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फ़लस्तीन के साथ इसराइली बर्ताव पर विश्व न्यायालय (ICJ) में सुनवाई की झलकियाँ

ग़ाज़ा में अक्टूबर 2023 में भड़के युद्ध से पहले दायर इस मामले में अदालत के अध्यक्ष, न्यायाधीश नवाफ़ सलाम द्वारा सुनवाई शुरू करने से पहले ही प्रबल चर्चा शुरू हो गई थी. सुनवाई 26 फरवरी को ख़त्म हो गई. इसराइल ने इसमें भाग नहीं लेने का फ़ैसला किया है. यहाँ, 19 से 21 फरवरी तक, सुनवाई के शुरुआती दिनों की विस्तृत जानकारी दी गई है.

विश्व न्यायालय द्वारा दो विशिष्ट प्रश्नों पर विचार

महासभा के दिसम्बर 2022 के अनुरोधमें विश्व न्यायालय को दो विशिष्ट प्रश्न प्रस्तुत किए गए हैं:

  • “इसराइल द्वारा फ़लस्तीनियों के आत्मनिर्णय के अधिकार के लगातार उल्लंघन, 1967 से लम्बे समय तक फ़लस्तीनी क्षेत्र पर क़ब्ज़ा, यहूदी बस्तियाँ बनाने व फ़लस्तीनी क्षेत्र को इसराइल मिलाए जाने के क़ानूनी नतीजे क्या होंगे? इसमें येरूशेलम के पवित्र शहर का चरित्र और स्थिति व जनसांख्यिकीय संरचना को बदलने, तथा इससे सम्बन्धित भेदभावपूर्ण क़ानून अपनाने के तरीक़ें भी शामिल हैं?”
  • “इसराइल की नीतियाँ और कार्रवाई, क़ब्ज़े की क़ानूनी स्थिति को कैसे प्रभावित करती हैं, और सभी देशों व संयुक्त राष्ट्र के लिए इस स्थिति से क्या क़ानूनी नतीजें हैं?”

नैदरलैंड के द हेग शहर स्थित, पीस पैलेस में सार्वजनिक सुनवाई के शुरुआती दिनों की जानकारी इस प्रकार है:

फ़लस्तीनी प्राधिकरण के विदेश मंत्री, रियाद अल-मलिकी 19 फरवरी 2024 को ICJ में एक प्रस्तुति देते हुए.

© ICJ-CIJ/Frank van Beek

फ़लस्तीन की दलील

फ़लस्तीन ने 19 फरवरी को तीन घंटे तकअपनी दलीलें पेश कीं, जिसकी शुरुआत, विदेश मंत्री रियाद अल-मलिकी ने इन शब्दों से की:

“मैं आपके सामने ऐसे समय में खड़ा हूँ, जब ग़ाज़ा के 23 लाख फ़लस्तीनियों को घेर कर बमबारी की जा रही है, उन्हें मारा जा रहा है, अपंग किया जा रहा है, जिनमें से आधे बच्चे हैं, और जो भूखे रहने को मजबूर हैं और विस्थापित हो गए हैं. पूर्वी येरूशेलम सहित, पश्चिमी तट के 35 लाख से अधिक फ़लस्तीनियों का क्षेत्र उपनिवेशीकरण का शिकार हुआ है, और नस्लवादी हिंसा को बढ़ावा मिल रहा है, क्योंकि इसराइल में, 17 लाख फ़लस्तीनियों को उनकी पैतृक भूमि पर, दूसरे दर्जे के नागरिक व अवांछित घुसपैठी माना जाता है,  तथा 70 लाख फ़लस्तीनी शरणार्थियों को उनके घर लौटने के अधिकार से वंचित किया जा रहा है.

उन्होंने कहा, इसराइल की लगातार सरकारों ने फ़लस्तीनियों के लिए केवल तीन विकल्प छोड़े हैं, “विस्थापन, अधीनता या मौत. ये हैं विकल्प: जातीय सफ़ाया, रंगभेद या जनसंहार.

उन्होंने, “इसराइल की दंडमुक्ति को समाप्त करने” का आहवान किया जोकि “एक नैतिक, राजनीतिक और कानूनी अनिवार्यता” है, “हमारे लोग यहीं रहेंगे…वो अपने अधिकार नहीं छोड़ेंगे.”

