यूएन एजेंसी के महाआयुक्त फ़िलिपे लज़ारिनी ने कहा कि UNRWA की विश्वसनीयता को ख़त्म करने के लिए जारी मुहिम में यह नवीनतम कड़ी है, जिसके ज़रिये फ़लस्तीनी शरणार्थियों को सहायता व सेवाएँ प्रदान करने में संगठन की भूमिका को दरकिनार करने की कोशिशें हो रही हैं.
समाचार माध्यमों के अनुसार, इसराइली संसद क्नैसेट में सोमवार को UNRWA पर पाबन्दी लगाने वाला एक विधेयक पेश किया गया, जोकि 92-10 मतों के अन्तर से पारित हो गया.
फ़िलिपे लज़ारिनी ने कहा कि माना जा रहा है कि ये बिल 90 दिनों के भीतर लागू हो जाएँगे, जिससे फ़लस्तीनियों की पीड़ा और गहरी होगी, विशेष रूप से ग़ाज़ा में, जहाँ पिछले एक वर्ष से अधिक समय से लोग नारकीय जीवन जी रहे हैं.
उन्होंने कहा, “ये बिल फ़लस्तीनियों की पीड़ा को बढ़ाने वाले हैं और किसी सामूहिक दंड से कम नहीं हैं.”
संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने सोमवार देर रात न्यूयॉर्क में एक वक्तव्य जारी करके चेतावनी दी कि इन क़ानूनों के लागू होने से “UNRWA को अपनी ज़रूरी राहत कार्रवाई जारी रखने में मुश्किलें पेश आएँगी.”
महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने ध्यान दिलाया कि ज़रूरतमन्द आबादी को सहायता, मुख्यत: UNRWA के ज़रिए मुहैया कराई जाती रही है, और अगर इसराइल ने इस एजेंसी को गैरक़ानूनी घोषित किया तो इसके विनाशकारी नतीजे होंगे.
यूएन महासचिव ने कहा, “मैं इस मामले को संयुक्त राष्ट्र महासभा के समक्ष पेश करूँगा और पूरी बारीक़ी से आगे की स्थिति की जानकारी देता रहूँगा.”
फिलहाल ग़ाज़ा पट्टी की पूरी आबादी मानवीय सहायता पर निर्भर है, और युद्ध प्रभावित क्षेत्र में UNRWA, संयुक्त राष्ट्र के राहत प्रयासों की बुनियाद के रूप में काम कर रही है. भोजन एवं अन्य जीवनरक्षक सामग्री पहुँचाने में मदद करने के अलावा, वहाँ जारी पोलियो टीकाकरण अभियान में भी UNRWA की महत्वपूर्ण भूमिका है.
UNRWA का कोई विकल्प नहीं
यूएन एजेंसी के महाआयुक्त फ़िलिपे लज़ारिनी ने कहा कि UNRWA और उसकी सेवाएँ ख़त्म करने से “फ़लस्तीनियों का शरणार्थी के रूप में दर्जा नहीं छिनेगा.” उन्होंने कहा, “यह दर्जा, संयुक्त राष्ट्र महासभा के एक अन्य प्रस्ताव के तहत तब तक संरक्षित है, जब तक फ़लस्तीनियों की दुर्दशा का कोई उचित व स्थाई समाधान न मिल जाए.”
उन्होंने कहा, “अगर हम इन विधेयकों को लागू होने से रोकने में नाक़ाम रहे तो द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्थापित हमारा साझा बहुपक्षीय तंत्र कमज़ोर हो जाएगा.”
दिसम्बर 1949 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने, फ़लस्तीन शरणार्थियों के लिए सीधे तौर पर राहत पहुँचाने व विकास कार्यक्रमों के इरादे से UNRWA की स्थापना की थी. संस्था का काम 1 मई 1950 से शुरू किया गया.
संयुक्त राष्ट्र सहायता समन्वय कार्यालय, OCHA की कार्यवाहक प्रमुख ने UNRWA के साथ पूर्ण एकजुटता व्यक्त करते हुए कहा कि संगठन का काम, लाखों फ़लस्तीनियों के लिए बेहद आवश्यक है.”
जॉयस म्सूया ने कहा कि यह निर्णय “ख़तरनाक एवं अपमानजनक है. UNRWA का कोई विकल्प नहीं है.