हर वर्ष 23 अप्रैल को मनाए जाने वाले, विश्व पुस्तक और कॉपीराइट दिवस से पहले, तुर्कीये के अदियामन में IOM के मीको अलाज़स ने, एक पुस्तक प्रेमी – मोहम्मद से मुलाक़ात की, जो किताबों की शक्ति के ज़रिए अपने समुदाय के ज़ख्म भरने की कोशिश कर रहे हैं.
मोहम्मद को वो दिन अच्छी तरह याद है जब उनके चाचा ने उन्हें पहली बार एक कहानी की किताब उपहार में दी थी. यहीं से, 10 साल की छोटी सी उम्र में, साहित्य और कविता से उनके प्रेम की शुरुआत हुई.
उन्होंने बड़े होकर अपने दोस्तों के साथ मिलकर पुस्तक क्लब समारोह आयोजित करने शुरू किए. किशोरावस्था में भी वे पुस्तक मेलों का आयोजन करते थे. फिर विश्वविद्यालय की शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में काम किया.
उम्र के 20वें दशक में ही उन्होंने अपने सेवानिवृत्त जीवन की तैयारी कर ली थी. उनका सपना था किताबों की दुकान खोलना.
जब 2023 में उनके गृहनगर अदियामान में भूकम्प आया, तो चारों ओर तबाही का मंज़र पसर गया. उन्होंने सोचा भी नहीं था कि इन हालात में उनकी सेवानिवृत्ति योजना दशकों पहले पूरी होकर, लोगों के लिए एक मरहम का काम करेगी.
मोहम्मद, भूकम्प के तुरन्त बाद की भयावह स्थिति याद करते हुए बताते हैं, “मैंने अपने कई रिश्तेदारों को खो दिया और भयानक हालात से रूबरू हुआ. ऐसे में, हम सभी को अच्छे पड़ोसियों की तरह, एक समुदाय के तौर पर एकजुट होना ज़रूरी था.”
चिकित्सा के लिए इस्तान्बुल में कुछ समय बिताने के बाद वो, इसी पशोपेश में अदियामन लौटे थे कि आगे क्या करेंगे.
इसी दौरान, अधिकारियों ने पुनर्बहाली योजनाओं के हिस्से के रूप में, शहर के बीचों-बीच एक ‘सामाजिक बाज़ार’ स्थापित किया था – जहाँ लोगों की ज़रूरतें पूरी करने व आर्थिक गतिविधियों की बहाली के लिए विभिन्न दुकानें खोले जाने की योजना थी. इस योजना में पुस्तकों की एक दुकान भी शामिल थी.
अपने पुस्तक-प्रेम के लिए समुदाय में पहले से ही मशहूर मोहम्मद का नाम, किताबों की दुकान खोलने योग्य लोगों की सूची में सबसे ऊपर था.
उन्होंने बताया, “इस प्रयास का नेतृत्व करने के लिए अधिकारियों ने मुझे चुना और तुर्किये रैड क्रैसेंट ने इसके लिए पुस्तकों का पहला सेट प्रदान किया. मैंने शून्य से शुरुआत की. भूकम्प में सब कुछ तबाह जो हो गया था.”
वो जानते थे कि यह काम आसान नहीं था, लेकिन उन्हें विश्वास था कि पुस्तकों के ज़रिए उनके समुदाय को इस दर्द से उबरने में मदद मिल सकती है.
“मेरा लक्ष्य था, किताबों के ज़रिए लोगों को इस त्रासदी से उबरने में मदद करना. पुस्तकें बहुत कुछ सिखा सकती हैं – पुस्तकों के माध्यम से दर्द से लेकर ख़ुशी तक सभी भावनाएँ महसूस की जा सकती हैं.”
उन्होंने लोहे की पुरानी अलमारियों से अपने पुस्तकघर की शुरुआत की, लेकिन वो उसे जल्द ही अधिक आकर्षक और आरामदायक बनाना चाहते थे.
इसके लिए उन्हें अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन (IOM) द्वारा दिए गए नक़द अनुदान कार्यक्रम से मदद मिली, जिससे मोहम्मद नई किताब अलमारियाँ ख़रीदने में सक्षम हुए.
IOM में आजीविका मामलों के राष्ट्रीय परियोजना अधिकारी, कैगलर येतिस्किन ने बताया, “नक़द अनुदान कार्यक्रम, भूकम्प प्रभावित क्षेत्र में पुनर्बहाली प्रयासों के लिए, आईओएम के व्यापक समर्थन का हिस्सा है.”
“हम स्थानीय अधिकारियों के साथ मिलकर काम करते हुए, चुनिन्दा उद्यमियों को वस्तुएँ या उपकरण ख़रीदने में मदद करते हैं, जिससे उन्हें अपने व्यवसाय को दोबारा स्थापित करने या उसका विस्तार करने में मदद मिलती है. इससे सामाजिक-आर्थिक गतिविधि आगे बढ़ाने में मदद मिलती है.”
मार्च 2024 तक, 10 प्रान्तों में 333 उद्यमियों को नक़द अनुदान प्राप्त हुआ है, जिनमें प्रवासी, शरणार्थी और मेज़बान समुदाय के सदस्य शामिल हैं. अनुदान के ज़रिए, भोजन, कपड़ा और सेवाएँ जैसे क्षेत्रों के लिए मदद दी गई है.
अब किताबों की दुकान खुले हुए लगभग एक साल हो चुका है. मोहम्मद इस बात से ख़ुश हैं कि कुछ समय पहले भयानक आपदा से गुज़रने के बावजूद, उन्हें जीवन की नई शुरूआत करने का यह अवसर मिला.
“मुझे यह व्यवसाय पसन्द है. मैं किताबों के आसपास रहकर ख़ुश हूँ. यहाँ मैं विभिन्न क्षेत्रों से आए लोगों से मिलता हूँ और अपने प्रत्येक ग्राहक के साथ मेरा एक अनूठा रिश्ता बन जाता है.”
इस समय मोहम्मद सार्वजनिक पुस्तकालयों को दोबारा स्थापित करने के प्रयास कर रहे हैं, जिनका नाम भूकम्प के दौरान मारे गए साहित्य शिक्षकों की स्मृति में रखा गया है.
उन्हें उम्मीद है कि इसके जरिए क़िताबें लोगों को और अधिक आसानी से उपलब्ध हो सकेंगी.
मोहम्मद कहते हैं, “जब आप किताब पढ़ते हैं, तो एक अलग दुनिया में पहुँच जाते हैं.”
मोहम्मद को उम्मीद है कि इस भयावह त्रासदी के बीच, उनकी किताबें, ग्राहकों को शान्ति व आशा भरी एक नई दुनिया में, राहत के कुछ पल बिताने में मदद करेंगी.