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जलवायु सम्बन्धी दुस्सूचना पर क़ाबू पाने के लिए, यूएन की नई पहल

जलवायु सम्बन्धी दुस्सूचना पर क़ाबू पाने के लिए, यूएन की नई पहल

इस समस्या से निपटने के लिए, मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र ने, संगठन की शैक्षिक एवं वैज्ञानिक एजैंसी, UNESCO तथा ब्राज़ील सरकार के साथ मिलकर, जलवायु परिवर्तन पर सूचना सत्यनिष्ठा के लिए एक नई वैश्विक पहल आरम्भ की है.

ब्राज़ील में G20 नेताओं के शिखर सम्मेलन के दौरान, इस संयुक्त पहल की घोषणा की गई. इसका उद्देश्य उस सभी प्रकार की दुस्सूचना से निपटने के लिए शोध एवं समाधान के तरीक़ों को मज़बूत करना है, जिससे जलवायु कार्रवाई में देरी होती है या वो पूरी तरह पटरी से उतर सकती है.

जी20 सम्मेलन में सतत विकास और ऊर्जा परिवर्तन पर सत्र के दौरान, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा कि इस पहल के तहत “जलवायु सम्बन्धी दुस्सूचना एवं दुष्प्रचार के ख़िलाफ़ कार्रवाई मज़बूत करने के लिए, शोधकर्ताओं और भागीदारों के साथ मिलकर काम किया जाएगा.”

एक सोशल मीडिया पोस्ट में उन्होंने कहा, “समन्वित दुष्प्रचार अभियान, जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर हो रही वैश्विक प्रगति में बाधा डाल रहे हैं.”

समय बीतता जा रहा है

वैज्ञानिक बार-बार आगाह कर रहे हैं कि दुनिया के पास बहुत कम समय बचा है. ऐसे में इस पहल से जलवायु कार्रवाई के लिए तात्कालिक समर्थन जुटाने में मदद मिलेगी.

यूएन महासचिव ने कहा, “हमें जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक प्रगति को बाधित करने वाले समन्वित दुष्प्रचार अभियानों से लड़ना होगा, जिसमें हरित लीपापोती’ (greenwashing) को सिरे से नकारने से लेकर, जलवायु वैज्ञानिकों का उत्पीड़न तक शामिल है.”

जलवायु सम्बन्धी दुष्प्रचार और उसके प्रभावों पर अनुसंधान के दायरे का विस्तार करने के मक़सद से शुरू किया गया यह प्रयास, रणनैतिक कार्रवाई, पैरोकारी एवं संचार को मज़बूत करने के लिए, दुनिया भर से प्रामाणिक जानकारी एकत्र करेगा.

इस अवसर पर, यूनेस्को की महानिदेशक, ऑड्री अज़ूले ने कहा कि “विश्वसनीय जानकारी तक पहुँच के बिना, हम कभी भी अस्तित्व से जुड़ी इस चुनौती से उबरने में क़ामयाब नहीं होंगे.”

प्रैस की भूमिका

व्यवसायों और सरकारों समेत विभिन्न हितधारकों से जवाबदेही की माँग करने में पत्रकारों की अहम भूमिका पर बल देते हुए, ऑड्री अज़ूले ने कहा कि प्रैस “विज्ञान और समाज के बीच एक पुल तरह है” – एक ऐसा पुल, जो बेहद “आवश्यक” है.

उन्होंने कहा, “इस पहल के ज़रिए, हम उन पत्रकारों और शोधकर्ताओं का समर्थन करेंगे, जो अक्सर स्वयं को जोखिम में डालकर, जलवायु से जुड़े मुद्दों की जाँच करते हैं. साथ ही, सोशल मीडिया पर बड़े पैमाने पर चल रहे जलवायु सम्बन्धी दुष्प्रचार से लड़ेंगे.”

यह पहल, सितम्बर में संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों द्वारा भविष्य के शिखर सम्मेलन में अपनाए गए, ‘ग्लोबल डिजिटल कॉम्पैक्ट’ में लिए संकल्पों का नतीजा है.

इसमें संयुक्त राष्ट्र संस्थाओं को, सरकारों एवं हितधारकों के सहयोग से, सतत विकास लक्ष्य हासिल करने के लिए, ग़लत एवं भ्रामक जानकारी के प्रभाव का आकलन करने के लिए प्रोत्साहित किया गया था. 

जलवायु संकल्प

इस पर हस्ताक्षर करने वाले देश, यूनेस्को-प्रशासित कोष में योगदान देंगे, जिसका लक्ष्य अगले 36 महीनों में प्रारम्भिक 1 से 1.5 करोड़ डॉलर जुटाना होगा. 

इस धनराशि को कार्रवाई के लिए अनुदान के रूप में ग़ैर-सरकारी संगठनों को वितरित किया जाएगा.

इसमें जलवायु सूचना सत्यनिष्ठा पर शोध, संचार रणनीतियों का विकास तथा जन जागरूकता अभियान भी शामिल होंगे.

अब तक, चिली, डेनमार्क, फ्रांस, मोरक्को, ब्रिटेन और स्वीडन की भागेदारी की पुष्टि हो चुकी है.

ब्राज़ील के राष्ट्रपति लूला डी सिल्वा ने कहा, “जलवायु परिवर्तन से निपटने की कार्रवाई पर इनकारवाद और दुष्प्रचार का बहुत प्रभाव पड़ता है. कोई भी देश अकेले इस समस्या से नहीं निपट सकता.”

“इस पहल के तहत, ब्राज़ील में COP30 की तैयारी में, दुस्सूचना व दुष्प्रचार से निपटने और कार्रवाई को बढ़ावा देने के संयुक्त प्रयासों के लिए, देशों, अन्तरराष्ट्रीय संगठनों एवं शोधकर्ताओं का नेटवर्क स्थापित किया जाएगा.”

तेज़ प्रसार

ख़ासतौर पर सोशल मीडिया, मैसेजिंग ऐप्स और जैनरेटिव एआई के ज़रिए, जलवायु सम्बन्धी दुष्प्रचार तेज़ी से फैल रहा है.

यूनेस्को के अनुसार, इसका गम्भीर प्रभाव सामने आ रहा है: इससे वैज्ञानिकों के बीच सहमति बनाना कठिन हो जाता है, अधिकारियों द्वारा संकट की प्रभावी प्रतिक्रिया देने की क्षमता बाधित होती है, और अग्रिम पंक्ति में काम करने वाले पत्रकारों एवं पर्यावरण रक्षकों की सुरक्षा को ख़तरा पैदा होता है.

जलवायु लक्ष्य हासिल करने की राह में, दुष्प्रचार से उत्पन्न जोखिम को जलवायु परिवर्तन पर अन्तर-सरकारी आयोग (IPCC) के विश्लेषण में भी जगह दी गई है. 

2022 के IPCC विश्लेषण में कहा गया था कि “जानबूझकर विज्ञान को दरकिनार करने से,” “जलवायु जोखिमों व तात्कालिकता की उपेक्षा होती है और वैज्ञानिक सहमति को लेकर भ्रम, अनिश्चितता व मतभेद पनपते हैं. 

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