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ईरान: हिजाब पहनने व ‘यौन शुचिता’ के लिए कठोर क़ानून को वापिस लेने की मांग

ईरान: हिजाब पहनने व ‘यौन शुचिता’ के लिए कठोर क़ानून को वापिस लेने की मांग

स्वतंत्र विशेषज्ञों ने आगाह किया है कि “नया हिजाब क़ानून, ईरान में महिलाओं के शरीरों पर राजसत्ता के बढ़ते नियंत्रण को दर्शाता है, और यह महिलाओं के अधिकारों व आज़ादियों पर एक और प्रहार है.”

ग़ौरतलब है कि ईरान में तथाकथित यौन शुचिता व हिजाब की संस्कृति को बढ़ावा देने के ज़रिये परिवार की रक्षा करने पर एक क़ानून को लागू किया जा रहा है.

इस क़ानून के तहत, ऑनलाइन माध्यमों पर व आम जीवन में हिजाब ना पहनने वाली 12 वर्ष या उससे अधिक उम्र की लड़कियों को दंडित किए जाने का प्रावधान है. 

कथित तौर पर अश्लील, अनुपयुक्त पोशाक पहनने वाली लड़कियों और नग्नता को बढ़ावा देने वाली लड़कियों व महिलाओं को दंड देने की भी बात कही गई है.

कठोर प्रावधान

ईरान में हिजाब ना पहनने पर, इस्लामी दंड संहिता के अनुसार, पहले से ही सज़ा मिलने व जेल में बन्द किए जाने की व्यवस्था है. मगर नए क़ानून के ज़रिये जुर्माने की राशि को बढ़ाया गया है और कारागार में 15 वर्ष तक सज़ा दी जा सकती है.

इसके अलावा, ‘पृथ्वी पर भ्रष्ट आचरण’ के आरोप में न्यायाधीशों के लिए यह सम्भव होगा कि ‘दोषी’ पाए गए लोगों को मौत की सज़ा दी जाए.

मानवाधिकार विशेषज्ञों के समूह ने कहा कि नए क़ानून में बुनियादी मानवाधिकारों, क़ानूनी मानकों और सिद्धान्तों का स्पष्ट उल्लंघन किया गया है. इससे महिलाओं के समानता, अभिव्यक्ति की आज़ादी, धर्म व आस्था, शारीरिक स्वायत्ता, सुरक्षा व निजता समेत अन्य अधिकारों का हनन होता है.

विशेष रैपोर्टेयर के समूह ने चिन्ता जताई है कि सरकारी प्रोपेगेंडा के ज़रिये शैक्षणिक सामग्री को तैयार किया जा रहा है, हिजाब को अनिवार्य बनाने, तथाकथित यौन शुचिता व पारिवारिक मूल्यों को बढ़ावा देने के लिए सांस्कृतिक मानक थोपे जा रहे हैं.

उनके अनुसार, इस क़ानून के तहत इन आदर्शों को पाठ्यक्रमों, प्रशिक्षण कार्यक्रमों व सार्वजनिक सूचना मुहिम में शामिल किया जा रहा है, और राजसत्ता की अनुमति प्राप्त मूल्य व्यवस्था को थोपने की कोशिश हो रही है.

इससे अभिव्यक्ति की आज़ादी पर असर होगा और विचार, धर्म व आस्था के अधिकारों को ठेस पहुँचेगी.

अविश्वास की आशंका

स्वतंत्र विशेषज्ञों ने कहा कि इस क़ानून को लागू करने में आम लोगों को भी ज़िम्मेदारी दी गई है. व्यक्तियों, परिवारों व व्यवसायों को इस क़ानून का पालन ना करने वाले मामलों की जानकारी देनी होगी और यह पता लगाने के लिए टैक्नॉलॉजी का भी इस्तेमाल किया जाएगा.

उन्होंने आशंका जताई है कि इस वजह से भय व अविश्वास का माहौल पैदा होगा और इसका ग़ैर-आनुपातिक असर बच्चों, युवाओं व सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वाली आबादी व समूहों पर हो सकता है.

स्वतंत्र विशेषज्ञों ने कहा कि इससे महिलाओं व लड़कियों के विरुद्ध हिंसा के मामले बढ़ने की सम्भावना है और लिंग-आधारित, व्यवस्थागत भेदभाव को प्रोत्साहन मिलेगा और ईरान समाज में अलगाव बढ़ेगा.

इसके मद्देनज़र, विशेष रैपोर्टेयर के समूह ने हिजाब व यौन शुचिता क़ानून समेत सभी भेदभावपूर्ण क़ानूनों को तुरन्त वापिस लिए जाने की मांग की है.

मानवाधिकार विशेषज्ञ

स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ या विशेष रैपोर्टेयर, जिनीवा स्थित मानवाधिकार परिषद द्वारा, किसी मानवाधिकार स्थिति या किसी देश की स्थिति की निगरानी करके, रिपोर्ट सौंपने के लिए नियुक्त किए जाते हैं.

ये मानवाधिकार विशेषज्ञ संयुक्त राष्ट्र और किसी देश की सरकारों से स्वतंत्र होते हैं, वो यूएन स्टाफ़ नहीं होते हैं और ना ही उनके काम के लिए, उन्हें संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन मिलता है.

इस वक्तव्य पर हस्ताक्षर करने वाले विशेषज्ञों की सूची देखने के लिए यहाँ क्लिक कीजिए.

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