विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) और खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) ने अपने नए विश्लेषण में गम्भीर खाद्य असुरक्षा व भूख संकट का दंश झेल रहे देशों व इलाक़ों (हॉटस्पॉट्स) पर ध्यान केन्द्रित किया है.
उन्होंने ज़ोर देकर कहा है कि ज़रूरमन्दों तक सहायता पहुँचाने, हिंसक टकरावों से निपटने और मानवीय सहायता मार्ग में व्याप्त अवरोधों को दूर करने के लिए यदि तत्काल कार्रवाई नहीं की गई है, तो भूख संकट का दायरा बढ़ेगा और बड़े पैमाने पर मौतें हो सकती हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, सूडान के नॉर्थ दारफ़ूर प्रान्त में स्थित ज़मज़म कैम्प में अकाल घोषित कर दिया गया है. युद्धग्रस्त देश के अन्य हिस्सों में भी अकाल का जोखिम मंडरा रहा है.
वहीं, ग़ाज़ा में यूएन एजेंसियों ने अकाल की आशंका बने रहने की बात कही है, जिसकी एक बड़ी वजह ज़रूरतमन्द आबादी तक मानवीय सहायता ना पहुँच पाना है. वहीं, हेती, माली और दक्षिण सूडान में भी चुनौतीपूर्ण परिस्थितियाँ हैं.
युद्धविराम की दरकार
FAO के महानिदेशक क्यू डोन्ग्यू ने कहा कि ज़िन्दगियों को बचाने और भूख व कुपोषण से बचने के लिए जल्द से जल्द मानवीय आधार पर युद्धविराम को लागू किए जाने की आवश्यकता है.
इसके तहत फ़लस्तीनी आबादी के लिए पोषक आहार मुहैया कराना ज़रूरी है और स्थानीय स्तर पर खाद्य उत्पादन को फिर से शुरू करना होगा.
यूएन एजेंसी की कार्यकारी निदेशक सिंडी मैक्केन ने विश्व नेताओं से सहायता की अपील की है ताकि भुखमरी का जोखिम झेल रहे लाखों लोगों तक मदद पहुँचाई जा सके.
साथ ही, हिंसक टकरावों के कूटनैतिक स्तर पर समाधान की तलाश करनी होगी, मानवीय सहायताकर्मियों की सुरक्षा सुनिश्चित की जानी होगी और वैश्विक भूख संकट को फैलने से पहले ही रोकने के लिए संसाधन लामबन्द करने होंगे.
22 देशों के लिए चेतावनी
यूएन एजेंसियों के विश्लेषण में 22 देशों को भूख संकट के नज़रिये से ‘हॉटस्पॉट’ क़रार दिया गया है, जहाँ हिंसक टकराव, आर्थिक संकट और जलवायु व्यवधान के कारण भरपेट भोजन ना मिल पाने की समस्या और बढ़ने की आशंका है.
यूएन मौसम विज्ञान एजेंसी ने सचेत किया है कि ‘ला नीन्या’ जलवायु प्रभाव के कारण वर्षा रुझान में व्यवधान आ सकता है, जिससे सम्वेदनशील इलाक़ों में कृषि पर असर होगा.
‘ला नीन्या’ प्रभाव के कारण नाइजीरिया, दक्षिण सूडान और अन्य दक्षिण अफ़्रीकी देशों में बाढ़ आने का जोखिम है, जबकि इथियोपिया, केनया, सोमालिया, में शुष्क परिस्थितियों के कारण खाद्य प्रणाली के लिए जोखिम पैदा होगा.
हेती, माली, क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़े, दक्षिण सूडान और सूडान, सर्वाधिक पाँच प्रभावितों में हैं, जबकि चाड, लेबनान, मोज़ाम्बीक, म्याँमार, नाइजीरिया, सीरिया व यमन में मौजूदा परिस्थितियों
पर गहरी चिन्ता है.