यूनीसेफ़ प्रतिनिधि ऐलिस अकुंगा के अनुसार, नेपाल में बाल विवाह एक अहम मुद्दा है, जो लड़कियों पर नकारात्मक प्रभाव डालता है. वर्ष 2006 में, देश में बाल विवाह का स्तर 60 प्रतिशत था. सरकार और यूनीसेफ़ समेत अन्य साझीदारों के प्रयासों से 2022 में, इस आँकड़े में गिरावट आई और यह 35 प्रतिशत पर पहुँच गया. मगर, यह अब भी एक बड़ी संख्या है और हर तीन लड़कियों में से एक बाल विवाह की शिकार है.
आर्थिक कठिनाई, शिक्षा तक पहुँच की कमी, सांस्कृतिक मानदंड और लैंगिक असमानता इस प्रथा को बढ़ावा दे रही है, जिसका युवा लड़कियों पर विनाशकारी प्रभाव हो रहा है. इस समस्या से लड़के भी प्रभावित हैं, हालांकि उनकी संख्या लड़कियों की तुलना में कम है. हर 10 में से एक लड़के को कम उम्र में विवाह करने के लिए मजबूर होना पड़ता है.
इस बातचीत को स्पष्टता व संक्षिप्तता के लिए सम्पादित किया गया है.
यूएन न्यूज़: आज भी, लगभग 3 में से 1 लड़की की शादी बचपन में ही कर दी जाती है. इसके मुख्य कारक क्या हैं?
यूनीसेफ़ प्रतिनिधि: कई चुनौतियाँ हैं, कई कारण हैं, और ये सभी आपस में जुड़े हुए हैं, जो अन्तत: लड़कियों, परिवारों, उनके व्यक्तिगत विकास, देश और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव डालते हैं. उनमें से एक वजह है: असमर्थता – शिक्षा की मौजूदगी तो है, लेकिन इसकी अपनी छिपी हुई क़ीमतें हैं, जो दिखाई नहीं देती हैं.
बेहद ग़रीब इलाक़ों या हाशिए पर रह रहे कुछ परिवारों के लिए स्कूल की फ़ीस, किताबें और यहाँ तक कि भोजन जैसी बुनियादी ज़रूरतें जुटाना मुश्किल है. इसलिए उन माता-पिता पर बहुत दबाव पड़ता है, जो अपनी बेटियों को स्कूल भेजने के ख़र्च उठाने के बारे में सोचते हैं.
दूसरी वजह दूरी है. हाशिए पर रहने वाले कुछ ग्रामीण समुदायों के लिए दूरी और जगह बहुत चुनौतीपूर्ण है. इन लड़कियों के लिए हर सुबह इतनी दूर चलना और वापिस आना जोखिम भरा है, जिसकी वजह से कई लड़कियाँ स्कूल जाना बन्द कर देती हैं.
फिर सांस्कृतिक प्रथाएँ भी हैं. इनमें से कुछ सामाजिक मानदंड लड़कियों के स्कूल जाने के प्रति इतने सहायक नहीं हैं. इनमें लड़कियों को लड़कों जितना महत्व नहीं दिया जाता है.
एक सांस्कृतिक समाज में, बतौर लड़की कई प्रकार के बोझ के साथ रहना होता है. लड़कियों को घरेलू काम करने पड़ते हैं, जो उन पर बहुत बोझ डालते हैं, और समय के साथ वे इसका सामना नहीं कर पाती हैं. माता-पिता यह पसन्द करते हैं कि लड़कियाँ इनमें से कुछ काम करें, जिसमें शिक्षा के बजाय अपने भाई-बहनों की देखभाल करना भी शामिल है.
यूएन न्यूज़: आपने बाल विवाह के कई कारणों का ज़िक्र किया है. कम उम्र में शादी होने से बच्चों पर होने वाले प्रभाव को आप किस तरह से देखती हैं?
यूनीसेफ़ प्रतिनिधि: इसके प्रभाव बहुत बड़े हैं और ये लड़की के पूरे जीवन पर पड़ते हैं. पहला स्वास्थ्य सम्बन्धी प्रभाव है. जब लड़कियों की जल्दी शादी हो जाती है, तो वे पूरी तरह से विकसित नहीं होती हैं. जब गर्भावस्था की बात आती है, तो उसे पूर्ण अवधि ले जाने तक की क्षमता या गर्भवती माँ के रूप में और बच्चे के भी स्वस्थ विकसित होने में सक्षम होने का सवाल होता है.
यह दाँव पर लगा होता है और कभी-कभी यह जटिलताओं और कभी-कभी मृत्यु के साथ समाप्त होता है. यह युवा लड़कियों के लिए बहुत गम्भीर है. शिक्षा हमारे लिए एक और गम्भीर चिन्ता का विषय है, क्योंकि उनकी शादी जल्दी हो जाती है, वो अभी तक सीखने और शिक्षा के चक्र से नहीं गुज़री हैं.
उनके पास कौशल नहीं है. वो अपना ख़र्च नहीं उठा सकती हैं, जो उनके स्वयं के विकास को बाधित करता है. मगर इसका असर समाज पर भी पड़ता है, क्योंकि तब आपके पास एक ऐसी आबादी होती है, जो अपनी पूरी क्षमता तक नहीं पहुँच पाई है और देश के आर्थिक विकास में उत्पादक रूप से योगदान नहीं दे पाएगी.
