संयुक्त राष्ट्र महासचिव द्वारा नियुक्त पैनल की अन्तिम रिपोर्ट का निष्कर्ष है, “चूँकि प्रौद्योगिकी की प्रकृति ही ऐसी है कि उसकी संरचना या उपयोग, किन्हीं सीमाओं का मोहताज नहीं है. इसलिए इसके नियंत्रण के लिए एक वैश्विक संचालन व्यवस्था होनी बहुत ज़रूरी है.”
कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) से हमारा विश्व बदल रहा है. वैज्ञानिक शोधों के नए क्षेत्र खुल रहे हैं और ऊर्जा ग्रिड के अनुकूलन से लेकर, सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं कृषि में सुधार तथा 17 सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) हासिल करने के लिए भी इसका उपयोग किया जा रहा है.
ऐसे में, भलाई के लिए एआई की रूपान्तरकारी सम्भावना नज़र आती है. लेकिन अगर इसे अनियंत्रित छोड़ दिया जाए, तो एआई का लाभ केवल चंद अग्रणी देशों, कम्पनियों व व्यक्तियों तक ही सीमित होकर रह जाएगा, जिससे डिजिटल दरारें और वैश्विक असमानताएँ अधिक गहरी हो सकती हैं.
इन जोखिमों को कम करने के लिए रिपोर्ट में, एआई की अन्तरराष्ट्रीय शासन व्यवस्था का फ़्रेमवर्क स्थापित करने हेतु, कई सिफ़ारिशें प्रस्तुत की गई हैं.
बढ़ती मानवाधिकार सम्बन्धित चिन्ताएँ
रिपोर्ट में इस बात पर भी अत्यधिक चिन्ता व्यक्त की गई है कि एआई को कई तरीक़ों से मानवाधिकरों के हनन के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है.
एआई प्रौद्योगिकियों के निर्माण के लिए आवश्यक कच्ची सामग्री, विश्व के विभिन्न स्थानों से हासिल की जाती है, जिसमें कई महत्वपूर्ण खनिज भी शामिल है. इससे वैश्विक स्तर पर इन दुर्लभ वस्तुओं के नियंत्रण व सम्पत्ति के लिए लड़ाई छिड़ने का जोखिम भी सामने आता है.
इसके अलावा, मानवीय हस्तक्षेप के बिना निर्णय लेने में सक्षम स्वचालित हथियार प्रणालियों के इस्तेमाल से, जवाबदेही तथा संघर्षों के दौरान नागरिकों की सुरक्षा से सम्बन्धित, नैतिक एवं क़ानूनी सवाल उठते हैं. एआई प्रौद्योगिकी की प्रगति से, इससे प्रेरित हथियारों की होड़ की सम्भावना भी बढ़ेगी, जिससे मानव सुरक्षा ख़तरे में पड़ सकती है.
नागरिकों को नुक़सान पहुँचाने वाली भ्रामक जानकारी व दुस्सूचना के बढ़ते निर्माण व प्रसार से, एआई से जुड़े पूर्वाग्रह व निगरानी, एक और चिन्ता का विषय बनता जा रहा है.
अन्तराल दिखने लगे हैं
विषमताएँ अभी से नज़र आने लगी हैं. प्रतिनिधित्व की बात करें तो एआई के लिए अन्तरराष्ट्रीय शासन व्यवस्था की बातचीत में, दुनिया का एक बड़ा हिस्सा शामिल नहीं किया गया है.
उदाहरण के लिए, केवल सात देश (कैनेडा, फ्राँस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका), सात प्रमुख गैर-संयुक्त राष्ट्र एआई पहलों के सदस्य हैं. वहीं प्रमुखत: वैश्विक दक्षिण के 118 देशों को इनमें से किसी भी वार्ता में शामिल नहीं किया गया है.
रिपोर्ट में कहा गया है, “समता के लिए ज़रूरी है कि सभी को प्रभावित करने वाली प्रौद्योगिकी को नियंत्रित करने के निर्णयों में, अधिक से अधिक आवाज़ें शामिल होकर सार्थक भूमिका निभाएँ.”
रिपोर्ट में आगे कहा गया है, “एआई प्रौद्योगिकी क्षेत्र के लिए निर्णय लेने की क्षमता कुछ ही हाथों में सिमटकर रखना अनुचित होगा; हमें यह मानना होगा कि एआई से प्रभावित होने वाले कई समुदायों को, ऐतिहासिक रूप से एआई शासन व्यवस्था की बातचीत से पूरी तरह बाहर रखा गया है.”
वैश्विक समावेशी संरचना
इन चिन्ताओं को दूर करने के लिए, संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञ समूह ने, एआई के उपयोग को विनियमित करने के लिए कई सिफ़ारिशें पेश की हैं.इन सिफ़ारिशों में, एआई पर एक अन्तरराष्ट्रीय वैज्ञानिक पैनल, उत्कृष्ट उदाहरण साझा करने के लिए एआई शासन व्यवस्था पर साल में दो बार अन्तर-सरकारी एवं बहु-हितधारक नीति सम्वाद तथा डिजिटल खाई को पाटने हेतु, एआई के लिए एक वैश्विक कोष स्थापित करना शामिल है.
इस उच्च-स्तरीय निकाय ने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि सैन्य क्षेत्र में एआई की कोई भी तैनाती, अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून एवं मानवाधिकार मानकों के अन्तर्गत होनी चाहिए. उन्होंने बल देते हुए कहा कि इसके लिए देशों को मज़बूत क़ानूनी ढाँचे एवं निरीक्षण तंत्र स्थापित करने होंगे.
कुल मिलाकर देखा जाए तो इन सिफ़ारिशों में संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों से, अन्तरराष्ट्रीय सहयोग एवं पारदर्शिता पर आधारित, वैश्विक, समावेशी एआई संचालन व्यवस्था की नींव रखने का आहवान किया गया है.