मुहन्नद हादी ने ग़ाज़ा में स्थित, फ़लस्तीनी शरणार्थियों के लिए यूएन राहत एवं कार्य एजेंसी , UNRWA द्वारा संचालित अल-मामौनिया स्कूल परिसर से यूएन न्यूज़ के साथ बातचीत की.
युद्ध जारी रहने के बावजूद UNRWA के जो स्कूली इमारतें अभी भी खड़ी हैं, उन्हें अब विस्थापितों के लिए आश्रय में बदल दिया गया है.‘
असहनीय’ स्थिति
उन्होंने कहा, “यह जगह इनसानों के रहने लायक नहीं बची है. यह सब ख़त्म होना चाहिए. यह पीड़ा ख़त्म होनी चाहिए. यह युद्ध ख़त्म होना चाहिए. यह सब कुछ कल्पना से परे है.”
मुहन्नद हादी ने कहा कि उन्होंने जो देखा, वह उनके सितम्बर के उत्तरी ग़ाज़ा के दौरे के हालात से “बहुत अलग” था.
उन्होंने कहा, “इस स्कूल में, मैंने परिवारों और लोगों को एक के ऊपर एक, लदकर रहते हुए देखा है. यहाँ हालात असहनीय हैं. मैं कल्पना भी नहीं कर सकता कि यह लोग किस तरह जी रहे हैं.”
“सितम्बर में इस स्कूल में 500 लोग थे, और अब 1,500 से अधिक लोग हैं. लोगों के लिए बाथरूम तक उपलब्ध नहीं है. भोजन की कमी है. स्थिति असहनीय है. हर जगह सीवेज का पानी इकट्ठा है. हर जगह कूड़ा-कचरा बिखरा पड़ा है.”
‘केवल पानी और दाल का आहार’
क्षतिग्रस्त स्कूल की दूसरी मंज़िल पर एक खिड़की से, आंगन में कूड़े के ढेर देखे जा सकते हैं – जो उन भारी स्वास्थ्य जोखिमों व कठोर परिस्थितियों की ओर इशारा करते है, जिनका सामना वहाँ के लोग कर रहे हैं.
उत्तरी ग़ाज़ा में भोजन सहित महत्वपूर्ण आपूर्ति की भारी कमी है.
बमबारी से क्षतिग्रस्त एक स्कूल का जायज़ा लेते समय मुहन्नद हादी की मुलाकात एक ऐसे व्यक्ति से हुई जो अपने परिवार के लिए दाल का सूप बना रहा था.
मुहन्नद हादी को बताया गया कि उसे यह दाल UNRWA से प्राप्त हुई थी, जिसे एक छोटे से बर्तन में भरकर वह व्यक्ति, 12 लोगों का पेट भरने जा रहा था.
उन्होंने कहा, “उसमें केवल दाल और पानी का घोल था; उसमें कोई लहसुन या प्याज़ तक नहीं था. एक मिर्च की फली की क़ीमत भी आज 10 शेकेल पर पहुँच गई है.”
‘हम मौज-मस्ती करना चाहते हैं’
संयुक्त राष्ट्र के वरिष्ठ अधिकारी ने अल-जला स्ट्रीट पर अल-नेज़क नामक एक अस्थाई शिक्षण केन्द्र का भी दौरा किया. पिछले साल अक्टूबर में युद्ध शुरू होने के बाद, स्थानीय बच्चों को युद्ध की भयावहता से निपटने, तथा न्यूनतम शिक्षा और एक सुरक्षित स्थान प्रदान करने के लिए, नष्ट हुए मार्ग पर तम्बू लगाकर यह केन्द्र शुरु किया गया है.
इस अस्थाई स्कूल में, 11 पुरुष व महिला शिक्षक, 510 छात्रों को अरबी, अंग्रेज़ी, गणित, एवं विज्ञान की शिक्षा तथा मनोसामाजिक सहायता प्रदान करते हैं.
