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ग़ाज़ा: ‘युद्ध के भय’ से बच्चों के बोलने की क्षमता प्रभावित

ग़ाज़ा: ‘युद्ध के भय’ से बच्चों के बोलने की क्षमता प्रभावित

ग़ाजा में दीर अल-बलाह प्रान्त के अल-जवायदा शहर के पश्चिम में विस्थापितों के एक अस्थाई शिविर में लगे एक सामान्य से तम्बू में, वाणी चिकित्सक अमीना अल-दहदौह के पास वो बच्चे इलाज के लिए आए हैं, जिनका जीवन, इस घातक युद्ध एवं व्यापक विनाश के कारण उलट-पुलट हो गया है.

वो इन बच्चों में बोलने का आत्मविश्वास दोबारा जगाने में मदद कर रही हैं.

बड़ी संख्या में भयभीत लोग व छोटे बच्चे, अपने आसपास लगभग एक साल से चल रहे युद्ध कारण, अपनी भावनाएँ व्यक्त करने में अक्षम होते जा रहे हैं.

अमीना अल-दहदौह, वाणी विकार से पीड़ित फ़लस्तीनी बच्चों का इलाज करती हैं.

अमीना अल-दहदौह बताती हैं, “सबसे अधिक हकलाने की समस्या सामने आई है.”

उनका अनुमान है कि इस समय शिविर में मौजूद हर 10 में से 6 बच्चे, किसी न किसी तरह के वाणी विकार से पीड़ित हैं.

कई-कई बार इसराइली हमलों से बचकर भागे विस्थापित परिवारों के इस शरणस्थल में, उनकी चिकित्सा सेवाओं की बहुत माँग है.

उन्होंने बताया, “फ़िलहाल, इस शिविर में मैं बोलने की समस्या से पीड़ित 50 से अधिक बच्चों का इलाज कर रही हूँ. इसके अलावा दूसरे शिविरों के लोग भी अपने बच्चे का यहाँ इलाज करवाना चाहते हैं. मैं यहाँ सप्ताह में तीन दिन मरीज़ देखती हूँ. अब मैं दूसरे शिविरों में भी बच्चों के इलाज के लिए अतिरिक्त तीन दिन सेवाएँ प्रदान करूँगी.”

7 अक्टूबर 2023 को हमास के नेतृत्व वाले फ़लस्तीनी सशस्त्र गुटों द्वारा इसराइल पर किए गए हमलों के बाद, इसराइल ने ग़ाज़ा पर बमबारी शुरू कर दी थी. 

इसराइल पर हुए उन हमलों में,  लगभग 1200 लोग मारे गए थे. ग़ाज़ा में स्थित स्वास्थ्य मंत्रालय की सूचना के अनुसार, ग़ाज़ा में इसराइली बमबारी में, 11 महीनों से अधिक समय में,  40 हज़ार से अधिक फ़लस्तीनियों की मौत हो चुकी है, जिनमें बड़ी संख्या महिलाओं और बच्चों की भी है.

अनेक परेशानियों से घिरे अभिभावक

अमीना अल-दहदौह के मुताबिक़, युद्ध के इस समय में भोजन, पानी व आजीविका के लिए संघर्ष कर रहे माता-पिता, अपने बच्चों की बोलने की समस्या पर ज़्यादा ध्यान नहीं दे पा रहे हैं.

हालाँकि बच्चों पर इसका सबसे अधिक असर पड़ा है, लेकिन अमीना अल-दहदौह का कहना है कि ग़ाज़ा पट्टी में सभी जगहों पर, सभी उम्र के लोगों में वाणी विकार देखने को मिल रहे हैं. युद्ध ख़त्म होने पर शायद इनका पूर्ण आकलन सम्भव होगा.  

ग़ाज़ा पट्टी में बच्चे पानी भर रहे हैं.

युद्ध से भयभीत

एक छोटी बच्ची की माँ, अमल अवाद ने यूएन न्यूज़ को बताया कि युद्ध के शुूरुआती दिनों से ही उनकी बेटी फ़ातिमा में बोलने की कठिनाई के लक्षण सामने आने लगे थे. 

उन्होंने कहा, “अब वो न तो अक्षरों का उच्चारण कर पाती है, न ही ठीक से बोल पाती है.”  

उन्होंने बताया, “युद्ध के शुरुआती चरण में, उसने डर के कारण पूरी तरह से बोलना बन्द कर दिया था. वह अधिकतर समय चुप रहती थी. जब मैंने उससे ज़्यादा बात करने की कोशिश की, तो पाया कि वो अक्षरों का उच्चारण ग़लत कर रही थी.”

उन्होंने बताया कि अमीना अल-दहदौह का इलाज शुरू करने के बाद से उनकी बेटी में काफ़ी सुधार आया है. “यहाँ तक ​​कि हमारे पड़ोस के तम्बू में रहने वाले लोगों ने भी उसकी बोली में सुधार महसूस किया है.”

संयुक्त राष्ट्र ने बार-बार, युद्ध के दीर्घकालिक प्रभावों के बारे में चेतावनी दी है, जिसमें बच्चों का मानसिक एवं शारीरिक स्वास्थ्य भी शामिल है.

संयुक्त राष्ट्र बाल कोषयूनीसेफ़ के जोनाथन क्रिक्स ने फ़रवरी (2024) में कहा था, “इस युद्ध से पहले यूनीसेफ़ का आकलन था कि ग़ाज़ा पट्टी में 5 लाख से अधिक बच्चों को मानसिक स्वास्थ्य एवं मनोसामाजिक सहायता की आवश्यकता है.” 

वर्तमान अनुमान कहता है कि इस सहायता की ज़रूरत दस लाख से अधिक बच्चों को है.

 

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