संयुक्त राष्ट्र की उप महासचिव आमिना मोहम्मद ने सुरक्षा परिषद में, महिलाओं, शान्ति और सुरक्षा के विषय पर एक खुली चर्चा में इस बात पर ज़ोर दिया कि महिलाओं के अधिकार कमज़ोर हो रहे हैं, जबकि उन्हें निर्णयों में उनकी समान आवाज़ को नकारा जा रहा है.
आमिना मोहम्मद ने ग़ाज़ा, सूडान, अफ़ग़ानिस्तान और यमन में बिगड़ते संकटों का हवाला देते हुए ज़ोर दिया कि “यह ज़रूरी है कि हम हर अवसर पर अपने अधिकारों, एजेंसी और समावेशन की वकालत करने वाली महिलाओं का समर्थन करने के अपने संकल्प को मजबूत करें.”
यूएन उप प्रमुख आमिना मोहम्मद ने ज़ोर देते हुए यह भी कहा, “आज के व्यापक वैश्विक मध्यस्थता परिदृश्य में, सामूहिक कार्रवाई और एकजुटता अति महत्वपूर्ण है.”
‘साझा प्रतिज्ञा’ नामक यह पहल, संयुक्त राष्ट्र, सदस्य देश, क्षेत्रीय संगठन और ग़ैर-सरकारी संगठनों सहित वैश्विक मध्यस्थों को, सभी शान्ति प्रक्रियाओं में समान भागेदारी की दिशा में, स्वैच्छिक लेकिन ठोस क़दम उठाने के लिए एक साथ लाती है.
खुली चर्चा की कुछ मुख्य बातें
इसमें महिलाओं को मुख्य मध्यस्थ नियुक्त किया जाना और यह सुनिश्चित किया जाना शामिल है कि महिलाएँ मध्यस्थता टीमों की अभिन्न हिस्सा बनकर रहें.
इसमें युद्धरत दलों के प्रतिनिधियों के साथ मिलकर, महिलाओं की प्रत्यक्ष और सार्थक भागेदारी को आगे बढ़ाने के लिए, ठोस लक्ष्य निर्धारित किया जाना भी शामिल है.
इसके अलावा, टीमें शान्ति प्रक्रियाओं के सभी चरणों में, महिला नेत्रियों और लगातार व्यापक होते नागरिक समाज के साथ परामर्श करेंगी.
इस पहल में, मध्यस्थता टीमों में लैंगिक विशेषज्ञता को भी शामिल किया जा है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि शान्ति समझौते लैंगिक संवेदनशीलताओं का भी ध्यान रखें.
वैश्विक प्रतिरोध व बहिष्कार
महिला मज़बूती के लिए काम कर रही प्रमुख संस्था – UN Women की कार्यकारी निदेशक सीमा बहाउस ने इस खुली चर्चा को सम्बोधित करते हुए चेतावनी दी कि लैंगिक समानता के लिए बढ़ते विरोध के कारण, अनेक क्षेत्रों में महिलाओं के अधिकार कमज़ोर पड़ रहे हैं.
उन्होंने कहा कि यह स्थिति टकराव और युद्धग्रस्त क्षेत्रों में कठोर रूप में देखने को मिलती है जहाँ परिणाम और भी घातक होते हैं.
सीमा बहाउस ने कहा कि महिलाओं के अधिकारों का बहिष्कार किए जाने और निर्णय लेने में उनकी स्वायत्तता को छीनने का परिणाम “जीवन और मृत्यु के बीच के मामूली अन्तर” जैसी स्थिति के रूप में निकल सकता है.
“राजनैतिक लाभ के लिए महिलाओं के प्रति घृणा को हथियार बनाए जाने के हालात, एक ऐसी क़ीमत वसूल रहे हैं जो आने वाली पीढ़ियों कों चुकानी पड़ेगी. इसकी क़ीमत अधिक टकराव और युद्ध, लम्बे समय तक चलने वाले युद्ध, अधिक विनाशकारी युद्धों के रूप में होगी.”
