वर्ष 2022 में प्रस्ताव संख्या 76/262 के ज़रिए शुरू की गई एक पहल में व्यवस्था की गई है कि अगर सुरक्षा परिषद में किसी प्रस्ताव पर वीटो का इस्तेमाल किया जाता है तो, संयुक्त राष्ट्र का सर्वाधिक प्रतिनिधिक संस्था – महासभा, 10 दिनों के भीतर अपनी बैठक करके, उस मुद्दे पर चर्चा करेगी.
ग़ौरतलब है कि यूएन सुरक्षा परिषद में पाँच सदस्यों – चीन, फ़्रांस, रूस, ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका को स्थाई सदस्य होने के नाते, वीटो का अधिकार प्राप्त है.
18 अप्रैल को सुरक्षा परिषद की बैठक में, उस मसौदा प्रस्ताव पर संयुक्त राज्य अमेरिका ने वीटो का प्रयोग किया था, जिसमें यूएन महासभा से फ़लस्तीन को संयुक्त राष्ट्र की पूर्ण सदस्यता दिए जाने के लिए मतदान कराए जाने की सिफ़ारिश की गई थी.
फ़लस्तीन को, इस समय संयुक्त राष्ट्र में एक स्थाई पर्यवेक्षक देश का दर्जा हासिल है, जिसका अर्थ है कि यह संयुक्त राष्ट्र की तमाम कार्यवाहियों और प्रक्रियाओं में शिरकत कर सकता है, मगर उसे, संयुक्त राष्ट्र की मुखअय संस्थाओं के मसौदा प्रस्तावों और निर्णयों में वोट डालने का अधिकार हासिल नहीं है.
सुरक्षा परिषद के मतभेद जारी
यूएन महासभा अध्यक्ष डेनिस फ़्रांसिस ने कहा है कि बुधवार की चर्चा, ग़ाज़ा युद्ध जारी रहने और इस पृष्ठभूमि में आयोजित हुई है जब ग़ाज़ा युद्ध के बारे में, सुरक्षा परिषद में मतभेद जारी हैं जिससे वो अपनी ज़िम्मेदारियाँ सटीक ढंग से नहीं निभा पा रही है.
उन्होंने सदस्य देशों को इस चर्चा को एक ऐसे अवसर के रूप में इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित किया कि संयुक्त राष्ट्र के दो प्रमुख अंग – महासभा और सुरक्षा परिषद, एक साथ मिलकर काम कर सकें और फ़लस्तीन का सवाल के एक व्यापक और दीर्घकालिक समाधान तलाश कर सकें.
अमेरिका: फ़लस्तीन की सदस्यता के ख़िलाफ़ नहीं
संयुक्त राज्य अमेरिका के उप प्रतिनिधि रॉबर्ट वुड ने कहा कि सुरक्षा परिषद के एक स्थाई सदस्य के नाते, उनके देश पर यह सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी है कि उसकी कार्रवाइयाँ अन्तरराष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा को आगे बढ़ाएँ, और ये यूएन चार्टर के अनुरूप होना चाहिए.
उन्होंने कहा कि नए सदस्यों के प्रवेश पर समिति की रिपोर्ट में ये झलकता है कि सदस्यों के बीच इस बारे में सहमति नहीं थी कि क्या आवेदक देश (फ़लस्तीन), सदस्यता के लिए, यूएन चार्टर के अनुच्छेद-4 में निर्धारित अहर्ताएँ पूरी करता है या नहीं. इनमें ये सवाल भी शामिल है कि क्या फ़लस्तीन एक देश माने जाने की ज़रूरतें भी पूरी करता है.
रॉबर्ट वुड ने इस सम्बन्ध मनें कहा कि अमेरिका लम्बे समय से फ़लस्तीनी प्राधिकरण आवश्यक सुधार किए जाने की मांग करता रहा है. उन्होंने यह भी ध्यान दिलाया कि “हमास, जोकि एक आतंकवादी संगठन है, वो इस समय ग़ाज़ा में अपनी शक्ति और प्रभाव का प्रयोग कर रहा है, और इस प्रस्ताव में जिस देश का ख़ाका पेश किया गया है, उसमें ग़ाज़ा भी एक अभिन्न हिस्सा है.”
अमेरिकी राजदूत ने कहा कि उनका देश इसराइल और फ़लस्तीन के रूप में दो देशों के समाधान की ज़ोरदार हिमायत करता है और सुरक्षा परिषद में वीटो का प्रयोग, फ़लस्तीनी देश की स्थापना का विरोध नहीं दिखाता, बल्कि वो इस बात की स्वीकार्यता को दिखाता है कि ये समाधान, पक्षों के दरम्यान सीधे बातचीत के माध्यम से ही निकलेगा.
