वर्ष 1989 में पारित होने के दौरान, बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सन्धि को एक ऐसे ऐतिहासिक समझौते के रूप में देखा गया था, जिसने देशों की सरकारों को बच्चों को हिंसा और शोषण से बचाने की दिशा में क़दम उठाने और अनेक क़ानूनों को भी स्वीकृति देने के लिए प्रोत्साहित किया.
इसके एक दशक बाद, 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों की सैनिकों के रूप में भर्ती पर पाबन्दी के लिए एक प्रोटोकॉल को पारित किया गया, जिस पर अब तक 173 देशों ने मुहर लगाई है.
मगर, इन सैन्य तौर-तरीक़ों का अन्त करने के बजाय, हथियारबन्द गुटों ने सशस्त्र टकरावों के दौरान बाल सैनिकों की भर्ती और उनके इस्तेमाल को बढ़ाया है.
कम्बोडिया से लेकर काँगो लोकतांत्रिक गणराज्य, लेक चाड बेसिन, मोज़ाम्बीक़, सहेल क्षेत्र, सूडान, सोमालिया, सीरिया और हेती समेत अन्य देशों में ऐसे मामले सामने आए.
इससे प्रभावित अधिकाँश को अगवा करने के बाद उन्हें जबरन भर्ती किया गया था. बड़ी संख्या में लड़कियों को बलात्कार और यौन हिंसा का शिकार बनाया जाता है और उनकी ख़रीद-फ़रोख़्त, बेचे जाने और तस्करी की ओर धकेले जाने की भी घटनाएँ हुई हैं.
सशस्त्र टकरावों और बच्चों के लिए यूएन महासचिव की विशेष प्रतिनिधि ने मंगलवार को क्षोभ व्यक्त किया कि सैन्य टकराव का इस्तेमाल बढ़ने का बच्चों पर भयावह असर हुआ है.
इसके प्रभावों को इसराइल, क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़े, सूडान, लेबनान, म्याँमार और यूक्रेन में देखा जा सकता है.
यूएन प्रतिनिधि वर्जीनिया गाम्बा ने कहा कि बच्चों की कराह, हिंसक टकरावों से जूझ रहे इलाक़ों में सुनी जा सकती है, मगर इसके बावजूद, दुनिया ने चुप्पी ओढ़ रखी है.
इसके मद्देनज़र, उन्होंने बच्चों तक ज़रूरी सहायता पहुँचाने के लिए बेरोकटोक मानवीय सहायता मार्ग मुहैया कराए जाने और अन्तरराष्ट्रीय क़ानूनों का पालन करने की अपील की.
साथ ही, रिहायशी इलाक़े में बड़े पैमाने पर असर डालने वाले विस्फोटकों के इस्तेमाल पर रोक लगानी होगी, स्कूलों का सैन्य मक़सद से इस्तेमाल पर पाबन्दी लगानी होगी और बारूदी सुरंगों का उन्मूलन करना होगा.