अन्त में, हिंसा भी एक बड़ा कारण है, जिन लड़कियों का विवाह जल्दी हो जाता है, वे निर्णय लेने के लिए बहुत छोटी होती हैं और उन्हें पता नहीं होता कि क्या सही है. और, जब वे बड़ी होती हैं, तब भी उनमें से ज़्यादातर हिंसा की शिकार होती हैं. उन लड़कियों की तुलना में जो शिक्षित और सशक्त होती हैं, वो निर्णय लेने और अपने विकास और आगे बढ़ने में सक्षम होती हैं.
यूएन न्यूज़: हमने लड़कियों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में बहुत कुछ समझा है. नेपाल उन देशों में से एक है, जहाँ 18 वर्ष से कम उम्र के लड़कों की भी उनके माता-पिता द्वारा शादी कर दी जाती है. लड़कों की स्थिति में क्या चुनौतियाँ हैं?
यूनीसेफ़ प्रतिनिधि: लड़के भी स्कूल छोड़ सकते हैं और नेपाल में हम जो देख रहे हैं, इसकी वजह पलायन है. इनमें से बहुत से युवा लड़के देश से बाहर जा रहे हैं. वे माध्यमिक शिक्षा पूरी करने से पहले ही देश से बाहर जा रहे हैं. और, जो लोग पूरी कर चुके हैं, उनके पास कोई कौशल नहीं है, इसलिए वे बस देश से बाहर जा रहे हैं.
वो जाने से पहले शादी करना चाहते हैं और अपनी पत्नी को घर की देखरेख के लिए छोड़ना चाहते हैं.
इसका उनके विकास पर भी असर होता है. इसका देश के विकास और समाज के विकास पर प्रभाव पड़ता है, क्योंकि जब युवा पुरुष चले जाते हैं, तो समाज में कौन है – जो उस समुदाय और गाँव का निर्माण करेगा. जब वे वहांँ होंगे, तो परिवार की देखभाल करेंगे.
इसलिए यह हमारे लिए भी एक गम्भीर चिन्ता का विषय है, क्योंकि यूनीसेफ़ और मुझे लगता है कि कई लोग चाहते हैं कि ये युवा, जो देश छोड़ रहे हैं, वे यहाँ रहें, यहाँ काम करें, यहाँ अवसर पाएँ और नेपाल के आर्थिक विकास में योगदान दें.
यूएन न्यूज़: आपने 2006 की तुलना में सकारात्मक तस्वीर पेश की, जहाँ यह आँकड़ा 65 प्रतिशत से घटकर लगभग 35 प्रतिशत तक पहुँच गया है. मौजूदा समय में बाल विवाह से निपटने के लिए यूनीसेफ़ क्या विशेष प्रयास कर रहा है?
यूनीसेफ़ प्रतिनिधि: हम सरकार के नेतृत्व में बहुत से काम कर रहे हैं. और हम विकास साझीदारों, ग़ैर-सरकारी संगठनों, समुदायों और उप-राष्ट्रीय स्तर निकायों के साथ मिलकर काम कर रहे हैं. इस क्षेत्र में, हमने बहुत योगदान दिया है, ख़ासकर जब सरकारों की नीतियों को मज़बूत करने की बात आती है.
इसमें बाल विवाह को समझने, उसके विरुद्ध लड़ाई में सक्षम होने के लिए कार्यालय में मौजूद लोगों की क्षमता का निर्माण और संसाधन के साथ ही समाधानों को लागू करना शामिल है.
एक अन्य बात है, उदाहरण के तौर पर हमने “नेपाल में बाल विवाह की समाप्ति” नाम के एक कार्यक्रम को चलाया है, जो कई आयामों को देखता है. यह सामाजिक और सुरक्षा सेवाओं का लाभ उठाने पर ध्यान केन्द्रित करता है.
यह युवा लड़कियों को सशक्त बनाने, उनके वित्तीय कौशल का निर्माण करने और सशक्त बनाने पर ध्यान केन्द्रित करता है, जिससे उन्हें रोज़गार के अवसर मिल सकें.
नेपाल में विशेष रूप से इसे परिवर्तनकारी समझा जाता है. यह युवा लड़कियों को सशक्त बनाने, उनके अधिकारों को समझने, समुदायों को प्रभावित करने, बाल विवाह को नकारने और अपनी आवाज़ उठाने के लिए स्कूलों में संचालित किया जाता है. यह स्कूल से बाहर, स्कूल न जाने वाली लड़कियों के लिए समुदायों के भीतर भी चलाया जाता है. यहाँ, हम माता-पिता के साथ, समुदायों के साथ मिलकर काम करते हैं.
यूएन न्यूज़: नेपाल में किशोरियों में निवेश करना क्यों महत्वपूर्ण है?
यूनीसेफ़ प्रतिनिधि: देश में 30 लाख किशोर हैं. यह एक बहुत बड़ी सँख्या है. कुछ वर्षों में, ये किशोर-किशोरी वयस्क हो जाते हैं और उन्हें काम करना चाहिए, अपने परिवार और समुदाय का भरण-पोषण करना चाहिए और देश की उत्पादकता में योगदान देना चाहिए.
इसलिए यदि आप 30 लाख लोगों को अर्थव्यवस्था की उत्पादकता में योगदान करने से रोकते हैं, तो आप आर्थिक विकास को रोक रहे हैं.
इसलिए, किशोरियों में निवेश उनके लिए, परिवारों के लिए और देश के लिए अच्छा है. ये उनके अधिकार हैं. यह एक कल्याणकारी मुद्दा है, जो व्यक्तिगत विकास और वृद्धि से जुड़ा है. जो लड़कियाँ शिक्षित हैं और भविष्य में माँ बनती हैं, वे अपने बच्चों को शिक्षित करने, उनके लिए भरण-पोषण करने और इस तरह ग़रीबी से बाहर निकलने के मामले में बेहतर स्थिति में हैं.
