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“मेरी शारीरिक सुरक्षा मेरी स्वयं की ज़िम्मेदारी है”, महिलाओं की सजगता ज़रूरी | India: “My physical security is my own responsibility”

“मेरी शारीरिक सुरक्षा मेरी स्वयं की ज़िम्मेदारी है”, महिलाओं की सजगता ज़रूरी | India: “My physical security is my own responsibility”

भारत में संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी, UNHCR के सहयोगी – समाज सेवा संगठन – BOSCO द्वारा संचालित केन्द्र में, अफ़ग़ानिस्तान, म्याँमार, सोमाली, कांगोली और युगांडा समुदायों की महिलाएँ, सीखने, परस्पर अनुभव साझा करने और एक-दूसरे को सशक्त करने के मक़सद से एकत्रित हुई हैं.

भारत में रह रही एक शरणार्थी महिला, रुकिया बेगम का कहना है, “यह ज़रूरी नहीं कि हमलावर बाहर का ही हो; वह हमारे घर के अन्दर भी हो सकता है. कोई मुझे बचाने नहीं आएगा – स्वयं की रक्षा, मुझे ही करनी होगी.”

रुकिया बेगम ने कई ऐसे हालातों का सामना किया है और उन पर विजय पाई है, जहाँ उन्हें शारीरिक रूप से असुरक्षित महसूस हुआ.

रुकिया बेगम के शब्द उस सच्चाई को उजागर करते हैं, जिससे अनगिनत महिलाएँ हर रोज़ जूझती हैं, ख़ासतौर पर ऐसी महिलाएँ, जो अपने घरों या देशों से विस्थापित हुई हैं.

दुनिया भर में रुकिया बैगम जैसी 6 करोड़ से अधिक महिलाएँ और लड़कियाँ है, जो जबरन विस्थापित या देशविहीन हैं, और लिंग आधारित हिंसा (GBV) के गम्भीर जोखिम का सामना करती हैं.

प्रशिक्षण की संचालक, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा और सुरक्षा विभाग (UNDSS) में राष्ट्रीय सुरक्षा अधिकारी, दीपांजली बख्शी.

लेकिन रुकिया बेगम का मानना है कि उनकी शारीरिक सुरक्षा की ज़िम्मेदारी स्वयं उनकी है. शरणार्थी समुदायों की महिलाओं में लिंग-आधारित हिंसा से सम्बन्धित चिन्ताएँ आम हैं. लेकिन रुकिया बेगम को भरोसा है कि बुनियादी सुरक्षा जागरूकता और प्रशिक्षण से इन चुनौतियों का सामना किया जा सकता है.

रुकिया बेगम ने, विभिन्न समुदायों से आईं 46 अन्य महिलाओं के साथ मिलकर, अपनी कमज़ोरी को ताक़त में बदलने का संकल्प लिया.

यूएन शरणार्थी एजेंसी के साझीदार, बोसको द्वारा संचालित केन्द्र केवल एक और कार्यशाला नहीं थी; यह बदलाव का एक क्षण था, जहाँ महिलाओं ने अपनी सुरक्षा की कमान अपने हाथों में ली और अनिश्चितता भरी दुनिया में हिंसा से बचाव के तरीक़े सीखे.

लिंग-आधारित हिंसा (GBV) दुनिया में सबसे व्यापक मानवाधिकार उल्लंघनों में से एक है. लेकिन संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी (UNHCR) का कहना है कि संघर्ष की स्थितियों या सुरक्षा की तलाश में अपने घरों और देशों से भागने को मजबूर महिलाओं व लड़कियों के लिए यह जोखिम और बढ़ जाता है.

सुरक्षा एवं आत्मरक्षा प्रशिक्षण के दौरान एक शरणार्थी महिला से चर्चा.

सजगता ज़रूरी

सत्र की शुरुआत एक सरल लेकिन गहरी सीख से हुई: सजगता ही शक्ति है. इन शरणार्थी महिलाएँ में से अनेक महिलाएँ, अपने समुदायों में नेतृत्व की भूमिकाओं में हैं. उनकी अवलोकन क्षमताएँ परखने के लिए एक दिलचस्प वीडियो दिखाया गया.

इस प्रशिक्षण की संचालक, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा और सुरक्षा विभाग (UNDSS) में राष्ट्रीय सुरक्षा अधिकारी, दीपांजली बख्शी ने कहा, “ध्यान न देने पर हम कितना कुछ नज़रअन्दाज़ कर देते हैं, यह आश्चर्यजनक है.”

प्रशिक्षण में महिलाओं ने अपनी छह इन्द्रियों को तेज़ करने का महत्व सीखा -अपनी मूल-वृत्ति पर ध्यान देना, अपने आस-पास के माहौल को समझना और सम्भावित ख़तरों की पहचान करना सीखा. 

इनके अलावा, तस्वीरों में अन्तर खोजना या आँखों पर पट्टी बाँधकर अपनी जगह की पहचान करना जैसी गतिविधियों के ज़रिए, महिलाओं ने महसूस किया कि कुछ क्षणों की सतर्कता सुरक्षा व ख़तरे के बीच का अन्तर समझाकर मददगार साबित हो सकती है.

