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मरुस्थलीकरण क्या है? इस विनाशकारी प्रवृत्ति को उलटना सम्भव है

मरुस्थलीकरण क्या है? इस विनाशकारी प्रवृत्ति को उलटना सम्भव है

दुनियाभर के देश, मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र कन्वेन्शन (UNCCD) में हिस्सा लेने के लिए,2 दिसम्बर को रियाध में एकत्र होंगे. यहाँ भूमि क्षरण को पुनर्बहाली में बदलने के उपायों व प्रयासों पर चर्चा होगी.

पृथ्वी पर जीवन के लिए ज़रूरी उत्पादक भूमि की रक्षा क्यों करना ज़रूरी है, इससे जुड़ी मरुस्थलीकरण सम्बन्धी जानकारी नीचे दी गई हैं. इससे स्पष्ट होता है कि हमें अपने ग्रह के साथ ग़लत बर्ताव करना तुरन्त बन्द करना होगा.

भूमि के बिना जीवन सम्भव नहीं

सभी जानते हैं कि स्वस्थ भूमि के बिना जीवन सम्भव नहीं है. इससे मानवता को भोजन मिलता है, कपड़े एवं आश्रय मिलता है.

ब्राज़ील के एमेज़ॉन में आदिवासी समुदाय का एक सदस्य, भूमि पर जंगलों की पुनर्बहाली के प्रयास कर रहा है.

© UNEP/Florian Fussstetter

यह रोज़गार का ज़रिया है, आजीविकाएँ बरक़रार रखने में सहायक है और स्थानीय, राष्ट्रीय एवं वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं का आधार है. इससे जलवायु नियंत्रण एवं जैव विविधता बनाए रखने में मदद मिलती है.

लेकिन जीवन के लिए इसके महत्व के बावजूद, दुनिया की 40 प्रतिशत भूमि का क्षरण हो चुका है, जिससे लगभग 3.2 अरब लोग प्रभावित हुए हैं; यानि वैश्विक जनसंख्या का लगभग आधा भाग.

हैती में वनों की कटाई से लेकर साहेल में चाड झील के धीरे-धीरे लुप्त होने और पूर्वी योरोप के जॉर्जिया में उत्पादक भूमि के सूखने तक, भूमि क्षरण से दुनिया के सभी हिस्से प्रभावित हो रहे हैं.

यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि अगर हमारी भूमि स्वस्थ नहीं रहेगी तो हमारा भविष्य ख़तरे में पड़ जाएगा.

बंजर भूमि

मरुस्थलीकरण, वो प्रक्रिया है जिससे आम तौर पर शुष्क क्षेत्रों में भूमि का क्षरण होता है. मरुस्थलीकरण के कारणों में जलवायु परिवर्तन और अत्यधिक खेती या वनों की कटाई जैसी मानवीय गतिविधियाँ शामिल हैं.

हर साल 10 करोड़ हैक्टेयर (10 लाख वर्ग किलोमीटर), यानि मिस्र जैसे देश के आकार की स्वस्थ और उत्पादक भूमि नष्ट हो जाती है.

इन क्षेत्रों में स्थित भूमि की मिट्टी, जिसे बनने में अक्सर सैकड़ों साल लग जाते हैं, चरम मौसम की घटनाओं के कारण घटती जा रही है.सूखे की मार लगातार बढ़ती जा रही है. एक अनुमान के अनुसार, 2050 तक दुनिया में चार में से तीन व्यक्तियों को, पानी की किल्लत का सामना करना पड़ेगा.

जलवायु परिवर्तन के कारण हो रही तापमान वृद्धि से, सूखे और बाढ़ जैसी चरम मौसम की घटनाओं में वृद्धि हो रही है, जिससे भूमि को उत्पादक बनाए रखने की चुनौती बढ़ गई है.

भूमि क्षरण एवं जलवायु

इस बात के स्पष्ट प्रमाण हैं कि भूमि क्षरण का, जलवायु परिवर्तन जैसी व्यापक पर्यावरणीय चुनौतियों से सीधा सम्बन्ध है.

रेगिस्तान में खड़ा एक आदमी.

© World Bank/Andrea Borgarello

भूमि पारिस्थितिकी तंत्र, जलवायु परिवर्तन तेज़ करने वाली मानवीय CO2 उत्सर्जन का एक तिहाई भाग अवशोषित करने में मददगार साबित होते हैं. लेकिन, ख़राब भूमि प्रबंधन से यह क्षमता प्रभावित होती है, जिससे इन हानिकारक गैसों को घटाने के प्रयास बेक़ार हो जाते हैं.

