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कॉप29: जलवायु ‘हानि व क्षति कोष’ के लिए, वित्तीय संसाधन मुहैया कराने पर बल

कॉप29: जलवायु ‘हानि व क्षति कोष’ के लिए, वित्तीय संसाधन मुहैया कराने पर बल

यूएन प्रमुख ने जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली हानि व क्षति के मुद्दे पर अज़रबैजान की राजधानी बाकू में कॉप29 सम्मेलन के दौरान आयोजित एक उच्चस्तरीय सम्वाद के दौरान यह अपील की है.

“चरम जलवायु के इस युग में, हानि व क्षति के लिए वित्त पोषण अनिवार्य है. मैं सरकारों से इस वादे को पूरा करने का आग्रह करता हूँ. न्याय के नाम पर.”

उन्होंने कहा कि दुनिया पहले की तुलना में गर्म और अधिक ख़तरनाक होती जा रही है, जोकि अब बहस का विषय नहीं है. “जलवायु आपदाएँ बढ़ रही हैं, और उन्हें नुक़सान पहुँचा रही हैं, जो इसके लिए सबसे कम ज़िम्मेदार हैं.”

वहीं, इस विध्वंस में सबसे अधिक योगदान देने वाले, विशेष रूप से जीवाश्म ईंधन उद्योग, विशाल मुनाफ़े और सब्सिडी कमा रहे हैं.

यूएन के शीर्षतम अधिकारी ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली ‘हानि व क्षति’ से निपटने के लिए जिस कोष को स्थापित किया गया है, वो विकासशील देशों, बहुपक्षवाद और न्याय के लिए एक जीत है.

हालांकि, उन्होंने स्पष्ट किया कि इस कोष के ज़रिये अब तक जुटाई गई 70 करोड़ डॉलर की धनराशि से सबसे निर्बल समुदाय के घावों पर मरहम नहीं लगाया जा सकता है.

“हमें वित्त पोषण के स्तर के बारे में गम्भीरता से सोचना होगा. मैं देशों से इस कोष के लिए नए वित्तीय संसाधनों का संकल्प लेने का आग्रह करता हूँ.”

इस क्रम में, महासचिव गुटेरेश ने एक नए जलवायु वित्त पोषण लक्ष्य पर सहमति बनाने की पुकार लगाई है, जिसके लिए नवाचारी उपायों के ज़रिये संसाधन सुनिश्चित करने होंगे.

“हमें जहाज़रानी, विमानन और जीवाश्म ईंधन निष्कर्षण जैसे सैक्टर से एकजुटता वसूली करने की आवश्यकता है, ताकि जलवायु कार्रवाई के लिए वित्तीय प्रबन्ध किए जा सकें. हमें कार्बन की एक न्यायसंगत क़ीमत तय करनी होगी.”

विस्थापितों के लिए कटु वास्तविकता

उधर, संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) ने कॉप29 सम्मेलन के दौरान अपनी एक नई रिपोर्ट जारी की है, जिसके अनुसार युद्ध, हिंसा और उत्पीड़न से जान बचाकर भागने वाले लोगों के लिए अब जलवायु परिवर्तन एक बड़ा ख़तरा बन रहा है.

‘No Escape: On the Frontlines of Climate, Conflict and Displacement’ नामक इस रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन के लिए ज़िम्मेदार, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों में कमी लाने के लिए मज़बूत क़दम उठाने का आग्रह किया गया है.

जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर यूएन शरणार्थी एजेंसी की यह पहली रिपोर्ट है. विश्व भर में 12 करोड़ से अधिक लोग जबरन विस्थापन का शिकार हैं, जिनमें से तीन-चौथाई लोग उन देशों में रह रहे हैं, जोकि बढ़ते उत्सर्जनों के असर का सामना कर रहे हैं.

क़रीब 50 फ़ीसदी विस्थापित उन स्थानों पर हैं, जिन्हें जलवायु जोखिमों और हिंसक टकराव, दोनों की मार झेलनी पड़ रही है, जैसेकि इथियोपिया, हेती, म्याँमार, सोमालिया, सूडान व सीरिया.

एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2040 तक जलवायु सम्बन्धी चरम जोखिमों का सामना करने वाले देशों की संख्या तीन से बढ़कर 65 तक पहुँच जाएगी. इस सदी के अन्त तक, अधिकाँश शरणार्थी शिविरों में रहने वाले विस्थापितों के लिए अत्यधिक गर्म दिनों की संख्या दोगुनी हो सकती है.

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