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ग़ाज़ा संकट: बच्चों की एक पूरी पीढ़ी खो जाने का जोखिम, UNRWA प्रमुख की चेतावनी

यूएन एजेंसी के महाआयुक्त ने सदस्य देशों से अपने संगठन के लिए राजनैतिक व वित्तीय समर्थन की पुकार लगाई है. उन्होंने कहा कि पिछले 9 महीने से ग़ाज़ा में इसराइली सेना की अनवरत बमबारी और ज़मीनी अभियान के बोझ के तले उनका संगठन दब रहा है.

“आज एजेंसी पर दबाव, पहले किसी समय की तुलना में कहीं अधिक है.”

पिछले वर्ष 7 अक्टूबर को हमास के नेतृत्व में दक्षिणी इसराइल में हुए आतंकी हमलों और लोगों को बन्धक बनाए जाने के बाद युद्ध भड़क उठा था. 

UNRWA प्रमुख ने यूएन परिसर में हुए विध्वंस के स्तर से अवगत कराते हुए बताया कि 7 अक्टूबर के बाद से अब तक 180 से अधिक प्रतिष्ठान बर्बाद हो गए हैं. यूएन ध्वज के तले संरक्षण की तलाश कर रहे कम से कम 500 लोगों की जान जा चुकी है.

फ़िलिपे लज़ारिनी ने जिनीवा में परामर्शदाता आयोग को जानकारी देते हुए बताया कि “इसराइल, हमास और अन्य फ़लस्तीनी हथियारबन्द गुटों ने हमारे परिसरों का सैन्य उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया है.”

“हमारे क़ाफ़िलों पर हमले हुए हैं जबकि इसराइली प्रशासन के साथ समन्वय में ही पश्चिमी तट में आवाजाही की गई थी…अभियान संचालन के लिए जगह सिकुड़ रही है.”

नारकीय हालात

उनके अनुसार, ग़ाज़ा 20 लाख से अधिक लोगों के लिए एक जीता-जागता नर्क बन गया है. बच्चों की कुपोषण व प्यास से मौत हो रही है, जबकि भोजन व स्वच्छ जल, बाहर ट्रकों में लदा हुआ खड़ा है.

ग़ाज़ा पट्टी में क़ानून व्यवस्था के ध्वस्त हो जाने की ख़बरें हैं, लूटपाट व तस्करी हो रही है और अति-आवश्यक मानवीय सहायता ज़रूरतमन्दों तक पहुँचाने में देरी हो रही है.

ग़ाज़ा में सबसे सम्वेदनशील हालात का सामना कर रहे फ़लस्तीनियों में, बच्चे सर्वाधिक प्रभावित हुए हैं. सवा छह लाख से अधिक बच्चे सदमे में हैं, मलबे के बीच बिना पढ़ाई-लिखाई के जीवन गुज़ार रहे हैं. 

“लगभग तीन लाख बच्चों का युद्ध से पहले UNRWA के 290 स्कूलों में पंजीकरण था, मगर अब जो बच्चे स्कूलों से बाहर हैं उनके हिंसा, शोषण, बाल श्रम, जल्द शादी, और हथियारबन्द गुटों द्वारा भर्ती कर लिए जाने का जोखिम है.”

“शिक्षा को फिर शुरू करने के लिए किसी निर्णायक हस्तक्षेप के बिना, हम एक पूरी पीढ़ी को निर्धनता के लिए अभिशप्त कर देंगे, और नफ़रत, द्वेष व भविष्य में हिंसक टकराव के बीज बो देंगे.”

पश्चिमी तट, लेबनान सीमा पर तनाव

महाआयुक्त लज़ारिनी ने कहा कि ग़ाज़ा में युद्ध के कारण बार-बार विस्थापित होने वाले किसी तरह जीवन की डोर से बंधे हुए हैं, वहीं क़ाबिज़ पश्चिमी तट में भी हालात बेहद ख़राब हैं. 

अक्टूबर 2023 के बाद से अब तक वहाँ क़रीब 500 फ़लस्तीनियों की जान गई है.  

“इसराइली बस्तियों के निवासियों द्वारा दैनिक हमले हो रहे हैं, सेना द्वारा धावा बोला जा रहा है, घरों व अहम बुनियादी ढाँचे का विध्वंस, दमन व अलग-थलग करने के लिए सुचारू रूप से काम करने व्यवस्था का हिस्सा है.”

इस बीच, इसराइल और लेबनान की सीमा पर झड़पें तेज़ हो रही हैं, जिनके पूर्ण युद्ध में तब्दील हो जाने का ख़तरा है. 

UNRWA प्रमुख फ़िलिपे लज़ारिनी ने बताया कि क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़े, लेबनान, सीरिया और जॉर्डन में लाखों फ़लस्तीनी शरणार्थी बेचैनी व भय के साथ, ग़ाज़ा और पश्चिमी तट में घटनाक्रम को देख रहे हैं. 

उन्होंने ध्यान दिलाया कि इनमें से बहुत से लोग पिछली कई पीढ़ियों से इन शिविरों में रह रहे हैं. उनके पास सीमित अधिकार हैं और बेहद निर्धनता में रहते एक राजनैतिक समाधान की प्रतीक्षा कर रहे हैं.

विशाल त्रासदी

यूएन एजेंसी प्रमुख ने 1948 में हुए घटनाक्रम का हवाला देते हुए कहा कि उस दौरान हुए ‘नकबा’ के बाद पहली बार इतने बड़े पैमाने पर फ़लस्तीनी त्रासदी घटित हो रही है. सात दशक पहले हुई उन घटनाओं में साढ़े सात लाख से अधिक फ़लस्तीनी अपने घरों से विस्थापित हुए थे. 

उन्होंने कहा कि फ़लस्तीनी शरणार्थी समुदाय, यूएन एजेंसी की सहायता पर निर्भर है और राहत अभियान को जारी रखने के लिए बड़े पैमाने पर वित्तीय समर्थन बढ़ाने की दरकार है,

मौजूदा हालात में यह आशंका है कि अगस्त महीने के बाद यूएन एजेंसी के लिए कामकाज आगे बढ़ा पाना सम्भव नहीं होगा. 

फ़िलिपे लज़ारिनी ने ज़ोर देकर कहा कि इस वर्ष के अन्त तक, महत्वपूर्ण मानवीय सहायता आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए 1.2 अरब डॉलर की ज़रूरत होगी, मगर फ़िलहाल इस धनराशि के केवल 18 प्रतिशत का ही प्रबन्ध हो पाया है.

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