मुहन्नद हादी, तीन से पाँच साल की उम्र के छोटे बच्चों के साथ खेले. इनमें से कई बच्चों का स्कूली शिक्षा आरम्भ करने का समय था, लेकिन युद्ध के कारण वो असल कक्षाओं में शिक्षा हासिल करने से महरूम हैं.
यहाँ उनकी मुलाक़ात एक ऐसी लड़की से हुई, जिसने युद्ध में अपने माता-पिता और घर खो दिया है. अब वह, अपने चचेरे भाइयों के साथ रहती है, जो ख़ुद भी इस युद्ध में अनाथ हो गए हैं. उसका स्कूल अल-नेज़क शिक्षण स्थल के पास स्थित था, लेकिन ग़ाज़ा के अधिकाँश स्कूलों की तरह यह भी गोलीबारी से नष्ट हो गया.
इस लड़की ने उन्हें बताया कि मौक़ा मिलने पर वो घर पर चावल पका लेती है, लेकिन ज़्यादातर भोजन के लिए मानवीय संगठनों की मदद पर ही निर्भर हैं.
जब मुहन्नद हादी ने उससे पूछा कि युद्ध समाप्त होने पर वह क्या करना चाहती है, तो उसने कहा, “हम मौज-मस्ती करना चाहते हैं, आनंद लेना चाहते हैं. जहाँ चाहे, वहाँ जाना चाहते हैं.”
संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष मानवीय अधिकारी ने बधिर बच्चों के लिए अटफालुना एसोसिएशन के मुख्यालय का भी दौरा किया, जहाँ छात्रों ने उन्हें सांकेतिक भाषा के कुछ गुर सिखाए.
यह संगठन, 35 बच्चों को अंग्रेज़ी, अरबी, गणित, विज्ञान, शारीरिक शिक्षा और कला की शिक्षा प्रदान करता है. इनमें से कई बच्चे, भीषण गोलाबारी के कारण अपनी सुनने की क्षमता खो चुके हैं, और संगठन की मदद से अपनी नई विकलांगता के साथ जीना सीख रहे हैं.
युद्ध बन्द करो
मुहन्नद हादी ने यूएन न्यूज़ को बताया कि उन्होंने उत्तरी ग़ाज़ा के लोगों से भयावह कहानियाँ सुनी हैं. उन्होंने तुरन्त युद्ध रोकने की आवश्यकता पर बल दिया.
उन्होंने कहा, “यहाँ लोगों पर जो बीत रही है, वो किसी के लिए भी असहनीय है. यह लोग इस युद्ध के असली पीड़ित हैं. यह लोग ही इस युद्ध की क़ीमत चुका रहे हैं – मेरे आसपास मौजूद यह सभी बच्चे, महिलाएँ और बुज़ुर्ग.”
15 संयुक्त राष्ट्र और अन्तरराष्ट्रीय मानवतावादी संगठनों के प्रमुखों ने हाल ही में पुष्टि की है कि “उत्तरी ग़ाज़ा स्थित पूरी फ़लस्तीनी आबादी, बीमारी, अकाल और हिंसा से मरने के जोखिम में है.”
अधिकारियों ने कहा कि मानवीय कार्यकर्ता सुरक्षित तरीक़े से काम नहीं कर पा रहे हैं, और इसराइली सेना एवं असुरक्षित हालात, उन्हें ज़रूरतमन्द लोगों तक पहुँचने से रोकते हैं.
ग़ाज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, अक्टूबर 2023 में युद्ध शुरू होने के बाद से 43 हज़ार से अधिक फ़लस्तीनी मारे गए हैं और 1 लाख घायल हुए हैं.
संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि 19 लाख से अधिक लोगों को एन्क्लेव में स्थित उनके घरों से जबरन विस्थापित किया गया है.
इनमें से कुछ तो, सुरक्षित स्थान की तलाश में बारम्बार, एक स्थान से दूसरे स्थान जाने के लिए मजबूर हुए हैं