बताया गया है कि इस हमले में हताहत होने वाले बच्चों का अस्पताल के इमरजेंसी वॉर्ड में उपचार हो रहा था. इस इलाक़े में बमबारी में घायल होने के बाद उन्हें वहाँ भर्ती कराया गया था.
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसैल ने कहा कि यह जघन्य हमला, बाल अधिकारों का खुला उल्लंघन है. “बच्चे ऐसे स्थलों पर मारे जा रहे हैं या घायल हो रहे हैं, जहाँ उनकी किसी भी प्रकार से नुक़सान से रक्षा की जानी चाहिए.”
यूनीसेफ़ की शीर्ष अधिकारी के अनुसार, “इन हमलों से बच्चों व उनके परिवारों के लिए हालात और गम्भीर होते हैं, जबकि वे पहले से ही संघर्ष, असुरक्षा और संरक्षण व्यवस्था ना होने से प्रभावित हैं.”
सूडान में सशस्त्र सेना और अर्द्धसैनिक बल (RSF) के बीच पिछले डेढ़ वर्षों से अधिक समय से भीषण लड़ाई हो रही है, जिससे एक गहरा मानवीय संकट उपजा है. देश के 70 फ़ीसदी अस्पतालों के क्षतिग्रस्त होने, उन्हें नुक़सान पहुँचने, ज़रूरी सामान की क़िल्लत होने समेत अन्य कारणों से वहाँ कामकाज ठप है.
हिंसा प्रभावित इलाक़ों में सुरक्षा चिन्ताओं की वजह से मेडिकल सामान की आपूर्ति, वैक्सीन, और टीकाकरण प्रयासों में अवरोध पैदा हुआ है, और बच्चों समेत अनगिनत ज़िन्दगियों पर जोखिम मंडरा रहा है.
यूनीसेफ़ प्रमुख ने ध्यान दिलाया कि स्वास्थ्य केन्द्रों पर हमले जारी रहने से बच्चों के जीवन पर ख़तरा है और उन्हें जीवनरक्षक मेडिकल देखभाल मुहैया कराने में मुश्किलें पेश आती हैं. इससे उनके स्वास्थ्य पर तात्कालिक व दीर्घकालिक असर हो सकता है.
यूएन एजेंसी के अनुसार, यह सभी युद्धरत पक्षों का दायित्व है कि आम नागरिकों की रक्षा सुनिश्चित की जाए और ऐसे किसी भी क़दम से बचा जाए, जिससे ज़रूरतमन्दों तक जीवनरक्षक मेडिकल सेवा पहुँचाने में अवरोध पैदा होता हो.

हानिकारक मीथेन गैसों का, जलवायु परिवर्तन में बड़ा हिस्सा है.
पेरिस समझौते से पीछे हटने की आधिकारिक सूचना
संयुक्त राज्य अमेरिका ने यूएन महासचिव को आधिकारिक रूप से पेरिस जलवायु समझौते से पीछे हटने के निर्णय के बारे में सूचित किया है. यूएन प्रवक्ता स्तेफ़ान दुजैरिक ने न्यूयॉर्क में पत्रकारों को बताया कि यह निर्णय 27 जनवरी 2026 से प्रभावी होगा.
जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध लड़ाई में पेरिस समझौते को, एक ऐतिहासिक पड़ाव के रूप में देखा जाता है, जिस पर 193 सदस्य देशों ने दिसम्बर 2015 में मुहर लगाई थी.
इसका लक्ष्य वैश्विक तापमान में वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस से कम रखना है. संयुक्त राज्य अमेरिका ने इस समझौते पर 22 अप्रैल 2016 को हस्ताक्षर किए थे.
डॉनल्ड ट्रम्प ने अपने प्रथम कार्यकाल में इस समझौते से हाथ खींचने की घोषणा की थी, और 4 नवम्बर 2020 को यह प्रभावी हो गया था.
हालांकि इसके बाद, पूर्व राष्ट्रपति जो बाइडेन के कार्यकाल के दौरान, अमेरिका 19 फ़रवरी 2021 को फिर से इस समझौते का हिस्सा बन गया था.
यूएन प्रवक्ता ने बताया कि ट्रम्प प्रशासन के इस फ़ैसले के बावजूद, जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध लड़ाई में संयुक्त राष्ट्र के प्रयासों की रफ़्तार कम नहीं होगी.
“हम पेरिस समझौते और वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने के प्रति अपने संकल्प को फिर से पुष्ट करते हैं.”

ऐसा माना जाता है कि लातिन अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका में पाए जाने वाले ट्रियाटोमीन कीड़ों से चगास बीमारी का इलाज किया जा सकता है.
उपेक्षित बीमारियों के विरुद्ध लड़ाई
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने उष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों में उपेक्षित बीमारियों से निपटने के लिए समन्वित प्रयास किए जाने की पुकार लगाई है. इन बीमारियों से एक अरब से अधिक लोग प्रभावित होते हैं, और गम्भीर आर्थिक व सामाजिक नतीजों का भी सामना करना पड़ता है.
यूएन स्वास्थ्य एजेंसी के अनुसार, हर वर्ष 80-90 करोड़ लोगों का कम से कम एक उपेक्षित उष्णकटिबन्धीय बीमारी के लिए उपचार किया जाता है.
बताया गया है कि वैश्विक तापमान बढ़ने की वजह से इन बीमारियो का जोखिम भी बढ़ रहा है, जिनमें चगास, डेंगू, चिकुनगुनया, बुरुली अल्सर समेत अन्य बीमारियाँ हैं.
वायरस, बैक्टीरिया, परजीवी, फ़ंगस और विषैले तत्वों के ज़रिये फैलने वाली ये बीमारियाँ अक्सर निर्धन समुदायों को प्रभावित करती हैं.
पर्याप्त स्तर पर निवेश और हिंसक टकराव की वजह से इन बीमारियों से निपटना कठिन साबित हुआ है. यूएन एजेंसी के अनुसार, अब तक 54 देशों ने कम से कम एक उपेक्षित उष्णकटिबन्धीय बीमारी का सफलतापूर्वक उन्मूलन किया है, और 2030 तक ये संख्या 100 तक पहुँचाने का लक्ष्य है.
