विश्व

अफ़्रीका से योरोप तक प्रवासन मार्गों में जोखिम, अहम संरक्षण सेवाओं की पुकार

यूएन शरणार्थी एजेंसी द्वारा मंगलवार को जारी इस रिपोर्ट में अफ़्रीका महाद्वीप से योरोपीय देशों का रुख़ करने वाले शरणार्थियों व प्रवासियों, उनके सफ़र के रास्तों और उनमें निहित जोखिमों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है.

हर साल लाखों शरणार्थी व प्रवासी अपना जीवन जोखिम में डालकर, पूर्वी व हॉर्न ऑफ़ अफ़्रीका, पश्चिमी अफ़्रीका क्षेत्र में स्थित देशों से उत्तरी अफ़्रीका में अटलांटिक तट का रुख़ करते हैं. फिर वे यहाँ से केन्द्रीय भूमध्यसागर में जल मार्ग के ज़रिये जोखिम भरी यात्रा करते हुए योरोपीय देशों में पहुँचने की कोशिश करते हैं.

युद्ध, टकराव, हिंसा और निर्धनता, ऐसे कुछ मुख्य कारण हैं जिनके लोगों को, अपने देश छोड़ने के लिए विवश होना पड़ता है. जर्जर नौकाओं में सफ़र करने, उनके डूब जाने या दुर्घटनाएँ होने से, हज़ारों लोगों की मौत हो जाती है.

नए अध्ययन के अनुसार, इन अफ़्रीकी देशों के अलावा एशिया व मध्य पूर्व में स्थित देशों, जैसेकि बांग्लादेश, पाकिस्तान, मिस्र और सीरिया समेत अन्य देशों से भी बड़ी संख्या में शरणार्थी व प्रवासी वहाँ पहुँचने की कोशिश करते हैं.

यह यूएन एजेंसी की रिपोर्ट का तीसरा संस्करण है, जिसमें यूएन विशेषज्ञों ने सचेत किया है कि इन प्रवासियों व शरणार्थियों को समुद्री मार्गों पर अक्सर अकल्पनीय पीड़ा से गुज़रने के लिए मजबूर होना पड़ता है. 

अनेक लोगों की रेगिस्तान पार करते समय या सीमा के नज़दीक पहुँचते समय मौत हो जाती है, और उनके मानवाधिकारों का गम्भीर उल्लंघन किया जाता है. 

इन शरणार्थियों व प्रवासियों को यौन एवं लिंग-आधारित हिंसा का शिकार बनाने, फ़िरौती के लिए अपहरण करने, यातना देने, शारीरिक दुर्व्यवहार करने, मनमाने ढंग से हिरासत में रखे जाने, लोगों की तस्करी करने समेत अन्य कई मानवाधिकार हनन के आरोप सामने आए हैं. 

यूएन एजेंसी का मानना है कि संरक्षण सेवाओं के ज़रिये, इन लोगों को ख़तरनाक यात्राओं के विकल्प मुहैया कराए जा सकते हैं या फिर यात्रा मार्गों पर अनुभव की जाने वाली पीड़ा में कमी लाई जा सकती है. मगर, फ़िलहाल इन सेवाओं की क़िल्लत है.

इन संरक्षण सेवाओं में तत्काल मानवीय सहायता की व्यवस्था करना, शरण और न्याय मुहैया कराना, ज़रूरी संगठनों के साथ सम्पर्क स्थापित करना है, जोकि अक्सर दुर्गम इलाक़ों, जैसेकि सहारा मरुस्थल में आवाजाही स्थलों पर उपलब्ध नहीं हो पाती है. 

रिपोर्ट में सूडान, सहेल समेत अन्य क्षेत्रों में उपजे संकटों से होने वाले नकारात्मक प्रभावों पर भी जानकारी जुटाई गई है, जिनके कारण संरक्षण सेवाओं के लिए ज़रूरी संसाधनों की उपलब्धता पर भी असर पड़ता है. 

सतत ढंग से धनराशि के अभाव में उन सेवाओं के लिए भी ख़तरा उत्पन्न होता है, जोकि फ़िलहाल सीमित तौर पर उपलब्ध हैं.

महत्वपूर्ण सेवाओं के उपलब्ध ना होने की वजह से इन यात्राओं के दौरान शरणार्थियों व प्रवासियों के जीवन पर जोखिम मंडराता है. अक्सर, ऐसे यात्री अपने सफ़र में आने वाले जोखिमों का कम आंकते हैं, और तस्करों के चंगुल में फँस जाते हैं. 

समर्थन की अपील

यूएन शरणार्थी उच्चायुक्त कार्यालय ने सभी दानदाताओं व हितधारकों से मानवीय आधार पर उठाए जाने वाले क़दमों को अपना समर्थन देने और ज़रूरी सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने का आग्रह किया है.

इनमें पीड़ितों के लिए क़ानूनी उपायों की बेहतर सुलभता, संरक्षण सेवाओं में बेहतरी लाना और यात्रा मार्गों पर उन लोगों को समर्थन प्रदान करना है, जिनके द्वारा जोखिम का सामना करने की आशंका है.

इसके अलावा, देशीय स्तर पर और विदेशों में बसी आबादी में सामुदायिक सम्पर्क व बातचीत, संचार तंत्रों पर भी ज़ोर देना होगा, ताकि उन समुदायों को बताया जा सके कि इन यात्राओं में किस प्रकार जोखिम निहित हैं. 

साथ ही, तस्करों द्वारा फैलाई जाने वाली भ्रामक सूचनाओं का मुक़ाबला करना होगा, सुरक्षित व क़ानूनी उपायों की उपलब्धता पर जानकारी देनी होगी, विशेष रूप से परिवारों को एक दूसरे से मिलाने और संरक्षण सेवाओं के लिए.  

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