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पेरिस 2024 पैरालम्पिक खेलों में शरणार्थी दल, ‘हम सभी के लिए प्रेरणा स्रोत’

शरणार्थी पैरालम्पिक खिलाड़ियों का यह दल, विश्व भर में 12 करोड़ जबरन विस्थापितों और 1.2 अरब विकलांगजन का प्रतिनिधित्व करेगा.

पैरालम्पिक गेम्स, विकलांगता की अवस्था में रह रहे एथलीट के लिए सबसे बड़ा खेलकूद आयोजन है, जिसे हर चार वर्ष में एक बार आयोजित किया जाता है.

ये आठ एथलीट छह देशों से हैं और निम्न छह खेल स्पर्धाओं में हिस्सा लेंगे: पैरा एथलेटिक्स, पैरा पावरलिफ़्टिंग, पैरा टेबल टेनिस, पैरा ताइक्वान्डो, पैरा ट्राएथलोन, व्हीलचेयर फ़ेंसिंग.

अन्तरराष्ट्रीय पैरालम्पिक समिति के अध्यक्ष ऐंड्रयू पार्सन्स ने बताया कि वैसे तो सभी पैरालम्पिक खिलाड़ियों के पास सहनसक्षमता के अविश्वसनीय अनुभव हैं. मगर, शरणार्थियों के तौर पर युद्ध व उत्पीड़न से होकर गुज़रना और फिर उनका पैरालम्पिक खेलों तक पहुँच कर स्पर्धाओं में हिस्सा लेना, बेहद प्रेरणादायक है.

उन्होंने कहा कि इन एथलीट्स ने पेरिस 2024 तक पहुँचने के लिए अविश्वसनीय दृढ़ता व संकल्प का परिचय दिया है और इनसे विश्व में हर शरणार्थी को उम्मीद मिलेगी.

“शरणार्थी पैरालम्पिक टीम, खेलकूद के रूपान्तरकारी असर को रेखांकित करती है.”

‘सपने देखना मत छोड़ो’

ऐमिलियो कास्त्रो ग्रुएसो अब इटली में रहते हैं और पेरिस 2024 में व्हीलचेयर फ़ेंसिंग में हिस्सा लेने के लिए तैयार हैं.

जब वो 16 वर्ष के थे, तो उनकी माँ का निधन हो गया. 4 साल बाद उन्हें एक और यंत्रणा से गुज़रना पड़ा जब एक सड़क हादसे में उनके पाँव निष्क्रिय हो गए.

धमकियों व ख़तरों की वजह से उन्हें अपनी मातृभूमि छोड़कर भागना पड़ा. वे एक नए देश में एक व्हीलचेयर में पहुँचे, और उन्हें स्थानीय भाषा नहीं आती थी और ना ही उनकी मदद करने के लिए कोई था.

अपने जीवन को फिर से पटरी पर लाने के बाद, उन्होंने अपनी कहानी साझा करने के लिए एक किताब लिखने की ठानी, मगर यह महसूस किया कि यदि वे एक पदक जीतने वाले एथलीट होते तो शायद अधिक संख्या में लोग उनकी किताब पढ़ते.

ऐमिलियो कास्त्रो ग्रुएसो ने अपनी अब तक सबसे बड़ी उपलब्धि के तौर पर, मई 2024 में ब्राज़ील में अमेरिकी चैम्पियनशिप में व्हीलचेयर फ़ेंसिंग में कांस्य पदक जीता.

उनके अनुभव ने दर्शाया है कि विकट हालात व कठिनाइयों के बावजूद, जीवन का सबसे अहम सबक़ है कि हमें कभी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए.

“कभी सपने देखना मत छोड़िए और भले ही आपका जीवन या कोई क्षण कितना ही कठिन क्यों ना हो, हिम्मत ना हारें, और लड़ाई जारी रखें.”

‘हम सभी के लिए प्रेरणास्रोत’

अन्य शरणार्थी एथलीट में सीरिया के इब्राहिम अल हुसैन भी हैं. सीरिया में गृहयुद्ध के दौरान 2012 में अपने मित्र को बचाते समय एक विस्फोट में उन्होंने अपना पाँव खो दिया.

उसके बाद वो एक व्हीलचेयर में ग्रीस चले गए, मगर उनकी जेब ख़ाली थी. इसके बाद उन्होंने एक लम्बा सफ़र तय किया और यह तीसरी बार है जब इब्राहिम अल हुसैन शरणार्थी पैरालम्पिक टीम का प्रतिनिधित्व करेंगे.

वहीं, कैमरून के गिलॉम जूनियर अतनगाना दूसरी बार पैरालम्पिक खेलों की तैयारी में जुटे हैं. इससे पहले, टोक्यो 2020 में 400 मीटर दौड़ में चौथे स्थान पर आए थे.

वह एक बड़े फ़ुटबॉलर बनना चाहते थे, लेकिन अपनी नज़रें खो देने के बाद वह एथलीट बनने की दिशा में मुड़ गए. इस साल, वह अपने गाइड और साथी शरणार्थी डोनार्ड न्दिम न्यामुजा के साथ खड़ें होंगे.

पैरालम्पिक खेलों में हिस्सा लेने वाले सभी खिलाड़ियों की ये कहानियाँ, उनके द्वारा झेली गई तमाम विपरीत परिस्थितियों व चुनौतियों को दर्शाती हैं, मगर यह एक प्रेरणा भरा सन्देश भी है कि कुछ भी असम्भव नहीं है.

शरणार्थी पैरालम्पिक टीम की प्रमुख न्याशा म्हाराकुरवा ने बताया कि यह टीम हम सभी के लिए एक प्रतिमान स्थापित करती है. “उनके लिए हालात भले ही कितने भी कठिन रहे हों, इन एथलीट ने पैरालम्पिक खेलों में सबसे ऊँचे स्तर पर स्पर्धाओं में हिस्सा लेने के लिए अपना रास्ता खोज ही लिया.”

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