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संयुक्त राष्ट्र शान्तिरक्षक, 65 वर्षों से काँगो लोकतांत्रिक गणराज्य (DRC) में क्यों तैनात हैं?

संयुक्त राष्ट्र शान्तिरक्षक, 65 वर्षों से काँगो लोकतांत्रिक गणराज्य (DRC) में क्यों तैनात हैं?

काँगो लोकतांत्रिक गणराज्य (DRC) को 1960 में स्वतंत्रता प्राप्त हुई और तभी से संयुक्त राष्ट्र, इस देश में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, ख़ासतौर पर शान्ति स्थापना मिशनों की तैनाती के ज़रिए. 

इससे सम्बन्धित जानने योग्य चार अहम तथ्य इस प्रकार हैं – 

1.आज़ादी के बाद से ही संयुक्त राष्ट्र की उपस्थिति

काँगो लोकतांत्रिक गणराज्य को, 75 वर्षों तक बेल्जियम के अधीन रहने के बाद, 30 जून 1960 को आज़ादी मिली, जिसके कुछ ही सप्ताहों बाद संयुक्त राष्ट्र ने पहली बार देश में हस्तक्षेप किया.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव डैग हैमर्शहॉल्ड, बेल्जियम के सैनिकों की वापसी और संयुक्त राष्ट्र शान्तिरक्षकों की तैनाती के बारे में कटंगा और बेल्जियम के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत के बाद, एलिज़ाबेथविले (अब लुबुम्बाशी) में विचार-विमर्श करते हुए. (फ़ाइल)

बेल्जियम की अधीनता में, देश के प्राकृतिक संसाधनों एवं कार्यबल का शोषण किया गया, और राजनैतिक स्वायत्तता के कोई प्रयास नहीं किए गए.

लेकिन इसके तुरन्त बाद जुलाई 1960 की शुरुआत में ही, दो खनिज समृद्ध प्रान्तों – कटंगा और दक्षिण कसाई के अलग होने से इस आज़ादी को ख़तरा पैदा हो गया.

दक्षिण कसाई को बेल्जियम के समर्थन और उन अन्य विदेशियों की आर्थिक दिलचस्पी से लाभ हुआ, जो देश के संसाधनों पर क़ब्ज़ा करना चाहते थे.

1961 में देश के प्रधान मंत्री पैट्रिस लुमुम्बा की हत्या के बाद देश एक बड़े राजनैतिक संकट में फँस गया.

संयुक्त राष्ट्र ने, इस स्थिति से निपटने के लिए, जुलाई 1960 में काँगो में संयुक्त राष्ट्र कारर्वाई मिशन (ONUC) तैनात किया.

विशाल स्तर के इस प्रथम शान्ति मिशन – ONUC का उद्देश्य, लियोपोल्डविले (राजधानी किंशासा का तत्कालीन नाम) में सरकार की मदद करना, देश में व्यवस्था एवं एकता बहाल करना तथा बेल्जियम सैनिकों की वापसी सुनिश्चित करना था.

एक समय इस मिशन में 20 हज़ार तक शान्तिरक्षक तैनात थे. 1964 में अपनी वापसी से पहले वाले इस मिशन ने, 1963 में कटंगा को अलग नहीं होने देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.  

तत्कालीन काँगो गणराज्य में शान्ति और व्यवस्था बहाल करने में मदद के लिए स्थापित संयुक्त राष्ट्र शान्ति स्थापना अभियान (ONUC) के हिस्से के रूप में घाना ने सबसे पहले सैनिकों को तैनात किया था. (फ़ाइल)

2.MONUC: काँगो युद्धों के विरुद्ध कार्रवाई

मोबूतू सेसे सेको के 30 वर्षों के तानाशाही शासन के बाद, इस देश को (जिसका नाम उस समय ज़ायरे रख दिया गया था), एक के बाद एक दो युद्धों – यानि “प्रथम” (1996-1997) और “दूसरे” (1998-2003) काँगो युद्धों का सामना करना पड़ा. 

1996 में रवांडा ने, युगांडा और बुरूंडी के समर्थन से, 1994 के तुत्सियों के जनसंहार के लिए ज़िम्मेदार हुतू लड़ाकों को बाहर निकालने के लिए पूर्वी ज़ायरे में हस्तक्षेप किया. इन हुतु लड़ाकों ने उत्तर और दक्षिण कीवु के प्रान्तों में शरण ले रखी थी.

मई 1997 में, किगाली और कम्पाला के सैन्य समर्थन से लॉरेंट-डेसिरे कबीला ने सत्ता पर क़ब्ज़ा कर लिया. इससे मोबूतू सेसे सेको का निष्कासन हुआ और देश का नाम बदलकर काँगो लोकतांत्रिक गणराज्य कर दिया गया.

