विश्व

इसराइल-फ़लस्तीन संकट: यूएन महासभा का आपात विशेष सत्र

रफ़ाह में इसराइली सेना का ज़मीनी अभियान शुरू होने के बाद से ही मानवीय राहत प्रयासों की रफ़्तार रुक गई है. एक लाख फ़लस्तीनियों के फिर से विस्थापित होने की आशंका है, और स्थिति तेज़ी से बदल रही है. 

यूएन महासभा अध्यक्ष डेनिस फ़्रांसिस ने कहा कि इसराइल-फ़लस्तीन संकट, इस विश्व निकाय के गठन से पहले ही एक संकट बन चुका था.

उन्होंने महासभा हॉल में प्रतिनिधियों को बताया कि शान्ति, पहुँच से दूर है और फ़िलहाल वहाँ स्थिति चिन्ताजनक रफ़्तार से बिगड़ती जा रही है. 

यूएन महासभा प्रमुख ने ध्यान दिलाया कि कई सदस्य देशों का अनिवार्य वित्तीय योगदान बक़ाया है, और भुगतान ना करने की स्थिति में वे अपना अपना वोट खो देंगे. नियम यही हैं. मगर, शुक्रवार के सत्र को एक अपवाद माना गया है.

इस सत्र में कई देशों के समूह द्वारा प्रायोजित प्रस्ताव के मसौदे पर मतदान होने की सम्भावना है, जोकि संयुक्त राष्ट्र में फ़लस्तीन के पर्यवेक्षक राष्ट्र के दर्जे से सम्बन्धित है.

संयुक्त राष्ट्र में फ़लस्तीन की पूर्ण सदस्यता के लिए सुरक्षा परिषद में 18 अप्रैल को लाए गए एक प्रस्ताव को अमेरिका द्वारा वीटो कर दिया गया था. 

यह प्रस्ताव सुरक्षा परिषद के अस्थाई सदस्य अल्जीरिया द्वारा पेश किया गया था, जिसके पक्ष में 12 वोट डाले गए, जबकि स्विट्ज़रलैंड और ब्रिटेन ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया.

फ़लस्तीन पर प्रस्ताव का मसौदा

193 सदस्य देशों वाली यूएन महासभा में किसी भी देश के पास वीटो अधिकार नहीं है. इस प्रस्ताव पर मतदान के बाद सुरक्षा परिषद को फ़लस्तीनी सदस्यता के मुद्दे पर पुनर्विचार की सिफ़ारिश किए जाने की सम्भावना है.

सदस्यता के विषय में यूएन चार्टर के अनुच्छेद 4 के अनुरूप यह किया जा सकता है, और इस सिलसिले में 1948 में अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय द्वारा भी परामर्श जारी किया गया था.

जारी…

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