यूएन एजेंसी के एक ऐलर्ट के अनुसार, ग़ाज़ा में पिछले 11 महीने से जारी युद्ध में विस्थापित लोगों के लिए बनाए गए अस्थाई शरण स्थलों में, कीड़ों और चूहों की भरमार है.
मानवीय सहायताकर्मियों ने आशंका जताई है कि स्वच्छता बरतने के लिए बुनियाद सामग्री का अभाव होने की वजह से आम लोगों के लिए संक्रामक रोगों की चपेट में आने का ख़तरा है.
इस बीच, जिनीवा स्थित यूएन कार्यालय में भी स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों की एक बैठक हुई है, जिसमें चिन्ता जताई गई है कि स्थानीय 23 लाख आबादी के लिए स्वच्छ जल की सुलभता को इसराइल, एक हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है.
सुरक्षित पेयजल और साफ़-सफ़ाई के मुद्दे पर यूएन के विशेष रैपोर्टेयर पेड्रो अरोजो-अगुडो ने बताया कि पेयजल का स्थान कोई नहीं ले सकता है मगर यदि जल, पीने योग्य ना हो तो यह बीमारियों का भयावह वाहक बन जाता है.
“इसलिए, इस मामले में इसे ग़ाज़ा में फ़लस्तीनी आम आबादी के लिए स्पष्ट तौर पर हथियार की तरह इस्तेमाल में लाया जा रहा है.”
पीड़ा की वजह
उन्होंने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद द्वारा नियुक्त स्वतंत्र विशेषज्ञ के रूप में बताया कि ग़ाज़ा में आम लोग अब प्रति व्यक्ति, प्रति दिन औसतन 4.7 लीटर जल पर निर्भर है, जोकि आपात परिस्थितियों में यूएन स्वास्थ्य एजेंसी की अनुशंसा, न्यूनतम 15 लीटर से बहुत कम है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने बताया कि साबुन की एक टिकिया ग़ाज़ा में 10 डॉलर की बिक रही है, जबकि शैम्पू, डिटर्जेंट और सफ़ाई व धोने के पदार्थ बाज़ार में उपलब्ध नहीं हैं.
यूएन एजेंसी का कहना है कि स्वच्छता सामग्री का अभाव होने का असर बच्चों, गर्भवती महिलाओं और कमज़ोर प्रतिरोधक प्रणाली से जूझ रहे लोगों पर विषमतापूर्ण ढंग से अधिक हुआ है.
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि साबुन से हाथ धोना, गंदगी में होने वाली बीमारियों, जैसेकि दस्त, श्वसन तंत्र सम्बन्धी रोगों व अन्य त्वचा संक्रमण की रोकथाम के लिए सबसे असरदार उपाय है.
यूएन एजेंसी ने ज़ोर देकर कहा है कि ग़ाज़ा पट्टी में हर दिन कम से कम पाँच ट्रकों को, साबुन समेत अन्य बुनियादी साफ़-सफ़ाई सामग्री, उत्तरी व दक्षिणी इलाक़े तक पहुँचाने की अनुमति दी जानी होगी.
नागरिक समाज पर प्रहार
स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने क्षोभ व्यक्त किया है कि ग़ाज़ा में नागरिक समाज कार्यकर्ताओं के लिए सुरक्षित हालात में काम करने का स्थान नहीं बचा है. इसराइली सैन्य बलों द्वाला हवाई व ज़मीनी हमले जारी हैं.
पिछले कुछ महीनों में, ग़ाज़ा में मानवाधिकारों पर केन्द्रित सबसे पुराने संगठन, फ़लस्तीनी मानवाधिकार केन्द्र के कर्मचारियों की इसराइली सुरक्षा बलों की कार्रवाई के दौरान मौत हो गई थी और उनके कार्यालय बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए थे.
मैरी लॉलोर और अन्य विशेषज्ञों ने बताया कि फ़लस्तीनी संगठन की दो महिला वकीलों और उनके परिजन की फ़रवरी 2024 में हमलों के दौरान जान चली गई.
यूएन विशेषज्ञ ने अपने वक्तव्य में कहा कि यह एक भयावह त्रासदी है कि इन दो महिला मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, उनके परिजन व बच्चों के लिए न्याय, पहुँच से इतना दूर हो गया है. जबकि यही कार्यकर्ता न्याय की आशाओं को जीवित रखने के लिए प्रयासरत थे.