विश्व मौसम संगठन (WMO) ने, योरोपीय संघ की कॉपरनिकस जलवायु परिवर्तन सेवा के हवाले से यह ख़बर दी है.
संगठन की महासचिव सेलेस्टे साउलो का कहना है, “दुर्भाग्य से, कॉपरनिकस जलवायु परिवर्तन सेवा के नवीनतम आँकड़े, दिखाते हैं कि हम 1.5 डिग्री सैल्सियस के स्तर का रिकॉर्ड, हर महीने, अस्थाई तौर पर बदलते हुए देखेंगे.”
ग़ौरतलब है कि इसमें 1.5 डिग्री सैल्सियस का महत्वपूर्ण आँकड़ा, पूर्व-औद्योगिक काल के स्तर से तापमान वृद्धि को दर्शाता है, जोकि 1850 में शुरू हुआ था.
पेरिस जलवायु सम्मेलन में भी तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सैल्सियस तक सीमित रखने का लक्ष्य रखा गया है, जिस पर वर्ष 2016 में विश्व सहमति हुई थी.
लम्बी अवधि की तस्वीर
WMO की महासचिव सेलेस्टे साउलो का कहना है, “अलबत्ता यह ज़ोर देना अहम होगा कि रिकॉर्ड में बार-बार बदलाव का मतलब यह नहीं है कि 1.5 डिग्री सैल्सियस का लक्ष्य स्थाई रूप में हाथ से निकल गया है, क्योंकि यह आँकड़ा पिछले दो दशकों के दौरान लम्बी अवधि में तापमान वृद्धि के सन्दर्भ में है.”
वैज्ञानिक समुदाय ने आगाह किया है कि तापमान वृद्धि 1.5 डिग्री सैल्सियस से अधिक होने पर, जलवायु परिवर्तन के अति गम्भीर प्रभाव देखने को मिल सकते हैं, जिसमें मौसम के गम्भीर प्रभाव भी शामिल है. इसलिए इस सन्दर्भ में तापमान वृद्धि के हर एक लघु बिन्दु की अहमियत को भी रेखांकित किया गया है.
संयुक्त राष्ट्र की मौसम एजेंसी – WMO के अनुसार, उदाहरण के लिए, प्रत्येक 0.1 डिग्री सैल्सियस की तापमान वृद्धि से, तापमान की सघनता और नमी में स्पष्ट वृद्धि होती है, साथ ही कुछ क्षेत्रों में कृषिय और पारिस्थितिकी सूखा भी बढ़ता है.
अत्यन्त चरम मौसम के रुझान
WMO ने आगाह किया है कि यहाँ तक कि तापमान वृद्धि के आज के स्तरों पर भी, विश्व जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी प्रभावों का सामना कर रहा है. अत्यन्त गर्म ताप लहरें, भारी बारिश की घटनाएँ और सूखा पड़ने के हालात, हिमनदों में कमी, और समुद्र का बढ़ता स्तर, पहले ही पृथ्वी पर तबाही मचा रहे हैं.
विश्व मौसम संगठन की वर्ष 2023 की रिपोर्ट में कहा गया है कि अत्यधिक गर्मी, अत्यन्त मौसम की तमाम चरम घटनाओं में, सबसे अधिक लोगों की मौत का कारण है. वर्ष 2000 से 2019 के दौरान, अत्यधिक गर्मी से, दुनिया अनेक हिस्सों में, 4 लाख 89 हज़ार लोगों की मौतें हुईं.
WMO की महासचिव सेलेस्टे साउलो का कहना है कि जून महीने में, समुद्री सतह का दर्ज किया गया तापमान भी, रिकॉर्ड पर सबसे उच्च रहा है. रिकॉर्ड तोड़ने वाली ये तापमान वृद्धियाँ, महत्वपूर्ण समुद्री पारिस्थितिकियों के लिए बड़ी चिन्ता की बात हैं. और इन तापमान वृद्धियों से, अत्यधिक शक्तिशाली चक्रवाती तूफ़ानों को भी ईंधन मिलता है, जैसाकि हमने हाल ही में, बैरिल तूफ़ान के मामले में देखा.
दुनिया भर की झलकियाँ
दुनिया भर में देखा जाए तो योरोपीय क्षेत्र में तापमान में, औसत से सबसे अधिक वृद्धि दर्ज की गई, जोकि दक्षिण-पूर्वी क्षेत्रों और तुर्कीये से अधिक थी.
इस बीच, योरोप के बाहर, औसत से आधिक तापमान, पूर्वी कैनेडा, संयुक्त राज्य अमेरिका और मैक्सिको के पश्चिमी क्षेत्र में, ब्राज़ील, उत्तरी साइबेरिया, मध्य पूर्व, उत्तरी अफ़्रीका, और पश्चिमी अंटार्कटिका में रहा.
उधर पूर्वी प्रशान्त क्षेत्र में तापमान औसत से नीचे रहे, जिससे ला नीना के विकसित होने का संकेत मिला. जबकि अन्य अनेक क्षेत्रों में समुद्र के ऊपर हवाई तापमान, असाधारण रूप से उच्च रहा.
कॉपरनिकस जलवायु परिवर्तन सेवा के निदेशक कार्लो बुओटेम्पो का कहना है, “अगर अत्यन्त चरम मौसम का यह मौजूदा रुझान, किसी स्तर पर ख़त्म भी हो जाता है, तो भी जलवायु के गर्म होने के नए रिकॉर्ड नज़र आते रहेंगे.”
उनका कहना है कि इस चलन को तब तक टाला नहीं जा सकता जब तक हम वायुमंडल और समुद्रों में, ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन नहीं रोकेंगे.