विश्व

भारत में टीबी उन्मूलन के लिए अभियान तेज़

भारत में टीबी उन्मूलन के लिए अभियान तेज़

दिसम्बर 2024 में आरम्भ हुए इस टीबी उन्मूलन अभियान के तहत, देश भर में मौजूद, एक लाख 60 हज़ार से अधिक आयुष्मान आरोग्य मंदिरों (स्वास्थ्य एवं कल्याण केन्द्रों) समेत, मौजूदा स्वास्थ्य बुनियादी ढाँचे का लाभ उठाकर, टीबी सेवाओं को सम्भावित मरीज़ों के क़रीब पहुँचाया जाएगा. 

अरुणाचल प्रदेश का कुरुंग कुमेय ज़िला इस अभियान के लिए चुने गए ज़िलों में से एक है.

राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम (NTEP) के तहत निदान उपायों तक बेहतर पहुँच, उपचार में देरी घटाने, पोषण से जुड़ी ज़रूरी चीज़ें पहुँचाने तथा रोगी के सम्पर्क में आने वाले लोगों के लिए निवारक उपचार जैसी रणनीतियाँ अपनाई गईं. इन प्रयासों से, वर्ष 2023 से भारत में टीबी में ख़ासी कमी आई. 

2015 में तपेदिक के रोगियों की संख्या प्रति 1 लाख लोगों पर 237 से घटकर, 2023 में 195 प्रति 1 लाख हो गई, यानि 17.7% की कमी. 

इसी अवधि में टीबी से जुड़ी मौतें भी औसतन एक लाख पर 28 से कम होकर 22 प्रति एक लाख हो गई, यानि 21.4% की गिरावट.

टीबी की बीमारी के उन्मूलन के लिए भारत में 100 दिनों का अभियान शुरू किया गया है.

© WHO India/Sanchita Sharma

चुनौतियाँ अनेक

अरुणाचल प्रदेश के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक थी – दुर्गम इलाक़ों व दूर-दराज़ के क्षेत्रों में बिखरी आदिवासी आबादी तक पहुँच बनाना. 

इन लोगों तक पहुँचने के लिए प्रदेश ने बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाया. इसके तहत, मामलों की अधिसूचना के लिए निजी क्षेत्र की मदद से सक्रिय मामले की खोज, उपचार उपायों का पालन सुनिश्चित करना और इससे जुड़े पूर्वाग्रहों को दूर करने के लिए सामुदायिक जुड़ाव, पोषण आहार का वितरण तथा दूरदराज़ के इलाक़ों व हाशिए पर रहने वाले समुदायों की स्क्रीनिंग शामिल है.

ईटानगर में इटाफोर्ट स्वास्थ्य केन्द्र के आसपास के शहरी इलाक़ों के लिए आशा (सामुदायिक स्वास्थ्य स्वयंसेवक) सुविधा प्रदाता किचिमुनी बताती हैं, “शहरी क्षेत्रों में अब भी इससे जुड़े पूर्वाग्रह मौजूद हैं, और यहाँ तक ​​कि जो लोग लगातार खाँसते हैं वे भी इसके परीक्षण के लिए बलगम का नमूना नहीं देना चाहते हैं.”

“हम घर-घर जाकर लोगों को समझाते हैं कि यह कोई ख़राब बीमारी नहीं है, इलाज मुफ़्त है और अगर आप दवा लेना जारी रखेंगे तो पूरी तरह से ठीक हो सकते हैं.” 

प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग ने, अपने विकास भागीदारों के साथ मिलकर, आदिवासी लोगों के बीच टीबी उन्मूलन की पहल को मज़बूत करने के लिए कई क़दम उठाए हैं. 

ईटानगर में शहरी स्वास्थ्य केन्द्र इटाफोर्ट में तपेदिक सेवाएँ मज़बूत करने के लिए आँकड़ों की समीक्षा करते हुए भारत में डब्ल्यूएचओ के एक तकनीकी विशेषज्ञ.

© WHO India/Sanchita Sharma

इनमें आदिवासी समुदायों को मज़बूत बनाना, उनका सहयोग हासिल करना, स्थानीय प्रशासन के साथ जुड़ना, एकीकृत सेवाएँ तथा सह-रुग्णताओं को समझते हुए रोगियों का इलाज करना शामिल है. 

सकारात्मक परिणाम

इन्हीं उपायों का नतीजा है कि कोविड महामारी के बाद भी टीबी के मामलों की जानकारी की दर, केन्द्रीय तपेदिक विभाग द्वारा निर्धारित लक्ष्य से 75% से ऊपर बनी हुई है. साथ ही, 80% से अधिक लोग, टीबी का उपचार पूरा करने में सफल हुए हैं.

जागरूकता बढ़ने से लोग ख़ुद आगे बढ़कर मामलों की जानकारी देने लगे लगे हैं. 

भारत में डब्ल्यूएचओ के प्रतिनिधि डॉक्टर रॉड्रिको एच ऑफ़्रिन, रोकोम गाम्नो के साथ, जिन्होंने नवम्बर में एक्स्ट्रापल्मनरी ट्यूबरकुलोसिस के लिए अपने छह महीने के इलाज के दो महीने पूरे किए.

© WHO India/Sanchita Sharma

भारत में WHO के प्रतिनिधि डॉक्टर रॉड्रिको एच ऑफ़्रिन का कहना है, “समुदाय को लगातार इलाज व देखभाल प्रदान करने के लिए, टीबी, गैर-संचारी रोग प्रबन्धन, अल्पपोषण और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को एकीकृत करना होगा. जिस प्रकार मधुमेह के रोगियों को टीबी का अधिक जोखिम रहता है, उसी तरह टीबी से पीड़ित लोगों को मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का ख़तरा भी अधिक रहता है.”

“हमें विशेष रूप से डिजिटल रूप से जागरूक युवा आबादी को गुमनाम परामर्श सेवाएँ प्रदान करने के लिए TeleMANAS जैसे डिजिटल मंचों का लाभ उठाना चाहिए. ख़ासतौर पर इसलिए भी क्योंकि इन्हें तम्बाकू, शराब व नशीले पदार्थों के दुरुपयोग का भी ख़तरा रहता है.”

WHO भारत में टीबी की बीमारी के पूर्ण उन्मूलन के लिए कार्रवाई में तेज़ी लाने हेतु, भारत के 10 प्रदेशों में सरकार को ज़िला स्तर पर तकनीकी एवं ज़मीनी सहायता प्रदान कर रहा है.

मामलों की गहन खोज, उपचार शुरू करने में देरी न करना तथा तपेदिक की दवाओं की निर्बाध आपूर्ति, शहरी स्वास्थ्य केन्द्र इटाफोर्ट में स्थित तपेदिक इकाई की प्राथमिकता है.

© WHO India/Sanchita Sharma

Source link

Most Popular

To Top