दक्षिण अफ़्रीका का प्रतिनिधित्व करते हुए, वुसिमुज़ी मदोनसेला, जनवरी में अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय में इसराइल के ख़िलाफ़ अपने देश का पक्ष पेश करते हुए. (फ़ाइल)

दक्षिण अफ़्रीका ने इसराइली कार्रवाई को ‘रंगभेद’ क़रार दिया 

दक्षिण अफ़्रीका ने “ग़ाज़ा में जनसंहार” के लिए इसराइल के ख़िलाफ़ दिसम्बर 2023 में  ICJ में एक अलग मुक़दमा दर्ज कराया – जिसके लिए न्यायालय ने पहले ही अनन्तिम उपाय जारी कर दिए थे. नैदरलैंड में देश के राजदूत वुसिमुज़ी मैडोनसेला ने दक्षिण अफ़्रीका का प्रतिनिधित्व करते हुए, 20 फ़रवरी को अदालत को बताया कि “दशकों से चले आ रहे रंगभेदी उपनिवेशवाद के तहत ऐतिहासिक फ़लस्तीन में क़ानूनन रहने का अधिकार प्राप्त सभी लोगों के लिए, एक न्यायोचित समाधान पर बातचीत करने के लिए अन्तरराष्ट्रीय समुदाय की सहायता की आवश्यकता है. उन्होंने, “फ़लस्तीन की स्थिति और रंगभेद के “भेदभावपूर्ण क़ानूनों के संस्थागत शासन” के ख़िलाफ़ दक्षिण अफ़्रीकी लोगों के संघर्ष के बीच समानता दर्शाते हुए कहा कि वर्तमान सैन्य कार्रवाई “इसराइली-यहूदी वर्चस्व” सुनिश्चित करती है. इस क्रम में, उन्होंने क़ब्ज़े वाले क्षेत्रों से “इसराइली सैनिकों की तत्काल, बिना शर्त और पूर्ण वापसी” का आहवान किया.

‘क़ब्ज़े’ से ‘वापस न लौट पाने की स्थिति’ तक

चिली के प्रतिनिधि ने कहा कि इसराइल “ख़ुद को न तो अस्थाई प्रशासन मानता है, न ही उस तरह का व्यवहार करता है”, और उसका आचरण “विलय” का संकेत देता है. उन्होंने यह भी याद दिलाया कि चिली में मध्य पूर्व से बाहर सबसे बड़ा फ़लस्तीनी समुदाय निवास करता है, जो लातिन अमेरिका में तीसरा सबसे बड़ा समुदाय है.

इस बीच, क़ानून के प्रोफ़ेसर, अहमद लाराबा ने अल्जीरिया का प्रतिनिधित्व करते हुए कहा कि उनका अनुमान है कि इसराइल का उद्देश्य, अपने क़ब्ज़े वाले क्षेत्रों में “फ़लस्तीनी राष्ट्र बनाने की सभी सम्भावनाओं को ख़त्म करना” है. उन्होंने अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय को “याद दिलाते हुए कि यहाँ मुद्दा न्याय का है, बदले का नहीं.” उन्होंने इसराइल की “उत्पीड़क” के रूप में “दंड से मुक्ति” समाप्त करने का आग्रह किया. 

सऊदी अरब के प्रतिनिधि ने इसराइल द्वारा फ़लस्तीनियों का “अमानवीयकरण” करने की आलोचना की, जिनके साथ ग़ाज़ा में ऐसा बर्ताव किया जा रहा है, जैसेकि वो “फेंकने वाली वस्तुएँ” हों. प्रतिनिधि ने कहा कि यह स्थिति दर्शाती है कि “पाँच दशकों से अधिक समय से इसराइल का अबैध क़ब्ज़ा कितने वीभत्स परिणाम दे सकता है.” साथ ही जनसंहार पर दक्षिण अफ़्रीकी शिकायत के हिस्से के रूप में, इसराइल पर “अदालत द्वारा आदेशित अनन्तिम उपायों को नज़रअन्दाज़” करने का भी आरोप लगाया.

इसराइल और पश्चिमी तट को अलग करती दीवार.

आत्मरक्षा के अधिकार पर बहस

नैदरलैंड की ओर से, विदेश मंत्रालय के क़ानूनी सलाहकार, रेने जे.एम. लेफ़ेबर ने लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार की नींव के साथ-साथ, हमला होने पर “बल प्रयोग” के क़ानूनी ढाँचे एवं आत्मरक्षा के अधिकार की याद दिलाई.

