बौद्धिक सम्पदा, आनुवंशिक संसाधन और सम्बन्धित परम्परागत ज्ञान पर इस सन्धि पर शुक्रवार को सहमति हुई है जिसमें आदिवासी जन और स्थानीय समुदायों के अधिकारों के संरक्षण से सम्बन्धित प्रावधान भी शामिल किए गए हैं.
जिनीवा में इस सन्धि को सर्वसम्मति से स्वीकृति मिली जिसके साथ ही, इस सन्धि के लिए वर्ष 2001 में शुरू हुई वार्ताएँ सम्पन्न हो गई हैं.
WIPO के महानिदेशक डैरेन टैंग ने इस अवसर पर कहा, “आज हमने अनेक रूपों में इतिहास बनाया है. एक दशक में यह WIPO की ना केवल पहली नई सन्धि है बल्कि यह पहली ऐसी सन्धि भी है जो आदिवासी जन और स्थानीय समुदायों के आनुवंशिक संसाधनों और परम्परागत ज्ञान पर केन्द्रित है.”
सन्धि के बारे में
इस सन्धि में कहा गया है कि जहाँ किसी पेटेंट अर्ज़ी में आनुवंशिक संसाधनों का बारे में बात होती हो, तो आवेदक को उसके मूल देश या स्रोत के बारे में जानकारी मुहैया करानी होगी.
अगर किसी पेटेंट अर्ज़ी में आनुवंशिक संसाधनों से सम्बन्धित परम्परागत ज्ञान की बात होती हो तो आवेदक को, उन आदिवासी जन या स्थानीय समुदाय की जानकारी देनी होगी जिन्होंने वो ज्ञान या संसाधन उपलब्ध कराए हैं.
चिकित्सा सम्पदाओं वाले पौधों और कृषि फ़सलों जैसी चीज़ों में पाए जाने वाले आनुवंशिक संसाधनों का प्रयोग अक्सर, पेटेंट नवाचारों में किया जाता है, अलबत्ता उनका स्वयं का पेटेंट नहीं किया जा सकता.
इन संसाधनों से सम्बन्धित परम्परागत ज्ञान, जिन्हें आदिवासी जन पीढ़ियों से सहेजते आए हैं और उसका प्रयोग करते आए हैं, उनकी वैज्ञानिक शोध और नए आविष्कारों के विकास में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है.
अगले क़दम
यह सन्धि 15 सम्बद्ध पक्षों द्वारा स्वीकृत होने के बाद, एक ऐसा अन्तरराष्ट्रीय क़ानूनी फ़्रेमवर्क स्थापित करेगी जिसमें पेटेंट आवेदकों को, उनके आविष्कारों में प्रयोग किए गए आनुवंशिक संसाधनों और सम्बन्धित परम्परागत ज्ञान के मूल स्रोत के बारे में जानकारी देनी अनिवार्य होगी.