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ग़ाज़ा: अकाल की आशंका पर ऐलर्ट, परिवार बिना भोजन के दिन गुज़ारने पर मजबूर

ग़ाज़ा: अकाल की आशंका पर ऐलर्ट, परिवार बिना भोजन के दिन गुज़ारने पर मजबूर

संयुक्त राष्ट्र की साझेदारी में खाद्य सुरक्षा स्थिति पर तैयार एक रिपोर्ट के अनुसार, ग़ाज़ा की 96 फ़ीसदी आबादी, क़रीब 21.5 लाख लोग पिछले कुछ समय में ‘संकट’ या उससे भी बदतर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं.

इस संख्या में क़रीब पाँच लाख विनाशकारी स्तर पर खाद्य असुरक्षा से पीड़ित फ़लस्तीनी भी हैं. यूएन विशेषज्ञों ने आशंका जताई है कि जब तक हिंसक टकराव जारी रहेगा और मानवीय सहायता मार्ग पर पाबन्दियाँ रहेंगी, ग़ाज़ा पट्टी में अकाल का जोखिम बना रहेगा.

7 अक्टूबर को दक्षिणी इसराइल पर हमास के नेतृत्व में हमलों और लोगों को बन्धक बनाए जाने के बाद, पिछले क़रीब 9 महीने से भीषण इसराइली बमबारी और ज़मीनी अभियान जारी हैं. 

इस पृष्ठभूमि में, ग़ाज़ा में विशाल स्तर पर मानवीय सहायता आवश्यकताएँ उपजी हैं. लाखों लोग कई बार अपना घर छोड़कर जाने के लिए मजबूर हुए हैं और इसराइली सेना द्वारा उन्हें बेदख़ली आदेश दिए गए हैं.

सहायता पहुँच अहम

इस बीच, विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) का एक अपडेट दर्शाता है कि ग़ाज़ा के उत्तरी इलाक़ों में खाद्य सुरक्षा स्थिति में कुछ बेहतरी आई है, जहाँ मई महीने के अन्त तक अकाल की आशंका व्यक्त की गई थी.

इसकी एक बड़ी वजह मानवीय सहायता पहुँचाने के लिए मार्ग की उपलब्धता बताई गई है.

यूएन मानवतावादी कार्यालय (OCHA) में कार्यरत सहायताकर्मी यासमीना गुएर्दा ने बताया कि ग़ाज़ा में ज़रा भी जगह सुरक्षित नहीं है, और अन्तरराष्ट्रीय युद्ध नियमों के प्रति बेपरवाही बरती जानी जारी है.

यासमीना गुएर्दा ने हाल ही में ग़ाज़ा से वापिस जिनीवा लौटने पर पत्रकारों से बात की. उन्होंने कहा कि ज़रूरतमन्दों तक सहायता पहुँचाना, हर दिन एक बड़ी चुनौती है और कुपोषित बच्चे बिना ज़रूरी मदद के जीवन गुज़ार रहे हैं.

“आपके पास अपनी इमारत को छोड़ने के लिए 10 से 15 मिनट होते हैं, चूँकि उस पर बमबारी होने जा रही होती है. आपके बच्चे नज़दीक के कमरे में सो रहे होते हैं.”

“आपको उस छोटी सी अवधि में यह तय करना होता कि अपने साथ क्या ले जाएँ, क्या ज़रूरी है और आप अति-आवश्यक को किस तरह से निर्धारित करेंगे.”

“जन्म प्रमाण-पत्र, पहचान-पत्र, शिशु आहार… ये एक ऐसी व्यथा है, जिसे मैंने उन लोगों से बार-बार सुना, जो ग़ाज़ा सिटी, जबालिया, ख़ान युनिस, डेयर अल-बालाह और अब, निसन्देह, रफ़ाह से जान बचाकर भागे हैं.”

नुसेरात का दुस्वप्न

यूएन मानवीय सहायताकर्मी ने ध्यान दिलाया कि दो सप्ताह पहले इसराइली सैन्य अभियान में मध्य ग़ाज़ा के नुसेरात में रखे गए चार इसराइली बन्धकों को छुड़ा लिया गया था.

स्थानीय स्वास्थ्य प्रशासन के अनुसार, इस सैन्य कार्रवाई में सैकड़ों लोग हताहत हुए और पड़ोस के इलाक़ों में रह रहे लोगों को इस अभियान के बारे में कोई पूर्व सूचना नहीं दी गई थी.

“वे बस दिन भर में किसी तरह जुटाए गई सामग्री से भोजन करने की कोशिश कर रहे थे, जब बमबारी शुरू हुई और पूरे दो घंटे तक चली, टैंकों से भी गोलाबारी हुई और गोलियाँ चलीं.”

“हम क़रीब दो किलोमीटर दूर काम कर रहे थे और हमारी इमारत की दीवारें, दरवाज़ें, खिड़कियाँ हिल रही थीं. हमें नहीं पता था कि क्या हो रहा है, यह हमें बाद में पता चला.”

इस हमले के बाद यासमीना गुएर्दा ने फ़ील्ड अस्पताल का दौरा किया जहाँ बच्चों के अंग क्षत-विक्षत थे, वे बुरी तरह सदमे में थे और शून्यता में ताक रहे थे.

मगर, जो लोग किसी तरह समय रहते इस इलाक़े से दूर चले गए थे, उनके लिए ये एक दुस्वप्न की शुरुआत थी. जीवित बचे इन लोगों तक मानवीय राहत पहुँचाना बेहद मुश्किल है.

दक्षिणी ग़ाज़ा के रफ़ाह में दो हफ़्तों के भीतर विस्थापित हुए 10 लाख से अधिक लोगों के लिए भी यही स्थिति है, विशेष रूप से इसराइली सैन्य अभियान वाले इलाक़ों में, जहाँ मानवीय सहायता की आवाजाही के लिए अहम एक सीमा चौकी बन्द है.

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