प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने रविवार को कहा कि विपक्षी दल, जो इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bond) पर हंगामा कर रहे हैं, निश्चित रूप से “अफसोस” करेंगे। उन्होंने जोर देकर कहा कि योजना में कमियां हो सकती हैं और उन्हें ठीक किया जा सकता है। लोकसभा चुनाव से कुछ हफ्ते पहले Thanthi TV के साथ एक इंटरव्यू में, प्रधान मंत्री ने कहा कि कोई नहीं जानता कि 2014 से पहले चुनावों में कितना पैसा खर्च किया गया था और फंडिंग की डिटेल अब केवल चुनावी बांड के कारण पब्लिक डोमेन में है। विपक्ष ने इस योजना को “भारत का सबसे बड़ा घोटाला” करार दिया है।
उन्होंने कहा, “मुझे बताइए कि मैंने ऐसा क्या किया कि मुझे झटका लगा। मेरा मानना है कि जो लोग नाच रहे हैं और इस पर गर्व महसूस कर रहे हैं, उन्हें पछताना पड़ेगा। मैं पूछना चाहता हूं कि क्या कोई एजेंसी हमें बता सकती है कि 2014 से पहले चुनावों में कितना पैसा खर्च किया गया था।”
‘कमियां हो सकती हैं और उन्हें सुधारा जा सकता है’
उन्होंने आगे कहा, “मोदी इलेक्टोरल बॉन्ड (Electoral Bond) लेकर आए, यही कारण है कि आप जान पा रहे हैं कि किसने पैसा लिया और दान दिया। आज आपके पास एक कड़ी है। कमियां हो सकती हैं और उन्हें सुधारा जा सकता है।”
15 फरवरी को दिए गए एक ऐतिहासिक फैसले में, पांच-जजों की संविधान बेंच ने केंद्र की इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया, जिसने गुमनाम राजनीतिक फंडिंग की अनुमति दी थी। अदालत ने इसे “असंवैधानिक” कहा और चुनाव आयोग की तरफ से दानदाताओं के डेटा, उनके द्वारा दान की गई राशि और इसे लेने वाली पार्टी का खुलासा करने का आदेश दिया।
क्या है चुनावी बॉन्ड?
चुनावी बॉन्ड एक वचन पत्र की तरह होता है, जो खरीदने वाले को मांग पर और बिना ब्याज के देय होता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया ती, जिसके जरिए एक भारतीय नागरिक या एक कॉर्पोरेट इकाई एक राजनीतिक दल को फंड दे सकती थी, जिसे बाद में कैश कराया जा सकता है।
सरकार ने 2018 में चुनावी बॉन्ड लागू किया। इसे नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली NDA सरकार ने 2 जनवरी, 2018 के गजट नोटिफिकेश नंबर 20 में “देश में राजनीतिक फंडिंग की प्रणाली को साफ करने” के लिए पेश किया था।
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