आपबीतियों की शक्ति

महिलाओं ने अन्य शरणार्थी महिलाओं के साथ, सहनसक्षमता की अपनी कहानियाँ भी साझा कीं.

भारत में UNHCR के सह-सुरक्षा अधिकारी सेलिन मैथ्यूज़ का कहना है, “एक-दूसरे के अनुभवों से सीखने से महिलाओं का सशक्तिकरण होता है. महिलाओं की सक्रिय भागेदारी और उनके दैनिक जीवन की चुनौतियों के प्रति उनके संघर्ष की आपबीतियों को सुनना, प्रेरणादायक अनुभव था.”

इन दास्तानों को उद्देश्यपूर्ण तरीक़े से साझा किया गया, जिससे वो व्यावहारिक शिक्षा की नींव बन गईं. समूह ने ख़तरों से बचने, विवादों को शान्त करने और ख़तरों की जवाबी कारर्वाई सम्बन्धी रणनीतियों पर भी चर्चा की.

कार्याशाला में भाग लेने वाली एमी आंग ने बताया, “उनके साहस ने हमें याद दिलाया कि डर को हराया जा सकता है, और हम अपनी सोच से अधिक मज़बूत हैं.

कार्यक्रम के हल्के-फुल्के क्षणों में कमरे में तब ठहाके गूंज उठे, जब एक प्रतिभागी ने असहज स्थिति से बचने के लिए भाषा नहीं समझने का बहाना बनाया.

सुरक्षा के लिए व्यावहारिक उपाय

यह प्रशिक्षण सत्र, चर्चा और अनुभव साझा करने से आगे बढ़कर, व्यावहारिक उपायों और तकनीकों पर केन्द्रित हो गया. यह कार्रवाई की ओर बढ़ा, जहाँ चाभी या पैन जैसी दैनिक चीज़ों का प्रयोग करके आत्मरक्षा की तकनीकें सिखाई गईं. लेकिन साथ ही दीपांजली ने प्रतिभागियों को याद दिलाया, “लड़ाई से बचना सबसे अच्छा बचाव है.”

लेकिन अगर बचने का विकल्प नहीं हो, तो हमलावर के शरीर के कमज़ोर बिन्दुओं पर हमला करने का तरीक़ा भी सिखाया गया. वास्तविकता के नज़दीक हालात वाले सत्र में महिलाओं ने सीखा कि डर के पलों में भी वे सोच-समझकर क़दम उठा सकती हैं.

सत्र में साइबर अपराध जैसे आधुनिक ख़तरों पर भी चर्चा की गई, जो विशेष रूप से महिलाओं और लड़कियों को अधिक प्रभावित करते हैं. प्रतिभागियों ने डिजिटल सुरक्षा के उपाय सीखे और एक-दूसरे के साथ ऑनलाइन सुरक्षित रहने के सुझाव साझा किए.

भारत में UNHCR ने, अपने साझीदार, BOSCO के साथ मिलकर, शरणार्थी महिलाओं को सुरक्षित रहने के ग़ुर सिखाने के लिए, कार्यशालाएँ आयोजित की

साहसी समुदाय का निर्माण

इस प्रशिक्षण का मक़सद केवल व्यक्तिगत सुरक्षा ही नहीं था – बल्कि महिला मज़बूती की ऐसी लहर पैदा करना भी था जो पूरे समुदाय में फैल सके.

हर महिला नई कौशल और ताज़गी भरे आत्मविश्वास के साथ वापस लौटी – इस तैयारी के साथ कि उन्होंने जो कुछ सीखा है, उसे अपने परिवार और समुदाय के साथ साझा करें.

इस आयोजन ने गहन मुद्दों पर चर्चा का अवसर भी प्रदान किया, जैसे सहमति की परिभाषा और दबाव की स्थिति में पालन करना. 

दीपांजली ने बताया कि “जीवित रहने के लिए हाँ कहना सहमति नहीं है. यह कई प्रतिभागियों के लिए बेहद मुक्तिदायक विचार था.

रुकिया के शब्द पूरे सत्र में गूंजते रहे, वहीं एमी ने एक आशावादी दृष्टिकोण जोड़ा: कोई भी बुरा अनुभव हमें घर के अन्दर रहने और अपने परिवार के पुरुष सदस्यों पर निर्भर रहने के लिए मजबूर नहीं कर सकता. हमें हमेशा स्वतंत्र रहना चाहिए.”

लिंग-आधारित हिंसा (GBV) की रोकथाम और प्रतिक्रिया के लिए शुरुआती एवं प्रभावी उपाय, जीवनरक्षक व परिवर्तनकारी होते हैं. 

दुनिया भर में ये कार्यक्रम, विस्थापित और देशविहीन महिलाओं एवं लड़कियों के साथ-साथ, उनके मेज़बान समुदायों के जीवन पर भी महत्वपूर्ण प्रभाव डाल रहे हैं.

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