तेज़ी से बढ़ रही वनों की कटाई से भी मरुस्थलीकरण बढ़ता है. फिलहाल विश्व भर में केवल 60 प्रतिशत जंगल बचे हुए हैं, जो संयुक्त राष्ट्र के “75 प्रतिशत के सुरक्षित लक्ष्य” से काफ़ी कम है.

उचित क़दम उठाने की ज़रूरत 

अच्छी ख़बर यह है कि मानव जाति के पास भूमि की पुनर्बहाली व क्षरण को उलटने की जानकारी व क्षमता मौजूद है.

विनाशकारी सूखे और बाढ़ के प्रभावों से निपटने के लिए, मज़बूत अर्थव्यवस्थाओं एवं सहनसक्षम समुदायों का विकास करना आवश्यक है.

मैक्सिको का एक समुदाय एकजुट होकर अपनी भूमि में सुधार लाने के प्रयास कर रहा है.

© UNCCD/Juan Pablo Zamora

अहम बात यह है कि भूमि पर निर्भर लोगों को, निर्णयात्मक भूमिकाएँ निभाने में सबसे आगे रखना चाहिए.

UNCCD का कहना है कि हालात में बड़ा बदलाव लाने के लिए, 2030 तक 1.5 अरब हैक्टेयर बंजर भूमि को बहाल करना ज़रूरी होगा. और यह काम पहले से ही चल रहा है – बुर्किना फ़ासो में किसान नई तकनीकें अपना रहे हैं, उज़्बेकिस्तान में पर्यावरणविद, नमक व धूल उत्सर्जन ख़त्म करने के लिए पेड़ लगा रहे हैं और फ़िलीपींस की राजधानी मनीला में कार्यकर्ता, प्राकृतिक अवरोधों की बहाली करके चरम मौसम से बचाव के क़दम उठा रहे हैं.

रियाध से उम्मीदें 

नीति निर्माता, विशेषज्ञ, निजी एवं नागरिक समाज के साथ-साथ युवजन, रियाध में अनगिनत लक्ष्यों के साथ एकजुट हो रहे हैं:      

  • 2030 व उसके बाद भी, क्षरण हुई भूमि की बहाली के प्रयासों में तेज़ी लाना
  • सूखे, रेत और धूल भरी आँधियों की बढ़ती घटनाओं के प्रति सहनसक्षमता बढ़ाना
  • मिट्टी की उत्पादकता बहाल करना और प्रकृति-अनुकूल खाद्य उत्पादन में वृद्धि
  • भूमि अधिकारों की सुरक्षा और स्थाई भूमि प्रबंधन के लिए समता को बढ़ावा देना
  • यह सुनिश्चित करना कि भूमि, जलवायु और जैव विविधता समाधान प्रदान करती रहे
  • युवजन के लिए भूमि-आधारित सभ्य रोज़गार समेत आर्थिक अवसरों का निर्माण

संयुक्त राष्ट्र और मरुस्थलीकरण से जुड़े कुछ अहम तथ्य:·      

तीन दशक पहले, 1994 में, 196 देशों और योरोपीय संघ ने, मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन यानि UNCCD पर हस्ताक्षर किए थे.

  • तीन दशक पहले, 1994 में, 196 देशों और योरोपीय संघ ने, मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन यानि UNCCD पर हस्ताक्षर किए थे.
  • यूएन जलवायु सम्मेलन यानि कॉप, UNCCD की मुख्य निर्णयात्मक निकाई है.
  • UNCCD, भूमि की पुनर्बहाली के लिए वैश्विक मंच है, जहाँ सरकारें, व्यवसाय और नागरिक समाज, चुनौतियों पर चर्चा करने तथा भूमि के लिए एक स्थाई भविष्य का ख़ाका तैयार करने के लिए एकजुट होते हैं.
  • कॉप की 16वीं बैठक (जिसे COP16 के नाम से भी जाना जाता है) 2 से 13 दिसम्बर तक सऊदी अरब के रियाध शहर में आयोजित की जा रही है.
  • UNCCD तीन “रियो सम्मेलनों” में से एक है. इसमें जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ़ेमवर्क कन्वेंशन (UNFCCC) और जैविक विविधता सम्मेलन (CBD) शामिल हैं. ये ब्राज़ील के रियो डी जनेरियो में आयोजित ऐतिहासिक 1992 पृथ्वी शिखर सम्मेलन के परिणामस्वरूप अस्तित्व में आए थे.

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