केरल में ‘दिमाग खाने वाला अमीबा‘ (brain eating amoeba) से एक पांच साल की बच्ची की मौत का मामला सुर्खियों में है। आपको बता दें यह अमीबा लाइलाज माना जाता है। ये मरीज के दिमाग की कोशिकाओं को ही नष्ट कर देता है। ऐसा पहली बार नहीं है जब एककोशिकीय जीव अमीबा के कारण किसी की मौत हुई है बल्कि इससे पहले भी दुनियाभर में कई लोग अमीबा के कारण अपनी जान गवां चुके हैं। centers for disease control and prevention की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नेगलेरिया फाउलेरी जिसे अमीबा कहा जाता है वह मिट्टी और ताजे पानी जैसे झीलों, नदियों और झरनों में रहता है। जब अमीबा युक्त पानी नाक में जाता है तो यह मस्तिष्क में संक्रमण का कारण बन सकता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में हर साल करीब 3 लोग इस जानलेवा संक्रमण से संक्रमित होते हैं
अमीबा क्या है (What is amoeba)
अमीबा एककोशिकीय जीवित जीव है, यह इतना छोटा है कि इसे केवल माइक्रोस्कोप से ही देखा जा सकता है। आमतौर पर ये जीव झीलों, नदियों और झरनों के ताजे पानी में पाया जाता है। यह बेहद गर्म वातावरण में पानी में पनपता है। ऐसे में गर्मियों में गंदे तालाब या वाटर पार्क में नहाना किसी के लिए भारी पड़ सकता है।
अमीबा कैसे बनाता है शिकार?
जब अमीबा पानी नाक के जरिए शरीर में जाता है तो यह लोगों को संक्रमित करता है। हालांकि दूषित पानी पीने से लोग नेगलेरिया फाउलेरी यानी अमीबा से संक्रमित नहीं हो सकते। यह आमतौर पर तब होता है जब लोग झीलों और नदियों में तैरते हैं, गोता लगाते हैं। अमीबा नाक से घुसता है और मस्तिष्क तक जाता है, जहां यह मस्तिष्क टिश्यू को नष्ट कर देता है। अमीबा से प्राइमरी अमीबिक मेनिंगोएन्सेफलाइटिस (Primary amebic meningoencephalitis) नामक संक्रमण होता है, जो कि जानलेवा है।
नेगलेरिया फाउलेरी संक्रमण के लक्षण (symptoms of Naegleria fowleri infection)
Primary amebic meningoencephalitis के पहले लक्षण आमतौर पर 5 दिन बाद शुरू होते हैं, लेकिन ये 1 से 12 दिनों के भीतर भी दिखाई दे सकते हैं। इसमें सिरदर्द, बुखार, मतली या उल्टी होती है। संक्रमण बढ़ने पर लक्षणों में गर्दन में अकड़न, दौरे, मस्तिष्क का काम न करना और कोमा शामिल हैं। लक्षण शुरू होने के बाद, रोग तेजी से बढ़ता है और आमतौर पर 1 से 18 दिनों के भीतर मृत्यु हो सकती है
इस संक्रमण से बचाव के तरीके
- लोगों को इस बात के लिए सचेत रहना चाहिए कि इस संक्रमण का खतरा हमेशा रहता है।गर्मी और बरसात के महीनों में इसकी संभावना ज्यादा बढ़ जाती है। ऐसे में तैरते समय ध्यान रखें कि नदी और झरनों का पानी नाक में न जाए
- गर्मी और बरसात में नदी, झरनों और झील में गोता लगाने से बचना चाहिए।
- झरनों में अपनी सिर भिगाने से बचना चाहिए क्योंकि इसके रास्ते नाक तक पानी पहुंच सकता है।