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गाजीपुर के महारण में मुख्तार की मौत से सहानुभूति बटोर पाएगा अंसारी परिवार? BJP ने भी लगाया एड़ी चोटी का जोर, क्या कहता है वोटर

गंगा की गोद में बसा हुआ गाजीपुर। प्रसिद्ध लेखक और महाभारत जैसे सीरियल के संवाद लिखने वाले डॉक्टर राही मासूम रजा इसी धरती पर पैदा हुए। कभी यह कम्युनिस्टों की धरती थी। प्रसिद्ध वामपंथी नेता सरजू पांडे इसी धरती पर पैदा हुए। गंगा तट पर ही जनसंघ के नेता पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने कहा था कि जिस दिन गाजीपुर की धरती पर उनकी पार्टी का झंडा फहरेगा, उस दिन उत्तर प्रदेश की धरती पर जनसंघ की सत्ता होगी। इस चुनाव में इस धरती पर ऐसा चुनावी महाभारत हो रहा है, जिसमें सभी के अपने-अपने दावे हैं। अंसारी परिवार दावा कर रहा है कि यहां पर सहानुभूति के नाम पर वोट पड़ेंगे। किसके प्रति सहानुभूति? सपा नेता कहते हैं कि मुख्तार अंसारी के निधन के बाद लोगों में सहानुभूति है। अंसारी परिवार को लगता है कि लोग बहुत दुखी हैं और मुख्तार के जाने से परेशान भी, लेकिन जमीन पर इस तरह का कुछ दिखता नहीं है।

भारतीय जनता पार्टी ने इस बार मनोज सिन्हा की जगह पर पारस नाथ राय को मैदान में उतारा है। मनोज सिन्हा इस समय जम्मू कश्मीर के उप-राज्यपाल हैं। अफजाल अंसारी पिछले चुनाव में BSP के टिकट पर मनोज सिन्हा से लगभग एक लाख 20,000 वोटों से जीते थे। तब समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच चुनावी गठजोड़ था, लेकिन बाद में अफजाल अंसारी समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए और वो साइकिल पर सवार होकर मैदान में आ गए।

डंके की चोट पर BSP पर जा रहा उसका वोटर

बहुजन समाज पार्टी ने इस बार डॉक्टर उमेश कुमार सिंह को मैदान में उतारा है। उमेश कुमार सिंह बनारस यूनिवर्सिटी के महामंत्री रह चुके हैं, लेकिन पिछले चुनाव और इस चुनाव में काफी अंतर है। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के बीच गठजोड़ था। इसका असर मतदान पर हुआ था और परिणाम पर भी।-

इस बार बहुजन समाज पार्टी का मतदाता डंके की चोट पर हाथी की ओर मुड़ा है। गाजीपुर के ही दयाराम कहते हैं कि उनका वोट बहुजन समाज पार्टी को जाएगा। जबकि पिछली बार उन्होंने अफजाल अंसारी को वोट दिया था।

इस बार अफजाल को वोट क्यों नहीं देंगे? इस सवाल के जवाब में वो कहते हैं कि अफजाल अंसारी का चुनाव चिन्ह हाथी था, तब उन्हे वोट दिया था और इस बार साइकिल पर सवार हैं, लेकिन वो बसपा को ही वोट देंगे, चाहे कोई भी खड़ा हो।

कैसे बढ़ सकती है अफजाल अंसारी की मुश्किलें?

वास्तव में बसपा के मतदाताओं का अपने चुनाव चिन्ह हाथी पर ही वोट देने के लिए अडिग रहना अफजाल को भारी पड़ रहा है। अफजाल अंसारी से अगर दलित दूर रहा, तो उनके लिए मुश्किल हो सकती है, लेकिन बसपा के सामने दिक्कत यह है कि उसे अपना परंपरागत वोट तो मिल रहा है, लेकिन दूसरे मतदाताओं का समर्थन उस तरह नहीं मिल पा रहा है, जैसे हासिल होता था।

अफजाल अंसारी को मुस्लिम यादव और उनके समर्थक जो बड़ी संख्या में हैं, समर्थन कर रहे हैं। लेकिन यहां मुसलमान को छोड़कर दूसरे वर्ग में मुख्तार अंसारी की मृत्यु को लेकर ऐसी कोई सहानुभति नहीं है, जिसकी चर्चा समाजवादी पार्टी के नेता करते हैं।

अंसारी परिवार का असर

अफजाल अंसारी परिवार का इस इलाके में भारी प्रभाव रहा है। उनके परिवार को यहां के लोगों का समर्थन भी रहा है, लेकिन अब स्थितियों में बदलाव है। भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी पारस नाथ राय सीधे और सरल माने जाते हैं। उनका शिक्षण संस्थान है और खुद भी शिक्षक हैं।

