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ग़ाज़ा: हमास व इसराइल, दोनों ने ही किए हैं युद्धपराध, जाँच आयोग का दावा

इसराइल व पूर्वी येरूशेलम समेत इसराइली क़ब्ज़े वाले फ़लस्तीनी इलाक़े पर स्वतंत्र अन्तरराष्ट्रीय जाँच आयोग की बुधवार को जारी रिपोर्ट के निष्कर्षों में यह बात कही गई है.

रिपोर्ट में कहा गया है, “महीनों की हानि व निराशा, प्रतिशोध व अत्याचारों के बीच, जो एकमात्र ठोस नतीजा निकला, वो है फ़लस्तीनियों व इसराइलियों की पीड़ा में भारी इज़ाफ़ा, जिससे एक बार फिर आम नागरिकों को, सत्ता में बैठे लोगों के फ़ैसलों का ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ा.” 

रिपोर्ट में, ख़ासतौर पर बच्चों व महिलाओं पर, युद्ध के प्रभाव को रेखांकित किया गया है.

स्पष्ट मोड़

जाँच आयोग ने कहा है कि 7 अक्टूबर को हमास द्वारा दक्षिणी इसराइल में समुदायों पर किया गया क्रूर हमला, इसराइल व फ़लस्तीनियों के लिए एक “स्पष्ट मोड़” था – एक ऐसा “ऐतिहासिक क्षण” जिसमें संघर्ष का रुख़ मोड़ने की क्षमता थी, जिससे क़ब्ज़ा मजबूत होने या फैलने का वास्तविक जोखिम पैदा हो गया है.

इसराइलियों के लिए, यह आधुनिक इतिहास का सबसे अभूतपूर्व स्तर पर होने वाला हमला था, जब एक ही दिन में सैकड़ों लोगों की हत्या या अपहरण कर लिया गया, जिससे न केवल इसराइल के यहूदियों, बल्कि दुनियाभर के यहूदियों के दिलों में अतीत के ज़ुल्मों की याद ताज़ा हो गई.

वहीं फ़लस्तीनियों के लिए, इसराइल का सैन्य अभियान और ग़ाज़ा पर हमला, 1948 के बाद का सबसे लम्बा, बड़ा व ख़ूनी हमला रहा, जिसमें भारी नुक़सान व जीवन की हानि हुई और बहुत से फ़लस्तीनियों में नकबा तथा अन्य इसराइली घुसपैठों की दर्दनाक स्मृति दोहरा गई.

हिंसा के चक्र को रोकना ज़रूरी

आयोग ने इस बात पर बल दिया कि इसराइल पर हमले व उसके बाद इसराइल द्वारा ग़ाज़ा में सैन्य हमलों को अलग करके नहीं देखा जाना चाहिए.

आयोग ने कहा, “दोनों पक्षों को ही आक्रमण व प्रतिशोध समेत, हिंसा के चक्रों को बार-बार दोहराने से रोकने के लिए, यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि अन्तरराष्ट्रीय क़ानून का सख़्ती से पालन हो.” 

“इसमें फ़लस्तीनी इलाक़े पर इसराइल का अवैध क़ब्ज़ा ख़त्म करना; फ़लस्तीनी लोगों के विरुद्ध हो रहे भेदभाव व दमन को रोकना और फ़लस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार से इनकार को ख़त्म करना, साथ ही, यहूदियों व फ़लस्तीनियों के लिए शान्ति व सुरक्षा सुनिश्चित करना शामिल है.”

हमास द्वारा जान-बूझकर निशाना बनाया जाना

आयोग ने आगे कहा कि इसराइल में 7 अक्टूबर के हमले के दौरान, हमास के सैन्य गुटों व अन्य फ़लस्तीनी सशस्त्र समूहों के सदस्यों समेत, सीधे तौर पर लड़ाई में भाग लेने वाले फ़लस्तीनी नागरिकों ने भी, इसराइली व विदेशी नागरिकों की जानबूझकर हत्या की, उन्हें घायल किया, उनके साथ दुर्व्यवहार किया, बंधक बनाया तथा उनके ख़िलाफ़ यौन एवं लैंगिक अपराध किए गए.

ऐसी ही कार्रवाई इसराइली सुरक्षा बलों (ISF) के ख़िलाफ़ भी की गई, जिसमें घायल होने या अन्य कारणों से युद्ध से बाहर हुए सैनिकों के साथ दुर्व्यवहार के मामले भी शामिल हैं.

इसमें कहा गया, “यह कार्रवाई युद्ध अपराध व अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून व अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून के हनन व उल्लंघन की श्रेणी में आते हैं.

आयोग ने ऐसे रुझानों की भी पहचान की जो कई स्थानों में यौन हिंसा की ओर इशारा करते हैं. उनका यह भी निष्कर्ष रहा कि इसमें इसराइली महिलाएँ असमान रूप से यौन हिंसा का शिकार हुईं. 

आम नागरिकों की सुरक्षा करने में नाकाम

आयोग ने यह भी कहा कि इसराइली अधिकारी “दक्षिणी इसराइल में सभी मोर्चों पर आम नागरिकों की सुरक्षा करने में नाकाम रहे,” जिसमें 7 अक्टूबर को तत्काल उचित संख्या में सैन्य बलों की तैनाती करके, लोगों को नागरिक स्थानों से निकालने में असफल होना भी शामिल है.” 

