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लेबनान संकट: ‘क्या हमने ग़ाज़ा युद्ध से कोई सबक़ नहीं सीखा है’, यूएन मानवीय संगठन

लेबनान संकट: ‘क्या हमने ग़ाज़ा युद्ध से कोई सबक़ नहीं सीखा है’, यूएन मानवीय संगठन

यूएन एजेंसियों ने क्षेत्र में तनाव तुरन्त कम करने और आम लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, तत्काल कार्रवाई किए जाने की पुकार लगाई है.

लेबनान में संयुक्त राष्ट्र बाल कोष – UNICEF की उप प्रतिनिधि ऐटी हिगिन्स ने लेबनान में हाल के इसराइली हमलों के बाद बेरूत से बात करते हुए इस दिन को “18 वर्षों में सबसे भीषण दिन” क़रार दिया है.

उन्होंने कहा कि अगर हिंसा नहीं रुकती है तो परिणाम, “कल्पना से भी परे” होंगे.

लेबनान में इसराइल के हालिया हमलों में, लेबनान के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार कम से कम 492 लोग मारे गए हैं जिनमें 35 बच्चे और 58 महिलाएँ हैं. इन हमलों में अन्य एक हज़ार 645 लोग घायल भी हुए हैं.

युद्ध के नियमों की दलील

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय – OHCHR की प्रवक्ता रवीना शमदासानी ने इसराइल और लेबनान के बीच युद्ध में आई तेज़ी पर चिन्ता व्यक्त की है और सभी पक्षों से “हिंसा तुरन्त बन्द करने और आम लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित किए जाने” की पुकार लगाई है.

अक्टूबर (2023) में ग़ाज़ा में युद्ध भड़कने के बाद से, इसराइल और हिज़बुल्लाह के दरम्यान सीमा-पार झड़पें हो रही थीं, जो हाल के दिनों में सघन हो गई थीं. उनके कारण इसराइल और लेबनान में हज़ारों लोग विस्थापित भी हुए हैं.

गत सप्ताह उस समय तनाव और भी बढ़ गया था, जब लेबनान में हिज़बुल्लाह के सदस्यों को निशाना बनाकर, पेजर और वॉकी-टॉकी जैसे संचार उपकरणों में विस्फोट के ज़रिए हमले किए गए थे.

ऐसी ख़बरें हैं कि बीते सप्ताहान्त के दौरान, हिज़बुल्लाह ने उत्तरी इसराइल में लगभग 150 रॉकेट दागे थे.

लेबनान में यूनीसेफ़ की उप प्रतिनिधि ऐटी हिगिन्स ने कहा कि इस युद्ध में आगे बढ़ोत्तरी, लेबनान में बच्चों के बहुत त्रासदीपूर्ण होगी, और विशेष रूप से देश के दक्षिणी हिस्से में स्थित गाँवों और क़स्बों में, जहाँ लोग पहले ही अपने घर छोड़ने के लिए मजबूर हुए हैं.

उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि गत अक्टूबर से, अभी तक लगभग एक लाख 12 हज़ार लोग विस्थापित हो चुके हैं, और हाल के दिनों में विस्थापित हुए लोगों की संख्या अतिरिक्त है.

चारों तरफ़ अफ़रा-तफ़री

यूनीसेफ़ की अधिकारी ने बताया कि मंगलवार को देशभर में स्कूल बन्द रहे, जिससे, “बच्चों को दहशत के बीच, घर पर ही रहना पड़ा.”

जिन लोगों को विस्थापित होना पड़ रहा है वो अपने साथ केवल कपड़े-लत्ते ही लेकर निकल पा रहे हैं और कुछ बच्चों को सड़क किनारे पर अपनी कारें खड़ी करके, उनमें ही सोना पड़ा है, जबकि उनकी देखभाल करने वाले जन, स्थिति की अनिश्चितता के बीच स्वयं भी दहशत में हैं.

फ़लस्तीनी शरणार्थियों के लिए यूएन सहायता एजेंसी – UNHCR के प्रवक्ता मैथ्यू सॉल्टमार्श ने ध्यान दिलाया है कि लेबनान, अनेक वर्षों से शरणार्थियों के लिए, “दयालु रूप में आश्रय” मुहैया कराता रहा है, जिनमें लेबनान में रहने वाले लगभग 15 लाख सीरियाई शरणार्थी भी हैं.

उन्होंने आगाह किया कि मौजूदा युद्ध के बीच, बहु, से शरणार्थियों पर एक बार फिर विस्थापित होने का ख़तरा मंडरा रहा है, जिसके कारण, कोविड-19, आर्थिक मन्दी और चार वर्ष पहले राजधानी बेरूत में हुए भीषण बम विस्फोट के बाद एक नया संकट खड़ा हो जाएगा.

अतीत को दोहराया जा रहा है

यूएन मानवाधिकार कार्यालय की प्रवक्ता रवीना शमदासानी ने हिंसा में उछाल की कड़ी निन्दा की है और सवाल उठाया है, “पिछले एक साल से ग़ाज़ा में जो कुछ हो रहा है, क्या हमने उससे कोई सबक़ नहीं सीखा है.”

उन्होंने पिछले सप्ताह के पेजर हमलों का ज़िक्र करते हुए कहा कि यह देखना बिल्कुल हतप्रभ करने वाला था कि लोगों को अपनी आँखें खो देनी पड़ीं और अस्पतालों के पास, घायलों की समुचित देखभाल करने और ज़रूरी चिकित्सा मुहैया कराने की क्षमता नहीं थी.

“हम इस तरह की स्थितियों के बारे में पहले भी सुन चुके हैं? पिछले वर्ष और बीते वर्ष के दौरान भी. यह कोई सामान्य स्थिति नहीं और इसे रोका जाना होगा.”

रवीना शमदासानी ने कहा कि “(मानवाधिकार) उच्चायुक्त ने, तनाव को तुरन्त कम करने का आहवान किया है. संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक हो रही है. विश्व नेता, न्यूयॉर्क में एकत्र हो रहे हैं. उन्हें इस युद्ध का अन्त कराने को प्राथमिकता बनाने की ज़रूरत है.”

रवीना शमदासानी ने यह भी ध्यान दिलाया कि हिज़बुल्लाह “इसराइल के भीतर सैकड़ों रॉकेट दाग रहा है, जिससे उनके हमलों की अन्धाधुन्ध प्रकृति ज़ाहिर होती है.”

“अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून का पालन किए जाने की हमारी पुकारें, इस युद्ध के सभी पक्षों से हैं, और इनमें, स्वभाविक रूप से हिज़बुल्लाह भी शामिल है.”

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