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महिला गरिमा: भारत में यूएनडीपी की नवीन पहल, देखभाल सेवाओं तक निडर पहुँच

महिला गरिमा: भारत में यूएनडीपी की नवीन पहल, देखभाल सेवाओं तक निडर पहुँच

नूर शेखावत को अस्पतालों से डर लगता है. एक ट्रांसमहिला एवं कार्यकर्ता के तौर पर वो जानती हैं कि उन्हें अस्पतालों में किस तरह के अपमान से गुज़रना पड़ता है. लोगों का उन्हें घूरना, उनके बारे में फुसफुसाना, उनका मज़ाक बनाना या फिर उनसे डरना.

नूर कहती हैं, “जब आप दूसरों से अलग दिखते हैं तो चिकित्सा देखभाल हासिल करना एक बड़ी चुनौती बन जाती है. इसके उपर अगर आपका मज़ाक बनना शुरू हो जाए तो ऐसे में टांसजैंडर लोग तो उससे दूर रहना पसन्द करेंगे और इसकी वजह से उनका इलाज होना सम्भव नहीं होगा.”

ट्रांसजैंडर व्यक्तियों का जीवन अथक संघर्ष से युक्त होता है. वे दुनिया भर में सबसे अधिक हाशिए पर रहने वाले समुदायों में से एक हैं.

हर जगह उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ता है. विद्यालयों में, कार्यस्थलों में, क्लीनिकों में. होमोफ़ोबिया और ट्रांसफ़ोबिया की जड़ें बहुत गहरी हैं. 

इनमें से बहुत से लोग निर्धनता का जीवन जीने के लिए मजबूर होते हैं. बहुत से लोगों को हिंसा का सामना करना पड़ता है. स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच कठिन होती है. 

पूर्वाग्रहों व कलंक से दम घुटने लगता है. इससे वो एचआईवी/एड्स जैसी जानलेवा स्थितियों के लिए भी इलाज करवाने से हिचकिचाते हैं. 

नूर शेखावत बताती हैं, ”भेदभाव एक रोज़मर्रा का संघर्ष है. लोग एक ट्रांसजेंडर महिला को, महिला के रूप में स्वीकार नहीं करते. वो हमें भद्दे नामों से बुलाते हैं. अनेक लोग उपहास के डर से अपनी एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (ART)  लेने के लिए अस्पतालों में नहीं जाते हैं.”

वो चिकित्सा देखभाल पाए बिना बिना, ख़ामोशी से पीड़ा सहते रहते हैं. उनके लिए बहुत कम औपचारिक रोज़गार मौजूद होते हैं. इसलिए उनमें से बहुत लोग, जीवित रहने के लिए यौनकर्मी बनने के लिए मजबूर हो जाते हैं. इससे उन्हें यौन संचारित संक्रमणों का ख़तरा बढ़ जाता है.

नवीन पहल

लेकिन इस स्थिति में बदलाव आने लगा है. राजस्थान के जयपुर शहर में, यूएनडीपी की एक नई पहल ट्रांसजैंडर व्यक्तियों के लिए उम्मीद की किरण बनकर आई है. 

यूएनडीपी ने, राजस्थान प्रदेश एड्स नियंत्रण सोसाइटी के सहयोग और स्थानीय कार्यकर्ताओं के नेतृत्व में, जयपुर में एक क़ानूनी सहायता क्लीनिक खोला है. 

यह क्लीनिक, ट्रांसजैंडर व्यक्तियों को क़ानूनी सहायता देता है और अन्य कई तरह की सेवाएँ प्रदान करता है. एचआईवी से पीड़ित लोगों को इसके ज़रिए उपचार मुहैया करवाया जाता है. साथ ही, जागरूकता बढ़ाने में भी मदद की जाती है. 

यूएनडीपी की यह पहल, बहुत से ट्रांसजैंडर व्यक्तियों के लिए, एक जीवन रेखा के समान है.

नूर कहती हैं, “यह पहली बार है जब मैंने ऐसा कुछ देखा है. यह हमें गरिमा देता है. थोड़ी उम्मीद भी. जीवन क्या हो सकता है इसकी एक छोटी सी झलक…”

16 दिनों की सक्रियता

लिंग आधारित हिंसा के ख़िलाफ़ 16 दिनों की सक्रियता एक वैश्विक अभियान है जो दुनिया भर में महिलाओं एवं लड़कियों को हिंसा व असमानता से निपटने की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डालता है. 

इसके तहत, यूएनडीपी का #WhenWomenHaveAccess नामक अभियान शुरू किया गया, जिसका उद्देश्य उन महिलाओं के जीवन और आजीविका में परिवर्तनकारी प्रभाव लाना है – जो पूरी तरह हाशिए पर धकेले हुए हैं, जैसेकि ट्रांसजैंडर महिलाएँ, छोटे धारक महिला किसान, आदिवासी महिलाएँ, और महिला अपशिष्ट श्रमिक.  

नूर की कहानी बाधाओं को ख़त्म करने का एक सशक्त उदाहरण है. स्वास्थ्य सेवा एक अधिकार है. गरिमा एक अधिकार है. उन्हें हासिल करने के लिए किसी भी व्यक्ति को इतना कठिन संघर्ष नहीं करना चाहिए. 

काम अभी ख़त्म नहीं हुआ है. लेकिन आगे बढ़ने वाला हर क़दम, न्याय को और क़रीब लाता है. 

नूर के लिए, उनके जैसे हज़ारों लोगों के लिए, एक ऐसी दुनिया का निर्माण करना ज़रूरी है, जो हर तरह से न्यायपूर्ण एवं बेहतर हो.

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