रोज़मैरी डीकार्लो ने सुरक्षा परिषद को 2015 के समझौते, व इसे मंज़ूरी देने वाले 2015 के परिषद प्रस्ताव 2231 के कार्यान्वयन पर हुई प्रगति के बारे में जानकारी दी. इस समझौते को औपचारिक रूप से संयुक्त व्यापक कार्य योजना’ (Joint Comprehensive Plan of Action/JCPOA) के नाम से जाना जाता है.
2015 में हुए इस समझौते के तहत ईरान के घरेलू परमाणु कार्यक्रम की निगरानी करने के लिए नियम पेश किए गए थे, ताकि अमेरिकी प्रतिबन्धों को हटाने का मार्ग प्रशस्त हो सके.
इस मुद्दे पर ईरान, सुरक्षा परिषद के पाँच स्थाई सदस्यों – चीन, फ़्राँस, रूस, ब्रिटेन, अमेरिका – समेत जर्मनी व योरोपीय संघ ने सहमति जताई थी. हालाँकि, मई 2018 में ट्रम्प प्रशासन के दौरान, अमेरिका इस समझौते से अलग हो गया था.
गतिरोध समाप्त करें
रोज़मैरी डीकार्लो ने बताया कि प्रस्ताव 2231 (2015) की ‘अन्तिम तिथि’ आने में अब केवल 10 महीने बचे हैं. लेकिन JCPOA को बहाल करने में गतिरोध अभी भी बरक़रार है, और इस बीच क्षेत्रीय परिस्थितियाँ बदतर होती जा रही हैं.
उन्होंने राजदूतों को बताया, “इस पृष्ठभूमि में, उस योजना के उद्देश्यों को बहाल करने के लिए एक व्यापक एवं दीर्घकालिक समाधान की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक ज़रूरी हो गई है.”
अमेरिका ने, ‘संयुक्त व्यापक कार्य योजना’ की दिशा में वापसी नहीं की है, और ना ही, उसकी ओर से उन पाबन्दियों को हटाया गया है जिन्हें मई 2018 में इस समझौते से पाँव वापिस खींचने पर एकतरफ़ा ढंग से ईरान पर फिर से थोप दिया गया था. अमेरिका ने ईरान के साथ तेल व्यापार पर छूट दिए जाने की अवधि को भी नहीं बढ़ाया है.
वहीं, ईरान सरकार द्वारा “मई 2019 के बाद से लिए गए उन क़दमों को वापिस नहीं लिया गया है, जोकि परमाणु समझौते के तहत उसके तयशुदा दायित्वों से मेल नहीं खाते हैं. “
सत्यापन और निगरानी में मुश्किलें
यूएन अवर महासचिव डीकार्लो ने हाल ही में जारी हुई अन्तरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी IAEA की एक रिपोर्ट का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया है कि JCPOA के तहत ईरान द्वारा अपने परमाणु सम्बन्धी दायित्व पूरा किए जाने से पीछे हटने से, उसकी सत्यापन प्रक्रिया व उसकी निगरानी के प्रयास गम्भीर रूप से प्रभावित हुए हैं.
IAEA ने यह भी कहा कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम के कई पहलुओं पर लगातार जानकारी नहीं मिल पा रही है.
उन्होंने कहा, “साधारण शब्दों में कहा जाए तो एजेंसी अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को यह आश्वस्त करने में असमर्थ है कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम शान्तिपूर्ण कार्यों के लिए है.”
संवर्धित यूरेनियम भण्डार ‘चिन्ताजनक’
यूएन परमाणु एजेंसी, फ़रवरी 2021 के बाद से ही ईरान में संवर्धित यूरेनियम के कुल भण्डार की पुष्टि कर पाने में असमर्थ रही है.
उन्होंने कहा, “हालाँकि, अनुमान है कि परमाणु समझौते में संवर्धित यूरेनियम की जितनी मात्रा की अनुमति दी गई थी, ईरान के पास उसका 32 गुना अधिक भण्डार हो सकता है.”
“इनमें बढ़ी हुई मात्रा में 20 फ़ीसदी और 60 फ़ीसदी संवर्धित यूरेनियम भी है. अवर महासचिव ने कहा कि संवर्धित यूरेनियम का इतना भण्डार और उसका इस स्तर पर संवर्धन चिन्ता का विषय है.”
IAEA ने दो विशेष रिपोर्ट भी जारी की हैं, जिनमें JCPOA में तय सीमा से अधिक पूर्व घोषित संवर्धन गतिविधियाँ शुरू करने के ईरान के इरादे के साथ-साथ, यूरेनियम संवर्धित उत्पादन को 60 प्रतिशत तक बढ़ाने की गतिविधियों के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है.
‘चुनौती का सामना करें’
इस बीच, संयुक्त राष्ट्र महासचिव को JCPOA में शामिल पक्षों से कुछ पत्र प्राप्त हुए हैं.
ईरान और रूस के साथ, फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन ने इस गतिरोध के कारणों, और इसकी वजह से उठाए गए क़दमों तथा भविष्य के मार्ग पर अपने-अपने विचार साझा किए हैं.
रोज़मैरी डिकार्लो ने कहा, “इस महत्वपूर्ण मोड़ पर समझौते में शामिल पक्षों के बीच लगातार जारी असहमति को लेकर महासचिव बेहद चिन्तित हैं.”
“इन मतभेदों के बावजूद, सदस्य देशों ने इन्हें सुलझाने के लिए रचनात्मक प्रयास करने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है. मैं JCPOA मेंशामिल सभी पक्षों और संयुक्त राज्य अमेरिका से इस चुनौती के समाधान के लिए काम करने का आग्रह करती हूँ.”
अन्त में रोज़मैरी डिकार्लो ने महासचिव का आहवान दोहराते हुए कहा कि सभी देश “बहुपक्षवाद और कूटनीति को प्राथमिकता दें” – ये वहीं सिद्धान्त हैं, जिन्होंने JCPOA को सम्भव बनाया था.
‘समय क़ीमती है’
उन्होंने चेतावनी दी, “सभी पक्षों को राजनैतिक इच्छाशक्ति दिखानी चाहिए और तुरन्त सम्वाद में दोबारा शामिल होना चाहिए. इसमें समय बहुत मायने रखता है,”
“हालाँकि ज़िम्मेदारी JCPOA में शामिल सभी पक्षों व अमेरिका पर है, लेकिन उनकी सफलता या विफलता हम सभी के लिए मायने रखती है. यह क्षेत्र और ज़्यादा अस्थिरता सहन नहीं कर सकता.”
उन्होंने सम्वाद व कूटनीति के प्रति सच्ची प्रतिबद्धता जताने पर ज़ोर देते हुए कहा, “यही वह तरीक़ा है जिससे यह भरोसा क़ायम किया जा सकता है कि ईरान का परमाणु कार्यक्रम शान्तिपूर्ण कार्यों के लिए है. इसी से ईरान के लोगों की आकाँक्षाओं को साकार किया जा सकता है, और क्षेत्र व उससे परे स्थिरता लाने में योगदान दिया जा सकता है.”