7 अक्टूबर 2023 को दक्षिणी इसराइल पर हमास व अन्य चरमपंथी गुटों के हमलों के बाद ग़ाज़ा में शुरू हुई इसराइली सैन्य कार्रवाई में अब तक हज़ारों फ़लस्तीनियों की जान जा चुकी है, बड़े पैमाने पर आम नागरिक विस्थापित हुए हैं और विशाल मानवीय आवश्यकताएँ उपजी हैं, जबकि ज़रूरतमन्दों तक राहत पहुँचाने में कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.
महासचिव ने सुरक्षा परिषद को ग़ाज़ा में हालात से अवगत कराते हुए कहा कि दुनिया में मानवीय सहायता प्रयासों के लिए ग़ाज़ा एक बेहद ख़तरनाक स्थान है, इसके बावजूद, हाल ही में वहाँ पोलियो की ख़ुराक पिलाने पर केन्द्रित अभियान दर्शाता है कि अपने कार्य की अनुमति मिलने पर यूएन एजेंसियाँ बहुत कुछ हासिल कर सकती हैं.
“मगर, ग़ाज़ा में पहुँचने के लिए सीमा चौकियों पर या तो पाबन्दी है या फिर वहाँ पहुँचना सुलभ नहीं है. सड़कें क्षतिग्रस्त हैं और वहाँ बिना फटे हुए विस्फोटक बिखरे हुए हैं.”
उन्होंने कहा कि ग़ाज़ा में विध्वंस का स्तर अभूतपूर्व है, मानवतावादी क़ानून छिन्न-भिन्न हो चुका है और सम्पूर्ण मानवतावादी व्यवस्था एक नाज़ुक डोर से बन्धी हुई है.
ग़ाज़ा के उत्तरी और दक्षिणी इलाक़ों के बीच 87 प्रतिशत आवाजाही को नकार दिया गया है. यूएन प्रमुख ने कहा कि मानवीय सहायताकर्मियों पर हमले अस्वीकार्य हैं, यूएन चार्टर का उल्लंघन हैं और इन्हें तत्काल रोका जाना होगा.
उन्होंने इसराइली प्रशासन से आग्रह किया कि यूएन कर्मचारियों व सम्पत्ति पर हमले रोकने के लिए हरसम्भव प्रयास किए जाने होंगे, यूएन अधिकारियों व एजेंसियों के विरुद्ध दुस्सूचना के फैलाव पर विराम लगाना होगा और वीज़ा आवेदनों को स्वीकृति देनी होगी.
जानलेवा भँवर को थामना होगा
यूएन के शीर्षतम अधिकारी ने भरोसा दिलाया कि संयुक्त राष्ट्र, सतत शान्ति के लिए किए जाने वाले सभी प्रयासों का समर्थन करता रहेगा.
उन्होंने कहा कि ग़ाज़ा में इस जानलेवा भँवर को थामना ज़रूरी है, फ़लस्तीनियों व इसराइली लोगों के लिए, क्षेत्र और पूरी दुनिया के लिए. महासचिव के अनुसार, इसे हासिल करने की कुँजी एक राजनैतिक समाधान में निहित है.
ग़ाज़ा से सभी बन्धकों की बिना किसी शर्त के, तत्काल रिहाई सुनिश्चित की जानी होगी, तत्काल युद्धविराम के लिए अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को लामबन्द होना होगा और फिर एक ऐसी प्रक्रिया की शुरुआत करनी होगी, जिससे क़ब्ज़े का अन्त और फ़लस्तीनी राष्ट्र का सृजन सम्भव हो सके.
स्कूलों पर हमले
इस बीच, संयुक्त राष्ट्र मानवीय सहायताकर्मियों ने क्षोभ जताया है कि ग़ाज़ा में विस्थापित हुए फ़लस्तीनियों ने जिन स्कूलों में शरण ली हुई है, इस महीने उनमें कम से कम 11 को अब तक निशाना बनाया जा चुका है. इन हमलों में कम से कम 100 लोगों की जान गई है.
ग़ाज़ा पट्टी की कुल आबादी 23 लाख है, जिनमें से करीब 80 प्रतिशत पिछले एक वर्ष से जारी इसराइली सैन्य कार्रवाई के कारण जबरन विस्थापित हुए हैं.
विस्थापितों को बेहद कठिन परिस्थितियों में, अस्थाई शिविरों में फटेहाल टैंट में, सीमित भोजन, जल व अन्य आवश्यक सामग्री के साथ जीवन गुज़ारना पड़ रहा है.
यूएन मानवतावादी कार्यालय ने डेयर अल बालाह और ख़ान यूनिस में हालात का आकलन करने के बाद यह बात कही है.
साथ ही आशंका जताई गई है कि विस्थापितों के लिए तैयार शिविरों या अस्थाई चिकित्सा केन्द्रों के पास सर्दी के मौसम में बाढ़ आने और बीमारियाँ फैलने का ख़तरा है.
सहायता आपूर्ति पर सख़्ती
यूएन कार्यालय ने बताया है कि सितम्बर महीने में अब तक उत्तरी व दक्षिणी ग़ाज़ा में मानवीय सहायता के लिए आवाजाही के 90 प्रतिशत अनुरोधों को या तो नकार दिया गया या उनमें अवरोधों का सामना करना पड़ा है.
ग़ाज़ा में स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, 22-26 सितम्बर के दौरान 103 फ़लस्तीनियों की जान गई है. 7 अक्टूबर को दक्षिणी इसराइल पर हमास के हमलों के बाद शुरू हुई इसराइली कार्रवाई में अब तक 41 हज़ार लोगों की मौत हो चुकी है.
इसराइली सेना का कहना है कि 23 सितम्बर से शुक्रवार तक सैन्य कार्रवाई के दौरान, किसी इसराइली सैनिक की मौत नहीं हुई है. अब तक ग़ाज़ा में या फिर इसराइली सीमा के नज़दीक कुल 346 इसराइली सैनिक मारे जा चुके हैं.
न्यूयॉर्क में शुक्रवार को सुरक्षा परिषद की बैठक हो रही है, जिसमें ग़ाज़ा में मानवीय हालात पर चर्चा की जाएगी.
पश्चिमी तट में चिन्ताजनक हालात
यूएन महासचिव के प्रवक्ता स्तेफ़ान दुजैरिक ने पत्रकारों को जानकारी देते हुए बताया कि क़ाबिज़ पश्चिमी तट में, फ़लस्तीनियों की आवाजाही में अवरोध पैदा करने के मामलों में वृद्धि हुई है.
उन्होंने कहा कि इसका फ़लस्तीनियों पर गहरा असर हुआ है, जिससे पश्चिमी तट में आजीविका साधनों व ज़रूरी सेवाओं तक पहुँचना मुश्किल हुआ है. पहले से कठिन हालात को झेल रही स्थानीय फ़लस्तीनी आबादी के लिए परिस्थितियाँ बद से बदतर हुई हैं.
हिंसा अब भी जारी है और 17 से 23 सितम्बर के दौरान, पश्चिमी तट में 11 फ़लस्तीनी मारे जा चुके हैं, जिनमें दो बच्चे भी हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, 7 अक्टूबर 2023 से 30 जुलाई 2024 तक, स्वास्थ्य देखभाल केन्द्रों पर बल प्रयोग, हिरासत में लेने, सैन्य बलों द्वारा तलाशी लेने, रास्ता रोके जाने समेत 523 हमले हुए हैं.