उन्होंने कहा, “आत्मरक्षा के अधिकार के ढाँचे के तहत, सशस्त्र हमले के जवाब में किसी क्षेत्र पर क़ब्ज़ा वैध हो सकता है” भले ही वह किसी राष्ट्र नहीं, बल्कि एक सशस्त्र समूह द्वारा किया गया हो. उन्होंने दोनों पक्षों से अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून का सम्मान करने व उसका उल्लंघन न करने का दायित्व आग्रह किया. उन्होंने उम्मीद जताई कि अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय, मध्य पूर्व में शान्ति स्थापित करने में मदद कर सकेगा.

ग़ाज़ा के लोगों और इसराइल, दोनों के साथ सीमा साझा करने वाले देश, मिस्र ने इसराइल द्वारा आत्मरक्षा के अधिकार के प्रयोग को चुनौती दी.

मिस्र के विदेश मामलों के मंत्रालय में क़ानूनी सलाहकार, जासमीन मौसा ने कहा, “यह तर्क कि एक देश अपने सैन्य क़ब्ज़े व नियंत्रण में आने वाले क्षेत्र के ख़िलाफ़ आत्मरक्षा के सिद्धान्त पर अमल कर सकता है, विरोधाभासी है.” उन्होंने कहा कि इसराइल ने 1967 में “आक्रामकता का युद्ध” किया और उसके बाद अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के विपरीत “दशकों तक क़ब्ज़ा” जारी रखा. “इसराइल अपने स्वयं के अवैध आचरण द्वारा बनी स्थिति को बरक़ार रखने के लिए आत्मरक्षा का आहवान नहीं कर सकता है.” 

उन्होंने वर्तमान स्थिति की गम्भीरता को रेखांकित करते हुए कहा कि रफ़ाह में जहाँ “इसराइल, फ़लस्तीनी नागरिकों के जबरन निष्कासन की अपनी नीति जारी रखे हुए है,” वहाँ फ़लस्तीनी लोगों के जीवन की घोर उपेक्षा करते हुए, सुरक्षा परिषद द्वारा युद्धविराम का आहवान बार-बार विफल रहा है.”

उन्होंने कहा कि मध्य पूर्व क्षेत्र “शान्ति व स्थिरता और अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के सिद्धान्तों के आधार पर फ़लस्तीनी-इसराइल संघर्ष के न्यायसंगत, व्यापक एवं स्थाई समाधान तथा पूर्व के साथ 1967 की तर्ज़ पर, येरूशेलम को राजधानी बनाकर एक व्यवहार्य फ़लस्तीनी राष्ट्र की स्थापना होते देखने के लिए तरस रहा है.” 

योरोप औरफ्रांस के विदेश मामलों के मंत्रालय में क़ानूनी मामलों के निदेशक डिएगो कोलास ने कहा कि इसराइल का “आत्म रक्षा का अधिकार” अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के अनुपालन में है.

7 अक्टूबर को इसराइल में हमास द्वारा किए गए हमले के बाद से “जिस गम्भीर सन्दर्भ में यह सुनवाई हो रही है,” उस पर बल देते हुए, उन्होंने “ऐसे हमले दोबारा होने से रोकने के उद्देश्य से अपनी और अपनी आबादी की रक्षा करने के इसराइल के अधिकार” का बचाव किया.

उन्होंने कहा कि इस अधिकार का प्रयोग, अन्तरराष्ट्रीय क़ानून और विशेष रूप से अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून के सख़्ती से अनुपालन के दायरे में किया जाना चाहिए. फ्रांस स्पष्ट रूप से, लगातार और बार-बार यह मांग करता रहा है. उन्होंने स्वीकार किया कि हालाँकि इसराइली सैन्य अभियान और बमबारी, ग़ाज़ा में हज़ारों नागरिकों की पीड़ा का कारण बन रहे हैं. उन्होंने कहा, “सभी हितधारकों द्वारा अन्तरराष्ट्रीय क़ानून, ख़ासतौर पर अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून का सम्मान ही, शान्ति का एकमात्र सम्भावित क्षितिज है.”

फ़रवरी की शुरुआत में, अक्टूबर 2023 में युद्ध शुरू होने के बाद से ग़ाज़ा की 23 लाख आबादी में से 80 प्रतिशत से अधिक, आन्तरिक रूप से विस्थापित हो गए हैं.

