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अफ़ग़ानिस्तान: माध्यमिक स्कूलों में लड़कियों की पढ़ाई पर पाबन्दी के 1,000 दिन

यूनीसेफ़ की शीर्ष अधिकारी ने गुरूवार को जारी अपने एक वक्तव्य में कहा कि अफ़ग़ानिस्तान, एक दुखद पड़ाव पर पहुँच गया है. लड़कियों के माध्यमिक स्कूलों में जाने पर पाबन्दी लगाने की घोषणा को एक हज़ार दिन पूरे हो गए हैं.  

“स्कूल से बाहर 1,000 दिन का अर्थ है, सीखने-सिखाने के तीन अरब घंटों का नुक़सान.”

“15 लाख लड़कियों को व्यवस्थागत ढंग से यूँ बाहर रखा जाना, ना केवल उनकी शिक्षा के अधिकार का खुला उल्लंघन है, बल्कि इसके परिणामस्वरूप अवसरों में कमी आती है और मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ता है.”

अफ़ग़ानिस्तान में अगस्त 2021 में सत्ता पर तालेबान का वर्चस्व स्थापित होने के बाद से ही महिला अधिकारों के लिए संकट उपजा है. 

तालेबान प्रशासन ने अफ़ग़ानिस्तान के विश्वविद्यालयों में महिला छात्रों की पढ़ाई पर रोक लगाई है, और माध्यमिक स्कूलों से भी छात्राओं को बाहर कर दिया है.

देश में महिलाओं और लड़कियों की आवाजाही पर सख़्त पाबन्दी लगाई गई है, उन्हें अधिकांश कार्यबलों से बाहर रखा गया है, और महिलाओं पर पार्क, जिम व सार्वजनिक स्नानघरों का इस्तेमाल करने पर भी प्रतिबन्ध है.

यूनीसेफ़ प्रमुख के अनुसार, बच्चों, विशेष रूप से लड़कियों के अधिकारों को राजनीति के हवाले नहीं किया जा सकता है. “उनका जीवन, भविष्य, उम्मीदें व सपने अधर में लटके हुए हैं.”

गम्भीर दुष्परिणाम

कैथरीन रसैल ने कहा कि स्कूलों में पढ़ाई पर पाबन्दी का असर लड़कियों से परे तक जाता है. इससे मानवीय संकट और गहरा होता है, जिसके देश की अर्थव्यवस्था और विकास के लिए गम्भीर दुष्परिणाम हो सकते हैं.

“शिक्षा केवल अवसर प्रदान नहीं करती है. यह लड़कियों को जल्द विवाह, कुपोषण व अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से बचाती है, और बाढ़, सूखा व भूकम्प जैसी उन आपदाओं के प्रति सहनसक्षमता बढ़ाती है, जो अफ़ग़ानिस्तान को बार-बार अपनी चपेट में लेती हैं.”

उन्होंने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान में सभी बच्चों को समर्थन प्रदान करने के लिए यूनीसेफ़ निरन्तर प्रयासरत है. साझेदार संगठनों के साथ मिलकर 27 लाख बच्चे प्राथमिक शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, जबकि छह लाख बच्चों के लिए समुदाय-आधारित कक्षाएँ संचालित की जा रही हैं. इनमें दो-तिहाई लड़कियाँ हैं. साथ ही शिक्षकों को प्रशिक्षण दिया जाता है. 

यूनीसेफ़ प्रमुख ने अफ़ग़ानिस्तान में तालेबान प्रशासन से इस दुखद पड़ाव पर आग्रह किया कि सभी बच्चों को तत्काल, पढ़ने-लिखने की अनुमति दी जानी होगी, और अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को भी इन लड़कियों की मदद करने के लिए कोशिशें जारी रखनी होंगी.

“कोई भी देश अपनी आधी आबादी को पीछे छोड़कर आगे नहीं बढ़ सकता है.“

UNODC वैकल्पिक विकास परियोजना की एक महिला लाभार्थी, अफ़ग़ानिस्तान के काबुल के डोगाबाद गाँव में अपनी मुर्गियों को खाना खिलाती हुई.

UN News / David Mottershead

महिला कर्मचारियों के वेतन में कटौती

इस बीच, यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय के अनुसार, अफ़ग़ानिस्तान में तालेबान प्रशासन ने महिला सरकारी कर्मचारियों को बताया है कि उनके वेतन में कटौती करके, उसे निम्नतम स्तर पर कर दिया जाएगा. भले ही उनका अनुभव या योग्यता कुछ भी हो.

इन महिला कर्मचारियों के काम पर जाने पर पहले ही पाबन्दी थोपी हुई थी.

अफ़ग़ानिस्तान की सत्ता को अगस्त 2021 में अपने नियंत्रण में लिए जाने के बाद तालेबान ने कहा था कि आवश्यक शर्तें पूरी होने के बाद, महिलाओं की कार्यस्थलों पर वापसी हो सकेगी.

मगर, क़रीब तीन वर्ष बीत जाने के बाद भी, कार्यस्थलों पर महिला कर्मचारियों की वापसी की कोई समयसीमा तय नहीं की गई है, और ना ही इस दिशा में क़दम उठाए गए हैं.

मानवाधिकारों पर प्रहार

मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय की प्रवक्ता लिज़ थ्रोसेल ने कहा कि महिलाओं व लड़कियों के लिए शिक्षा व रोज़गार अवसरों, आवाजाही की आज़ादी पर लगाई गई पाबन्दियों और सार्वजनिक स्थलों पर उनकी उपस्थिति पर सख़्ती से पहले ही मुश्किल हालात थे. 

अब मनमाने ढंग से लिए गए इस निर्णय से, अफ़ग़ानिस्तान में मानवाधिकारों को चोट और गहरी हुई है. 

इसके मद्देनज़र, यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय ने तालेबान प्रशासन से उन सभी क़ानूनों, निर्देशों व अन्य घोषणाओं को वापिस लिए जाने का आग्रह किया है, जोकि महिलाओं व लड़कियों के लिए भेदभावपूर्ण हैं, और मानवाधिकारों के लिए अफ़ग़ानिस्तान के लिए तयशुदा दायित्वों का हनन हैं.

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