कई स्थानों में इसराइली सुरक्षा बलों (ISF) ने तथाकथित ‘Hannibal Directive’ लागू किया, जिससे कम से कम 14 इसराइली नागरिक मारे गए. यह निर्देश, ISF सदस्यों को दुश्मनों के क़ब्ज़ें में आने से रोकने की एक प्रक्रिया है और कथित तौर पर 7 अक्टूबर को इसे इसराइली नागरिकों के विरूद्ध ही अमल में लाया गया था.

आयोग ने कहा, “इसराइली अधिकारी, सम्बन्धित अधिकारियों व अग्रिम कार्यकर्ताओं द्वारा व्यवस्थित रूप से फ़ोरेंसिक साक्ष्य इकट्ठा करने में भी असफल रहे, ख़ासतौर पर यौन हिंसा के आरोपों के मामलों में, जिससे भविष्य में न्यायिक कार्रवाई, जवाबदेही सुनिश्चित करने और न्याय मिलने की सम्भावना कम हो गई है.” 

इसराइली सेना द्वारा उल्लंघन

ग़ाज़ा में इसराइल के सैन्य अभियान के सम्बन्ध में, मानवाधिकार परिषद द्वारा स्थापित इस स्वतंत्र जाँच आयोग ने यह भी निष्कर्ष निकाला कि इसराइल, युद्ध अपराध, मानवता के ख़िलाफ़ अपराध तथा अन्तराराष्ट्रीय मानवीय व मानवाधिकार क़ानूनों के मामलों में संलग्न रहा.  

आयोग ने आगे कहा कि इस टकराव के दौरान अनगिनत नागरिकों की मौत और नागरिक वस्तुओं का व्यापक विनाश, “इसराइल की बल प्रयोग की रणनीति चुनने का अपरिहार्य परिणाम था,” जो अधिकतम क्षति पहुँचाने के इरादे से की गई थी. इसमें भिन्नता, अनुपात व पर्याप्त सावधानी को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया, और इसलिए यह पूर्णत” ग़ैर-क़ानूनी है.  

आयोग ने कहा, “आईएसएफ़ द्वारा घनी आबादी वाले क्षेत्रों में भारी विनाश वाली क्षमता के हथियारों का जानबूझकर इस्तेमाल करना, नागरिक आबादी के ख़िलाफ़ जानबूझकर किया गया, सीधा हमला माना जा सकता है, जिससे ख़ासतौर पर महिलाओं एवं बच्चे प्रभावित हुए.” 

आयोग के मुताबिक़, हफ़्तों और महीनों में हताहतों की बढ़ती संख्या से इसकी पुष्टि हुई है और “इसराइल की नीतियों या सैन्य रणनीतियों में कोई बदलाव देखने को नहीं मिला है.”

सिफ़ारिशें

आयोग ने अपनी सिफ़ारिशों में, इसराइली सरकार से ग़ाज़ा में नागरिकों की हत्या व उन्हें अपंग करने वाले हमलों को तुरन्त रोकने, ग़ाज़ा की घेराबंदी समाप्त करने, युद्धविराम लागू करने, तथा यह सुनिश्चित करने का आहवान किया कि जिनकी सम्पत्ति ग़ैर क़ानूनी रूप से नष्ट हो गई है, उन्हें मुआवज़ा दिया जाए. साथ ही यह भी सुनिश्चित करने का आग्रह किया गया है कि नागरिक आबादी के स्वास्थ्य एवं कल्याण के लिए ज़रूरी चीज़ें,  तुरन्त ज़रूरतमन्द लोगों तक पहुँचाई जाएँ.

आयोग ने, फ़लस्तीन सरकार और ग़ाज़ा में वास्तविक अधिकारियों से, ग़ाज़ा में बंधक बनाकर रखे गए सभी लोगों की तत्काल, बिना शर्त रिहाई सुनिश्चित करने का भी आहवान किया; यौन एवं लिंग आधारित हिंसा समेत उनकी सभी तरह की हिंसा से सुरक्षा सुनिश्चित करने; उनके स्वास्थ्य व कल्याण की स्थिति की जानकारी देने; रैडक्रॉस अन्तरराष्ट्रीय समिति (ICRC) द्वारा दौरे की अनुमति देने, परिवारों से सम्पर्क करने व चिकित्सा देखभाल प्रदान करने, तथा अन्तरराष्ट्रीय मानवीय एवं मानवाधिकार क़ानूनों का पालन करते हुए उनका उपचार सुनिश्चित करने का आग्रह किया है.

रिपोर्ट में कहा गया है, “नागरिक आबादी पर रॉकेट, मोर्टार व अन्य हथियारों से अँधाधुंध गोलीबारी करना बन्द किया जाए.”

जाँच आयोग की जानकारी

जाँच आयोग की स्थापना, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद द्वारा, अन्य मामलों के अलावा, पूर्वी येरूशेलम और इसराइल समेत उसके क़ब्ज़े वाले फ़लस्तीनी क्षेत्र में, 13 अप्रैल, 2021 तक व उसके बाद, अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून के सभी कथित उल्लंघनों एवं अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानून के दुरुपयोग की जाँच के लिए की गई थी. 

इसकी रिपोर्ट 19 जून 2024 को जिनीवा में मानवाधिकार परिषद के 56वें ​​सत्र में प्रस्तुत की जाएगी. रिपोर्ट के साथ दो अन्य दस्तावेज़ भी हैं जो इसराइल पर 7 अक्टूबर के हमले और 2023 के अन्त तक ग़ाज़ा में इसराइल के सैन्य अभियानों व हमलों पर खोज पर आधारित हैं.

इसके सदस्य, संयुक्त राष्ट्र कर्मचारी नहीं होते और न ही उन्हें संयुक्त राष्ट्र से वेतन मिलता है.

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