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गर्मी का तनाव, पहले से कहीं अधिक श्रमिकों को कर रहा है पस्त: ILO

अन्तरारष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की नवीनतम रिपोर्ट, Heat at work: Implications for safety and health में चेतावनी दी गई है कि दुनिया भर में गर्मी के तनाव से बेहाल हो रहे श्रमिकों की संख्या लगातार बढ़ रही है. 

नए आँकड़ों से स्पष्ट है कि जिन क्षेत्रों में पहले गर्मी नहीं पड़ती थी, अब वो तापमान बढ़ने के कारण, बढ़ते जोखिम का सामना करेंगे, और पहले से ही गर्म स्थानों पर काम कर रहे लोगों को और भी ख़तरनाक हालात का सामना करना पड़ेगा.  

गर्मी से उपजा तनाव, एक अदृश्य होता है और स्वास्थ्य पर चुपचाप असर डालता है, जिससे बहुत ही कम समय में बीमारी, लू लगने जैसे गम्भीर परिणाम सामने आते हैं और कई मामलों में मौत भी हो सकती है. 

अध्ययन में कहा गया है कि लम्बे समय में इससे दिल, फ़ेफ़ड़ों व किडनी की गम्भीर बीमारी भी हो सकती है.

विभिन्न क्षेत्रों की स्थिति

कुल मिलाकर, रिपोर्ट में संकेत दिए गए हैं कि अफ़्रीका, अरब देशों और एशिय़ा-प्रशान्त के श्रमिक, अत्यधिक गर्मी के अधिक सम्पर्क में आते हैं. रिपोर्ट के अनुसार, सबसे अधिक परिवर्तनशील कामकाजी स्थिति योरोप और मध्य एशिया में देखने को मिल रही है. 

वर्ष 2000 से 2020 तक, इस क्षेत्र में अत्यधिक गर्मी से सम्पर्क में सर्वाधिक वृद्धि दर्ज की गई, जिसमें इससे प्रभावित श्रमिकों का अनुपात 17.3 फ़ीसदी के हिसाब से बढ़ा, जोकि वैश्विक वृद्धि के औसत से दोगुना था.  

वहीं, अमेरिका और योरोप व मध्य एशिया क्षेत्र, गर्मी के तनाव की वजह से कार्यक्षेत्र में होने वाली चोट लगने की घटनाओं में सबसे विशाल बढ़ोत्तरी देख रहे हैं. 

रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2020 में विश्व स्तर पर 4,200 कर्मियों को तापलहरों के कारण अपनी जान गँवानी पड़ी. कुल मिलाकर, 2020 में, 23 करोड़ 10 लाख श्रमिक, ताप लहरों से प्रभावित हुए, जो 2020 की तुलना में 66 फ़ीसदी की बढ़त है.  

कार्रवाई की दरकार

ILO के महानिदेशक गिलबर्ट एफ़ हुंगबो कहते हैं, “पूरा विश्व बढ़ते तापमान से जद्दोजहद कर रहा है. ऐसे में हमें पूरे वर्ष अपने श्रमिकों को गर्मी के तनाव से बचाने के प्रयास करने होंगे. अत्यधिक गर्मी से, न केवल गहन तापलहरों के समय, बल्कि पूरे साल श्रमिकों को अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.”  

अध्ययन के मुताबिक़, जैसे-जैसे गर्मी बढ़ रही है, अत्यधिक गर्मी के प्रभाव से कार्यश्रेत्र में बीमारी व चोटों से बचने के लिए, सुरक्षा व स्वास्थ्य तरीक़ों में सुधार लाने से, वैश्विक स्तर पर 361अरब डॉलर की बचत हो सकती है – ख़ासतौर पर खोई हुई आय की बचत व चिकित्सा ख़र्चों में.

ILO का अनुमान है कि निम्न व मध्य आय वाली अर्थव्यवस्थाएँ ख़ासतौर पर अधिक प्रभावित हुई हैं. कार्यक्षेत्र में अत्यधिक गर्मी से होने वाली बीमारियों व चोटों की लागत, राष्ट्रीय सकल घरेलू उत्पाद के 1.5 फ़ीसदी भाग के बराबर तक पहुँच सकतीहै.  

गिलबर्ट एफ़ हुंगबो ने कहा, “यह मानव अधिकारों का एक मुद्दा है, श्रमिकों के अधिकारों का मुद्दा है व आर्थिक मुद्दा भी है, और इसका सबसे अधिक ख़ामियाज़ा मध्य आय वाली अर्थव्यवस्थाएँ भुगत रही हैं. हमें पूरे साल श्रमिकों के लिए गर्मी से निपटने की कार्रवाई की योजना व क़ानूनों की ज़रूरत है. साथ ही, विशेषज्ञों के बीच मज़बूत वैश्विक सहयोग ज़रूरी होगा, ताकि वे गर्मी से उपजे तनाव का आकलन करके, कार्यक्षेत्र में उचित उपाय लागू करने में मदद कर सकें.”

दुनिया भर के कामकाजी लोगों पर गर्मी का असर, तेज़ी से वैश्विक मुद्दा बनता जा रहा है और इसमें तुरन्त कार्रवाई की आवश्यकता है.

यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने कहा है, “अगर कोई एक मुद्दा है जिस पर पूरा विश्व एकमत होगा, तो वो यह है कि हम सभी लोग, बढ़ती गर्मी का अनुभव कर रहे हैं. पृथ्वी, सभी जगहों पर, सर्वजन के लिए अत्यधिक गर्म व ख़तरनाक बनती जा रही है. हमें बढ़ते तापमान की चुनौती से निपटना होगा – और मानवाधिकारों के आधार पर, श्रमिकों की सुरक्षा के लिए कार्रवाई करनी होगी.”

ILO की रिपोर्ट में दुनियाभर के 21 देशों में वैधानिक उपायों की समीक्षा की गई है, जिससे कार्यक्षेत्र में गर्मी से सुरक्षा के लिए एक उचित योजना बनाई जा सके. इसमें, गर्मी से होने वाली बीमारियों से श्रमिकों को बचाने के लिए, सुरक्षा एवं स्वास्थ्य प्रबंधन प्रणाली की मुख्य अवधारणाओं की भी जानकारी दी गई है.  

यह रिपोर्ट, इससे पहले अप्रैल में प्रकाशित एक पूर्व रिपोर्ट के निष्कर्षों पर आधारित है, जिसमें बताया गया था कि अत्यधिक गर्मी के सम्पर्क में आने वाले अनुमानत: 2.4 अरब श्रमिकों पर, जलवायु परिवर्तन के असर से, गम्भीर स्वास्थ्य ख़तरों का “जानलेवा मिश्रण” तैयार हो रहा है. 

अप्रैल में जारी हुई इस रिपोर्ट में संकेत दिए गए थे कि केवल अत्यधिक गर्मी के कारण, 2 करोड़ 28 लाख 50 हज़ार कार्यक्षेत्र चोटें व बीमारियाँ होती हैं, और हर वर्ष 18 हज़ार 970 लोगों की जान चली जाती है. 

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