यह आम धारणा है कि वो बहुत सीधे हैं और यह उनके लिए लाभ और हानि दोनों का सौदा है। भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में और विपक्ष में कई तथ्य हैं। सामाजिक समीकरणों के आधार पर ये इलाका बीजेपी के लिए बहुत फायदेमंद नहीं है। यह अलग बात है कि पिछड़ों का बड़ा वर्ग पारस राय के साथ जा रहा है।

अफजाल अंसारी ने अपनी बेटी को उतारा

उधर अफजाल अंसारी के साथ एक दिक्कत और है। इसीलिए उन्होंने अपनी बेटी नुसरत अंसारी को मैदान में उतारा है। नुसरत अंसारी काफी सक्रिय है। 29 अप्रैल 2023 को MP MLA कोर्ट ने अफजाल अंसारी को एक मामले पर चार साल की सजा सुनाई थी। इससे अफजाल अंसारी की लोकसभा सदस्यता खत्म हो गई थी। बाद में हाई कोर्ट ने उन्हें जमानत तो दे दी, लेकिन सजा पर रोक नहीं लगाई। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सजा पर यह कहकर रोक लगा दी की हाई कोर्ट 30 जून 2024 के पहले इस मामले को निस्तारित करें।

इससे उनकी सदस्यता तो बहाल हुई, लेकिन चुनाव लड़ने के योग्य नहीं रहे। 27 मई को इस मामले में सुनवाई शुरू होने वाली है और अगर अफजाल अंसारी की सजा पर रोक नहीं लगी, तो उनके चुनाव लड़ने और सदस्यता पर आंच आएगी। इसीलिए उन्होंने सतर्कता के चलते अपनी बेटी नुसरत अंसारी को चुनाव मैदान में उतारा।

अफजाल अंसारी को लोगों का समर्थन तो है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने यहां पर पूरी ताकत लगाई है। गाजीपुर के ही शिवनाथ कुशवाहा कहते हैं कि पारस नाथ राय सीधे सरल व्यक्ति हैं और ज्यादातर लोग उन्हें वोट दे देंगे।

ओमप्रकाश राजभर भी एक फैक्टर

जबकि एक छोटी सी दुकान में बैठे रियाज भाई कहते हैं कि अफजाल अंसारी के समर्थक मुख्तार अंसारी की जेल में हुई मौत से लोग दुखी हैं। वो कहते हैं कि वो मौत नहीं बल्कि हत्या थी। रियाज कहते हैं कि धीरे-धीरे उनका समर्थन बढ़ता जा रहा है। देख लेना जीतेंगे अफजाल अंसारी ही।

इस क्षेत्र में जो नए समीकरण हैं उसमें ओमप्रकाश राजभर भी एक मुद्दा है। ओमप्रकाश राजभर 2022 में मुख्तार अंसारी परिवार को जितवाने में लगे थे और अब बीजेपी के साथ खड़े हो गए हैं। यही नहीं पिछली बार भारतीय जनता पार्टी गठबंधन से ओमप्रकाश राजभर अलग हो गए थे और उनके प्रत्याशी भी यहां मैदान में उतरा था। राजभर के प्रत्याशी को तीस हजार से ज्यादा वोट मिले थे।

अब ओम प्रकाश राजभर भारतीय जनता पार्टी के साथ खड़े हैं। लड़ाई फिलहाल बीजेपी और सपा के बीच सीधी हो रही है। बसपा चुनाव तो लड़ रही है, लेकिन वो निर्णायक स्थिति में नहीं है। यहां ये आम धारणा है कि जीतेंगे अफजाल अंसारी और इसको लेकर लोग बहस करने को तैयार रहते हैं। लेकिन जानकार बताते हैं कि बीजेपी यहां बड़ा खेल कर सकती है।

जब 2014 में सपा बसपा का गठबंधन नहीं था और तब मनोज सिन्हा ने अफजाल अंसारी को हरा दिया था। बीजेपी प्रत्याशी के समर्थन में मनोज सिन्हा के सारे समर्थक लगे हुए है। यहां पर त्रिकोणीय लड़ाई हो रही है, लेकिन बसपा पिछड़ती दिख रही है। अब अफजाल अंसारी या बीजेपी प्रत्याशी पारस नाथ राय के बीच कौन जीतेगा? ये सवाल बहुत मुश्किल है, क्योंकि लड़ाई कांटे की है।

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