मुआवज़े व क्षतिपूर्ति की मांग 

फ्रांस के प्रतिनिधि ने अन्य चिन्ताओं का रुख़ करते हुए, 2004 के बाद से तेज़ हुई इसराइल की औपनिवेशीकरण नीति की निन्दा की. साथ ही ग़ाज़ा में यहूदी बस्तियों की स्थापना और ग़ाज़ा की आबादी को “क्षेत्र से बाहर” धकेलने की प्रवृत्ति को बढ़ावा देने पर भी टिप्पणियाँ कीं, जो “अन्तरराष्ट्रीय क़ानून का गम्भीर उल्लंघन है. 

उन्होंने मुआवज़े को लेकर ज़ोर दिया कि “फ्रांस का मानना है कि फ़लस्तीनी आबादी को हुए सम्पूर्ण नुक़सान की भरपाई किया जाना ज़रूरी है – पुनर्स्थापन और, ऐसा न होने पर, मुआवज़ा” देना आवश्यक होगा.

1 नवम्बर 2023 को इसराइल के साथ अपने सम्बन्ध तोड़ने वाले देश बोलीविया ने ग़ाज़ा में “रंगभेद” और “जनसंहार के अपराध समान अत्याचारों” की निन्दा की. उनके प्रतिनिधि ने मुआवज़े और क्षतिपूर्ति के साथ-साथ, इसराइल के क़ब्ज़े वाले फ़लस्तीनी क्षेत्रों में “इसराइल की अपनी अवैध यहूदी बस्तियाँ बनाने की नीति को उलटने” का आहवान किया.

21 फ़रवरी को जारी सुनवाई मेंकोलम्बिया के प्रतिनिधि ने कहा कि इसराइल को समस्त क़ब्ज़ा व औपनिवेशीकरण बन्द करके, क्षतिपूर्ति करनी चाहिए. “फ़लस्तीनी क्षेत्रों पर उसके क़ब्ज़े के परिणामस्वरूप, किसी भी प्रकार की सामग्री या अन्य नुक़सान का सामना करने वाले सभी जायज़ व्यक्तियों को, अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के नियमों के अनुसार मुआवज़ा देना इसराइल का दायित्व है.”

पूर्वी येरूशलम और पश्चिमी तट के रामल्ला के बीच स्थित क़लण्डिया चैक प्वाइंट.

बातचीत के ज़रिए दो-राष्ट्र समाधान

ब्राज़ील के प्रतिनिधि ने “दशकों से अन्तरराष्ट्रीय एजेंडे पर सबसे गम्भीर बोझ डालने वाले अनसुलझे संघर्षों में से एक” के समाधान हेतु, बातचीत के ज़रिए दो-राष्ट्र समाधान की ओर बढ़ने की आवश्यकता पर बल दिया. उन्होंने कहा कि इस सवाल व स्थिति की गम्भीरता, 7 अक्टूबर से पहले भी इतनी ही महत्वपूर्ण थी. प्रतिनिधि ने कहा, “उस तारीख़ की दुखद घटनाएँ और उसके बाद हुए अनुपातहीन एवं अन्धाधुन्ध सैन्य अभियान से स्पष्ट होता है कि केवल टकराव के प्रबन्धन कोई विकल्प नहीं है. दो-राष्ट्र समाधान, जिसमें आर्थिक रूप से व्यवहार्य फ़लस्तीनी राष्ट्र व इसराइल साथ-साथ रहें, इसराइलियों एवं फ़लस्तीनियों के लिए शान्ति एवं सुरक्षा स्थापित करने का एकमात्र उपाय है.”

संयुक्त राज्य अमेरिका के विदेश मंत्रालय में क़ानूनी सलाहकार रिचर्ड सी विसेक ने कहा कि अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्थापित ढाँचे के तहत राजनैतिक समाधान के पक्ष में है. उन्होंने “7 अक्टूबर के आतंकवादी हमलों की भयावहता” को याद करते हुए, “इसराइल और हमास के बीच चल रहे टकराव” के सन्दर्भ को स्वीकार किया, जिससे ग़ाज़ा के फ़लस्तीनी नागरिकों के लिए गम्भीर, व्यापक एवं दुख़द परिणाम हुए हैं.

उन्होंने अपनी प्रस्तुति इस तथ्य पर केन्द्रित की कि हितधारकों को टकराव को हल करने के लिए सुरक्षा परिषद और संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा निर्धारित ढाँचे – यानि दो-राष्ट्र समाधान – पर वापस लौटना चाहिए. उन्होंने इस ढाँचे को संरक्षित करने व समाधान की सम्भावना को वास्तविकता में तब्दील करने के लिए, अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय की भूमिका की अहमियत पर प्रकाश डाला.