1998 में लॉरेंट-डेसिरे कबीला, अपने पूर्व सहयोगियों रवांडा और युगांडा के विरोध में खड़े हो गए, क्योंकि वो देश के पूर्व में विद्रोहों का समर्थन कर रहे थे. इसमें उन्हें अंगोला, ज़िम्बाब्वे और नामीबिया का साथ मिला.

संयुक्त राष्ट्र ने, 1999 में हुए लुसाका युद्धविराम समझौते के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए, डीआरसी में यूएन मिशन (MONUC) तैनात किया.

DRC, 2003 में औपचारिक तौर पर युद्ध का अन्त होने के बाद भी अपने असाधारण प्राकृतिक संसाधनों और ‘ग्रेट लेक्स’ क्षेत्र की स्थिरता में अहम भूमिका होने की वजह से, क्षेत्रीय ताक़तों के लिए एक रणनैतिक मुद्दा रहा है.

कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में विमुद्रीकरण प्रक्रिया के दौरान हथियार और गोला-बारूद एकत्र किए जाते हैं.

3. MONUSCO: वर्तमान मिशन 

2010 में, एक विस्तारित शासनादेश के तहत, DRC में MONUC ने, संयुक्त राष्ट्र शान्तिरक्षा मिशन (MONUSCO)  का रूप लिया. इसके शासनादेश में, नागरिकों की सुरक्षा व शान्ति एवं स्थिरता मज़बूत करने में काँगो सरकार को समर्थन देना शामिल था.

देश के तीन पूर्वी प्रान्तों, उत्तरी कीवू, दक्षिण कीवू और इटुरी में हाल तक तैनाती के बावजूद, जून 2024 में डीआरसी के अनुरोध पर, MONUSCO दक्षिण कीवु से अपने सैनिकों की वापसी के लिए राज़ी हुआ. वर्ष के अन्त तक देश से  पूर्ण वापसी की प्रक्रिया पूरी होनी थी.

लेकिन, सरकार के ही अनुरोध पर, दिसम्बर में सुरक्षा परिषद ने MONUSCO की तैनाती, 2025 के अन्त तक के लिए बढ़ा दी है.

संयुक्त राष्ट्र के प्रयासों के बावजूद, इस क्षेत्र में सशस्त्र समूहों की गतिविधियाँ जारी हैं, इनमें एलाइड डेमोक्रेटिक फ़ोर्सिज़ (ADF)) और M23 नामक विद्रोही गुट शामिल हैं. 

काँगो के तुत्सियों के हितों के रक्षा की लड़ाई के लिए इन्हें रवांडा बलों का समर्थन प्राप्त है.

2025 में देश के पूर्वी हिस्से में शुरू हुई हिंसा की नवीनतम लहर के लिए, M23 और रवांडा सेना ज़िम्मेदार हैं. यहाँ उन्होंने उत्तर और दक्षिण कीवु के कई रणनैतिक शहरों पर क़ब्ज़ा कर लिया है.

MONUC की दक्षिण अफ़्रीकी पैराशूट बटालियन का एक सदस्य, न्तामुगेंगा गाँव के आसपास गश्त लगाते हुए. (फ़ाइल)

4. प्राकृतिक संसाधन: टकरावों में प्रमुख कारक

डीआरसी के तीन पूर्वी प्रान्तों में प्राकृतिक संसाधनों का विशाल भंडार है. इसमें सोने, हीरे और इलैक्ट्रॉनिक उपकरणों में उपयोग किए जाने वाले टिन के भंडार विशेष हैं.

उत्तर और दक्षिण कीवू, कोल्टन नामक धातु में भी समृद्ध हैं, जिसकी प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अत्यधिक माँग है. इसका उपयोग, मोबाइल फोन और लैपटॉप में पाए जाने वाले कैपेसिटर के निर्माण में किया जाता है. 

डीआरसी, दुनिया में लगभग सभी रिचार्जेबल बैटरियों के निर्माण में उपयोग किए जाने वाले खनिज, कोबाल्ट का अग्रणी उत्पादक भी है.

यही प्राकृतिक संसाधन, पड़ोसी देशों के लिए आकर्षण का केन्द्र हैं और क्षेत्र में टकरावों व युद्धों का प्रमुख कारण बन गए हैं.

M23 जैसे सशस्त्र गुटों पर आरोप है कि वो डीआरसी के पड़ोसियों व अन्दर व बाहर की कम्पनियों की मिलीभगत से, इन संसाधनों का अवैध शोषण करके, अपनी कार्रवाई के लिए धन एकत्रित करते हैं.

संयुक्त राष्ट्र ने खनिजों के अवैध व्यापार से निपटने के लिए कई योजनाएँ शुरू कीं, जिनमें इस तस्करी में शामिल कम्पनियों पर प्रतिबन्ध लगाने के उपाय और डीआरसी में उनकी घुसपैठ रोकने के लिए हथियारों पर प्रतिबन्ध लगाना शामिल है.

लेकिन, संसाधनों का अवैध दोहन रोकना आज भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है.

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