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अरविंद केजरीवाल अंतरिम जमानत पर रिहा हुए हैं, रेगुलर पर नहीं; वकील बोले- यह आदेश नहीं बन सकता कानूनी मिसाल कायम

दिल्ली एक्साइज पॉलिसी घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, तिहाड़ जेल से रिहा हो चुके हैं। लेकिन उनकी यह रिहाई कुछ ही दिनों के लिए है। सुप्रीम कोर्ट ने लोकसभा चुनाव के प्रचार के लिए केजरीवाल को 1 जून तक अंतरिम जमानत दी है। 2 जून से उन्हें फिर जेल जाना होगा। सीनियर एडवोकेट्स ने मनीकंट्रोल को बताया कि केजरीवाल को अंतरिम जमानत देने का सुप्रीम कोर्ट का फैसला कानूनी मिसाल नहीं बन सकता है क्योंकि यह केवल एक अंतरिम आदेश है।

सीनियर एडवोकेट और पूर्व एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (ASG) संजय जैन का कहना है, “यह केवल एक अंतरिम आदेश है, जो कानून के किसी भी प्रस्ताव पर निर्णय नहीं लेता है, आपराधिक न्यायशास्त्र के किसी भी ​एलिमेंट को कम छेड़ता है। यह राजनेताओं को एक अलग वर्ग घोषित नहीं करता।”

10 मई को सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल को यह कहकर चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत दे दी कि उनका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है और वह समाज के लिए खतरा नहीं हैं। 9 मई को प्रवर्तन निदेशालय ने केजरीवाल को राहत देने का विरोध करते हुए हलफनामा दायर किया था। ईडी ने कहा कि समानता के आधार पर हम एक छोटे किसान या छोटे व्यापारी के काम को केजरीवाल के पेशे से निचले पायदान पर नहीं रख सकते। इसलिए, उन्हें अंतरिम जमानत देना उचित नहीं होगा, खासकर तब जब वह चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। केजरीवाल को ईडी ने 21 मई को गिरफ्तार किया था।

हर दिन पारित किए जाने वाले कई दूसरे आदेशों की तरह है यह आदेश

जैन ने आगे कहा कि सुप्रीम कोर्ट को इस सवाल पर विचार करने का अवसर नहीं मिला कि क्या किसी व्यक्ति के पेशे या पेशेवर जरूरतों को जमानत देने या जमानत से इनकार करने के आधार के रूप में मान्यता दी जा सकती है। उन्होंने कहा, ”इस आदेश का ज्यादा मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए। यह संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत माननीय सर्वोच्च न्यायालय की ओर से रिक्त स्थानों को भरने के लिए अपनी असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए हर दिन पारित किए जाने वाले कई आदेशों की तरह है।”

रेगुलर जमानत से अलग है अंतरिम जमानत

इसी तरह का विचार व्यक्त करते हुए सीनियर एडवोकेट गोपाल शंकरनारायण ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम जमानत दी है, रेगुलर नहीं। रेगुलर जमानत वह है, जहां अदालत किसी व्यक्ति को बॉन्ड और यह वचन देने पर हिरासत से रिहा करने का आदेश देती है कि वह व्यक्ति न्याय के मार्ग में बाधा नहीं डालेगा। दूसरी ओर अंतरिम जमानत वह होती है, जो सीमित समय के लिए दी जाती है और यह केवल एक अस्थायी उपाय है।

शंकरनारायणन ने बताया, “इसके अलावा, अदालत ने केजरीवाल के पिछले आचरण और क्या वह फरार हो जाएंगे या समाज के लिए खतरा होंगे, इस पर विचार किया और फैसला किया कि उन्हें केवल 1 जून तक चुनाव प्रचार में शामिल होने की अनुमति दी जा सकती है, जिसके बाद वह वापस हिरासत में चले जाएंगे।” आगे कहा कि यह आदेश समान स्थिति वाले व्यक्तियों के लिए एक सीमित मिसाल हो सकता है, लेकिन केवल अंतरिम जमानत के उद्देश्य के लिए।

अगर भारत में तानाशाही होती तो केजरीवाल बाहर नहीं जा सकते थे

सीनियर एडवोकेट पर्सीवल बिलिमोरिया ने कहा कि 2009 में शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया था कि लोकतंत्र, संविधान की मूल संरचना का हिस्सा है और स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव आवश्यक हैं। सवाल यह है कि क्या किसी को इस आधार पर रिहा करना कि वह प्रचार करना चाहता है, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करेगा। बिलिमोरिया के अनुसार, यह सिद्धांत कि ‘न्याय होता हुआ दिखना चाहिए’ सुप्रीम कोर्ट पर भारी पड़ा है। बता दें कि 1924 में इंग्लैंड के चीफ जस्टिस लॉर्ड हेवर्ट ने कहा था कि न्याय न केवल किया जाना चाहिए, बल्कि होते हुए दिखना भी चाहिए।

आगे कहा कि केजरीवाल को भी अपनी ओर से, तानाशाही या लोकतंत्र खतरे में होने की दिशा में इस फैसले का इस्तेमाल न करके स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की भावना सुनिश्चित करनी चाहिए। यदि लोकतंत्र वाकई में खतरे में होता तो वह पहली बार में यह बात नहीं कह पाते और रिहा भी नहीं होते। इस तरह की कहानी से केवल देश का नाम खराब होता है और यह वास्तविकता से बहुत दूर है।

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