फ़लस्तीन: यूएन सदस्यता के लिए सही समय
संयुक्त राष्ट्र में फ़लस्तीन के स्थाई पर्यवेक्षक रियाद मंसूर ने कहा कि वो यूएन महासभा में ऐसे समय में अपनी बात रख रहे हैं “जब फ़लस्तीनी लोगों का जनसंहार, निर्बाध जारी है”.
उन्होंने कहा कि तत्काल युद्ध विराम लागू किया जाना बहुत ज़रूरी है जिसकी पुकार महासभा लम्बे समय से लगाती रही है और सुरक्षा परिषद ने भी इसकी मांग कर दी है.
रियाद मंसूर ने कहा कि फ़लस्तीन को संयुक्त राष्ट्र की पूर्ण सदस्यता मिलना लम्बे से प्रतीक्षित है. “हम यह कभी स्वीकार नहीं करेंगे कि फ़लस्तीनी लोगों के आत्म-निर्णय का अधिकार, पूर्ण देश और संयुक्त राष्ट्र की पूर्ण सदस्यता का अधिकार, किसी भी तरह से इसराइली वीटो पर निर्भर बनाया जाए.”
उन्होंने कहा कि फ़लस्तीन इस मुद्दे को, महासभा के 10वें आपात विशेष सत्र में फिर से पेश करेगा और सुरक्षा परिषद से, फ़लस्तीन की अर्ज़ी पर फिर से विचार करने का आग्रह करेगा.
फ़लस्तीनी स्थाई पर्यवेक्षक रियाद मंसूर ने हर एक सदस्य देश से, ग़ाज़ा में क़त्लेआम को रोकने के लिए हर सम्भव प्रयास करने और स्वतंत्रता व शान्ति को आगे बढ़ाने का आहवान किया.
उन्होंने कहा, “फ़लस्तीन को एक पूर्ण देश के रूप में मान्यता दिए जाने का अभी बिल्कुल सटीक समय है”, और उन्होंने 140 से अधिक उन देशों का आभार प्रकट किया जिन्होंने इस दिशा में “महत्वपूर्ण क़दम” उठाया है.
रियाद मंसूर ने कहा, “जिन देशों ने अभी फ़लस्तीन को एक देश के रूप में मान्यता नहीं दी है, हम उनसे कहना चाहते हैं कि अब और देरी के लिए कोई आधार नहीं बचे हैं…”
इसराइल का रुख़
संयुक्त राष्ट्र में इसराइल के राजदूत गिलाद ऐरदान ने ध्यान दिलाते हुए कहा कि मंगलवार को पासओवर अवकाश समाप्त हुए हैं और “हर एक यहूदी परिवार अपने दिलों में एक बड़ा शून्य समाए हुए है” क्योंकि वो 7 अक्टूबर के अत्याचारों से नहीं उबरे हैं, और इन सदमों में हमास द्वारा बन्धक बनाए गए लोगों की तकलीफ़ों की पीड़ा भी शामिल है.
उन्होंने कहा, “ऐसे में जबकि बहुत से लोगों ने ये पासओवर तकलीफ़ों के साथ गुज़ारा है, संयुक्त राष्ट्र, वो तकलीफ़ें देने वालों को सम्मानित करने के लिए एक बार फिर कोशिश कर रहा है.”
“संयुक्त राष्ट्र को इसराइल की कोई परवाह नहीं है. ना हमारी सुरक्षा की, ना हमारे भविष्य की और ना ही बन्धकों की.”
इसराइली राजदूत ने कहा कि हमास की कभी निन्दा नहीं की गई है औ ना ही इसराइली बन्धकों के बारे में, एक भी संयुक्त राष्ट्र पहल नज़र आई है.
राजदूत गिलाद ऐरदान ने कहा कि फ़लस्तीनी प्राधिकरण, देश बनने के लिए अहर्ता पूरी नहीं करता, और किसी भी फ़लस्तीनी नेता ने, हमास की निन्दा नहीं की है.
उन्होंने कहा कि फ़लस्तीन को संयुक्त राष्ट्र की पूर्ण सदस्यता दिए जाने को दो “विनाशकारी परिणाम” होंगे – आतंकवाद को बढ़ावा और फ़लस्तीनियों को यह स्पष्ट सन्देश भेजना कि, समायोजन और समझौते करना तो दूर की बात, उन्हें कभी भी बातचीत की मेज़ पर बैठने की ज़रूरत नहीं होगी.