वहीं, अमेरिकी प्रयासों का उद्देश्य न केवल वर्तमान संकट को सम्बोधित करना है, बल्कि “वर्तमान गतिरोध से आगे बढ़ना है, अर्थात एक राजनैतिक समझौते के मार्ग पर चलकर क्षेत्र में टिकाऊ शान्ति स्थापित करना है, जिसमें इसराइल और फ़लस्तीनी लोगों के लिए स्थाई सुरक्षा शामिल हो तथा फ़लस्तीन के लिए राष्ट्र का दर्ज़ा पाने की राह प्रशस्त हो.”

फ़लस्तीनी लोग ज़ैतून की खेती बड़े पैमाने पर करते हैं, अक्सर उन इलाक़ों में अब इसराइल बस्तियों का विस्तार हो रहा है.

UNRWA Archives/Alaa Ghosheh

अन्तरराष्ट्रीय क़ानून का पालन ‘इच्छानुसार’ नहीं किया जा सकता 

क्यूबा के प्रतिनिधि ने संयुक्त राज्य अमेरिका की आलोचना करते हुए, विश्व अदालत से अनुरोध किया कि वो इसराइल को हथियारों की आपूर्ति जैसी इसराइल की नीतियों में वाशिंगटन की “मिलीभगत” पर ध्यान दे.

संयुक्त राष्ट्र में संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) की स्थाई प्रतिनिधि के राजनैतिक मामलों की सहायक मंत्री लाना नुसाईबेह ने कहा, “अन्तरराष्ट्रीय क़ानून à la carte मेन्यू, यानि किसी कि व्यक्तिगत मर्ज़ी पर निर्भर नहीं हो सकता; यह सभी पर समान रूप से लागू होना चाहिए.”

इसराइली क़ब्ज़ा ख़त्म हो: रूस

नैदरलैंड में रूस के राजदूत व्लादिमीर ताराब्रिन ने दो-राष्ट्र वार्ता समाधान की हिमायत करते हुए और फ़लस्तीनियों के “आत्मनिर्णय के अधिकार पर इसराइल द्वारा लगातार इनकार” तथा “1967 से इसराइल द्वारा अपनाई जा रही औपनिवेशीकरण की नीति” की ओर इशारा करते हुए कहा, “क़ब्ज़ा समाप्त होना होगा.” 

उन्होंने कहा कि इस मामले पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार, येरूशेलम सहित पश्चिमी तट में 7 लाख से अधिक इसराइली निवासी रहते हैं और 2023 में इसराइली बस्तियाँ के विस्तार की गतिविधियों में रिकॉर्ड-तोड़ तेज़ी आई है. इसमें यह भी कहा गया है कि यहाँ 24 हज़ार 700 आवास इकाइयों के विस्तार की योजना, अब भी उन्नत, स्वीकृत या निविदाकृत है – जो पिछले वर्ष की तुलना में दोगुने से भी अधिक है. “इससे बातचीत के ज़रिए समाधान की सम्भावनाएँ कमज़ोर हो रही हैं.” 

उन्होंने कहा कि रूस को उम्मीद है कि अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय, यह शर्त रखकर टकराव के समाधान में अहम भूमिका निभा सकता है कि दोनों पक्ष शान्ति वार्ता दोबारा शुरू करने के “दायित्व से बन्धे हैं.” 

संयुक्त राष्ट्र विश्व न्यायालय (ICJ) क्या है?

अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ), संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख न्यायिक अंग है, जिसकी स्थापना 1945 में हुई थी.

  • इस न्यायालय की भूमिका, अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के तहत, देशों द्वारा प्रस्तुत क़ानूनी विवादों का निपटारा करना और संयुक्त राष्ट्र के अधिकृत अंगों तथा विशेष एजेंसियों द्वारा सन्दर्भित क़ानूनी प्रश्नों पर राय देना है.
  • इस न्यायालय में 15 न्यायाधीशों होते हैं, जिनका चुनाव, संयुक्त राष्ट्र महासभा के 193 सदस्य देशों और 15-सदस्यीय सुरक्षा परिषद द्वारा, नौ साल के कार्यकाल के लिए होता है.

संयुक्त राष्ट्र के विश्व न्यायालय (ICJ) के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें.

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