यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने, मंगलवार को पार-अटलांटिक दास व्यापार के पीड़ितों के लिए अन्तरराष्ट्रीय स्मरण दिवस के अवसर पर, यूएन महासभा को सम्बोधित करते हुए आगाह किया कि प्रणालीगत नस्लवाद, आर्थिक बहिष्कार और नस्लीय हिंसा, अफ़्रीकी मूल के लोगों के आगे बढ़ने के अवसर से वंचित कर रही है.
उन्होंने कहा, “बहुत लम्बे समय से, पार-अटलांटिक दास व्यापार के अपराध – और उनके चल रहे प्रभाव – अनजाने, अनकहे और अनसुलझे रहे हैं.”
उन्होंने इसके इतिहास को मिटाने, आख्यानों को बदलकर लिखने और दासता के आन्तरिक नुक़सान को ख़ारिज किए जाने की निन्दा की.
उन्होंने कहा, “दासता से प्राप्त अश्लील लाभ और व्यापार को आधार देने वाली नस्लवादी विचारधाराएँ, अब भी हमारे साथ हैं.”
शोषण की चार शताब्दियाँ
चार शताब्दियों से अधिक समय तक, अनुमानतः ढाई से 3 करोड़ अफ़्रीकी लोग, जोकि उस समय महाद्वीप की आबादी का लगभग एक तिहाई संख्या थी, उसे जबरन उनके वतन से हटाया गया.
पार-अटलांटिक की क्रूर यात्रा में बहुत से लोग जीवित नहीं बच नहीं पाए.
शोषण और पीड़ा – परिवार तितर-बितर हो गए, पूरे समुदाय नष्ट हो गए और पीढ़ियों को ग़ुलामी में डाल दिया गया, ये सब कृत्य लालच से प्रेरित थे और इन कृत्यों को, नस्लवादी विचारधाराओं के ज़रिए क़ायम रखा गया, जो आज भी प्रचलित हैं.
संयुक्त राष्ट्र ने, उस अमानवीय चलन के पीड़ित लोगों को सम्मानित करने और उन्हें याद करने के लिए, वर्ष 2007 में 25 मार्च को ग़ुलामी और पार-अटलांटिक दास व्यापार के पीड़ितों की याद का अन्तरराष्ट्रीय दिवस घोषित किया.
यह दिन, 1807 में ब्रिटेन में दास व्यापार उन्मूलन अधिनियम के पारित होने का प्रतीक है, जो हेती क्रान्ति के तीन साल बाद घटित हुआ था.
फ्रांसीसी शासन से मुक्ति ने हेती गणराज्य की स्थापना की जोकि, ग़ुलाम पुरुषों और महिलाओं के कार्यों के आधार पर स्वतंत्रता प्राप्त करने वाला पहला देश बना.
आज़ादी की क़ीमत चुकाने की मजबूरी
संयुक्त राष्ट्र प्रमुख ने कहा कि ग़ुलामी समाप्त होने के बाद भी, इसके पीड़ितों को मुआवज़ा नहीं दिया गया और बहुत से मामलों में, पहले ग़ुलाम बनाए गए लोगों को अपनी आज़ादी के लिए क़ीमत अदा करने के लिए मजबूर किया गया.
एंतोनियो गुटेरेश ने कहा, “आज केवल स्मरण का दिन नहीं है. यह ग़ुलामी और उपनिवेशवाद की स्थाई विरासतों पर चिन्तन करने और आज उन बुराइयों से लड़ने के हमारे संकल्प को मजबूत करने का दिन भी है.”
पक्के इरादे के साथ आगे बढ़ें
यूएन प्रमुख एंतोनियो गुटेरेश ने देशों की सरकारों, व्यवसायों और नागरिक समाज से, नस्लवाद और भेदभाव के ख़िलाफ़ निर्णायक कार्रवाई करने का आग्रह किया.
उन्होंने साथ ही, देशों राष्ट्रों से नस्लीय भेदभाव के सभी रूपों के उन्मूलन पर अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन को पूरी तरह से लागू करने और अपने मानवाधिकार दायित्वों का पालन करने का आग्रह भी किया.
उन्होंने ज़ोर देकर कहा, “इस सच्चाई को स्वीकार करना न केवल आवश्यक है – बल्कि अतीत की ग़लतियों को दूर करने, वर्तमान को सुधारने और सभी के लिए सम्मान और न्याय का भविष्य बनाने के लिए भी, ऐसा करना महत्वपूर्ण है.”
दाग़ आसानी से नहीं मिटते
महासभा के अध्यक्ष फ़िलेमॉन यैंग ने महासचिव की चिन्ताओं को दोहराते हुए कहा कि दास प्रथा को औपचारिक रूप से समाप्त कर दिया गया था, लेकिन इसकी विरासत नस्लीय असमानताओं में बनी हुई है जो पीढ़ियों तक फैली हुई है.
उन्होंने आवास, रोज़गार, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा व आपराधिक न्याय प्रणालियों में चल रही असमानताओं की ओर इशारा करते हुए कहा, “अन्याय के दाग़ आसानी से नहीं मिटते.”
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि इन अन्यायों को दूर करने के लिए, न केवल ग़लतियों की स्वीकृति की आवश्यकता है, बल्कि ठोस नीतिगत बदलावों की भी आवश्यकता है जो समानता और समावेश सुनिश्चित करें.
फ़िलेमॉन यैंग ने इन दर्दनाक विरासतों का सामना करने में शिक्षा के महत्व को भी रेखांकित किया.
उन्होंने दासता और उसके परिणामों के व्यापक इतिहास को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने के लिए वैश्विक प्रयास का आहवान किया.