बेजोड़ बहादुरी
सीमा बहाउस ने इन चुनौतियों के बावजूद, युद्ध वाले हालात में महिलाओं की अविश्वसनीय बहादुरी की प्रशंसा की.
उन्होंने ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि महिलाएँ, अफ़ग़ानिस्तान में “गुप्त स्कूल” चलाने से लेकर यूक्रेन में सहायता प्रदान करने, सीरिया में घेराबन्दी के तहत शान्ति वार्ता करने तक, महत्वपूर्ण योगदान करती रहती हैं.
“इसलिए यह हमारा कर्तव्य है कि हम [उनकी] बहादुरी से मेल खाने वाले काम करें… दुनिया भर में [उन महिलाओं से] जिन महिलाओं से मैं मिलती हूँ.”
बाधाओं से निपटने की पुकार
उप महासचिव आमिना मोहम्मद ने ज़ोर देकर कहा कि मौजूदा चुनौतियों के बारे में “कोई भ्रम नहीं होना चाहिए” जिनमें विशाल भू-राजनैतिक विभाजन भी शामिल हैं.
उन्होंने कहा, “जब तक लैंगिक असमानताएँ, पितृसत्तात्मक सामाजिक संरचनाएँ, व्यवस्थित पूर्वाग्रह, हिंसा और भेदभाव जैसी चुनौतियाँ हमारे समाज के आधे हिस्से को पीछे धकेलते रहेंगी, तब तक शान्ति एक भ्रम बनी रहेगी.”
हालाँकि उन्होंने ज़ोर देकर यह भी कहा कि प्रगति सम्भव है. उन्होंने सभी से सामूहिक अनुभवों से सबक़ सीखने और एकजुट कार्रवाई करने का आग्रह भी किया.
आमिना मोहम्मद ने कहा, “हम एक साथ, एक ऐसा प्रभाव डाल सकते हैं जो हमारे व्यक्तिगत प्रयासों के योग से अधिक है. आइए, हम अपनी-अपनी राजनैतिक पूंजी और भूमिकाओं का लाभ उठाकर, पितृसत्तात्मक सत्ता संरचनाओं को ख़त्म करें और लैंगिक समानता को आगे बढ़ाएँ.
एक ऐतिहासिक एजेंडे का वजूद में आना
सुरक्षा परिषद में इस खुली चर्चा की अध्यक्षता स्विस परिसंघ की अध्यक्ष वियोला एमहर्ड ने की, जो अक्टूबर के लिए सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता कर रही हैं.
यह अवसर न केवल 79वें संयुक्त राष्ट्र दिवस के साथ, बल्कि सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 1325 की अगले सप्ताह 24वीं वर्षगाँठ के साथ भी मेल खाता है.
सुरक्षा परिषद में यह ऐतिहासिक प्रस्ताव, 31 अक्टूबर 2000 को सर्वसम्मति से अपनाया गया था और यह प्रस्ताव, युद्ध व टकराव के लैंगिक आयामों की पहली औपचारिक मान्यता थी.
इस प्रस्ताव के चार स्तम्भ हैं – भागेदारी, सुरक्षा, रोकथाम और राहत व पुनर्प्राप्ति, जो युद्ध के समाधान और शान्ति निर्माण में महिलाओं की आवश्यक भूमिका को रेखांकित करते हैं.
तब से, अनेक प्रस्तावों और वैश्विक प्रक्रियाओं की बदौलत, महिलाएँ, शान्ति और सुरक्षा (डब्ल्यूपीएस) एजेंडे का विस्तार हुआ है, जिसमें प्रस्ताव 1820 भी शामिल है. इस प्रस्ताव ने यौन हिंसा के प्रयोग को युद्ध के हथियार के रूप में मान्यता दी और महिला शान्ति सैनिकों की अधिक तैनाती का आहवान किया है.