर की आर्थिक क्षति हो सकती है, और इससे बचने के लिए विश्व नेताओं को आगे बढ़कर क़दम उठाने होंगे.

उत्सर्जन में कटौती, निर्बल देशों के लिए समर्थन

यूएन प्रमुख ने कहा कि वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखना होगा, जिसके लिए 2019 के स्तर की तुलना में 2030 तक, वैश्विक उत्सर्जन में 43 प्रतिशत की कटौती की जानी ज़रूरी है.

इस क्रम में, उन्होंने देशों की सरकारों से नई राष्ट्रीय जलवायु कार्रवाई योजनाओं पर कार्य करने का आहवान किया है, जिसका वायदा पिछले वर्ष दुबई में वार्षिक जलवायु सम्मेलन कॉप28 के दौरान किया गया था.

उन्होंने कहा कि जीवाश्म ईंधन के इस्तेमाल को चरणबद्ध ढंग से, तेज़ी से हटाने के लिए भी क़दम उठाने अहम हैं. इसके तहत, कोयला आधारित नई परियोजनाओं का अन्त किया जाना होगा, और तेल व गैस के विस्तार को थामना होगा, जबकि नवीकरणीय ऊर्जा की क्षमता में तीन गुना वृद्धि, ऊर्जा दक्षता में दोगुना वृद्धि के संकल्प को पूरा किया जाना होगा.

महासचिव गुटेरेश ने ज़ोर देकर कहा कि इसके समानान्तर, जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से सम्वेदनशील हालात का सामना कर रहे देशों के लिए वित्त पोषण व समर्थन बढ़ाना होगा.

उनके अनुसार, अधिकाँश वैश्विक उत्सर्जन के लिए ज़िम्मेदार जी20 देशों को इन प्रयासों में अग्रणी भूमिका निभानी होगी.

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