बहरीन में मोती व क़ीमती नग़ों के संस्थान (DANAT) के लिए मोती ग़ोताख़ोर और क्षेत्रीय शोधकर्ता मोहम्मद अलसलाइस का मानना है कि इस खाड़ी देश की मोती संग्रहण विरासत, केवल इतिहास का एक अध्याय नहीं है – बल्कि यह इसकी सांस्कृतिक पहचान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.
मोहम्मद अलसलाइस ने बहरीन की राजधानी मनामा में यूएन न्यूज़ के साथ एक ख़ास बातचीत में बताया, “मैं हमेशा कहता हूँ: बहरीन के लोगों के ख़ून में ही मोती ग़ोताख़ोरी बसती है. जो परिवार अरब सागर और ईरानी तट से बहरीन आए थे, वो लगभग सभी ग़ोताखोर थे.”
मोहम्मद अलसलाइस इस प्राचीन परम्परा को संरक्षित और पुनर्जीवित करने के प्रति बेहद उत्साहित हैं. वो बताते हैं कि खाड़ी देश के बहुत से परिवारों में कोई न कोई सदस्य ऐसा होता था, जो या तो ख़ुद मोती ग़ोताख़ोर था या मोती उद्योग से जुड़ा था.

फ़ारस की खाड़ी में मोती संग्रहण के ज़रिए हज़ारों वर्षों तक बहरीन की अर्थव्यवस्था पनपी. लेकिन 1930 के दशक में जापान ने कृत्रिम मोती (Cultured Pearls) बनाने की कला में महारत हासिल की, जिसने 20वीं सदी में समृद्धि की चोटी पर पहुँचे इस उद्योग को, विनाशकारी गिरावट की ओर धकेल दिया.
बहरीन में मोती संग्रहण की परम्परा
मोहम्मद अलसलाइस कहते हैं ,”बहरीन की अधिकांश बहरीनी परम्पराएँ, मोती ग़ोताखोरी उद्योग से जुड़ी हुई हैं.
उदाहरण के लिए, मोती ग़ोताख़ोरी के गीत. मोती ग़ोताख़ोरी की लोककथाएँ पीढ़ियों से चली आ रही हैं. हम आज भी वही गीत गाते हैं, जो पुराने ज़माने में नावों पर मनोबल बढ़ाने के लिए गाए जाते थे.”
दशकों तक ग़ोताख़ोरी करने वाले अदनान अली जुवीद, तीन साल पहले ही सेवानिवृत्त हुए हैं.

उन्होंने बताया, “मोती संग्रहण का पेशा, आजीविका होने के अलावा, शरीर के लिए भी लाभकारी है. बहरीन में ग़ोताख़ोरी के लिए विशेष क्षेत्र हैं.”
“पुरानें ज़माने में हमारे पूर्वज, साल के विशेष दिनों में विशिष्ट समय पर ग़ोताख़ोरी के लिए जाते थे, जो आमतौर पर अप्रैल से जुलाई के बीच का समय होता था. अब, खोज-तकनीकों में प्रगति के कारण हम वर्ष के किसी भी समय ग़ोता लगा सकते हैं. हमें यह पेशा बहुत प्रिय है, और हमारे बच्चे इसे आगे बढ़ाएंगे.”
“मोती पथ” (Pearling Path) के नाम से मशहूर, बहरीन के ऐतिहासिक मोती संग्रहण स्थल को संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है.
यह स्थल मोती संग्रहण की परम्परा और सहस्राब्दियों तक इससे उत्पन्न धन से खाड़ी क्षेत्र में समृद्धि का प्रमाण है.
UNESCO के अनुसार, इस क्षेत्र में, मुरहर्राक़ शहर में 17 इमारतें, तीन समुद्र तटीय सीप बिस्तर, समुद्र तट का एक हिस्सा और मुरहर्राक़ द्वीप के दक्षिणी सिरे पर स्थित क़ल’आत बु माहिर क़िला शामिल है, जहाँ से नावें सीप बिस्तरों के लिए रवाना होती थीं.

इस क्षेत्र में दुकानें, गोदाम, एक मस्जिद और समृद्ध व्यापारियों के घर स्थित हैं.
यूनेस्को के अनुसार, यह स्थान मोती संस्कृति की परम्परा और खाड़ी अर्थव्यवस्था के उस दौर में उत्पन्न धन का एकमात्र सम्पूर्ण उदाहरण है, जब दूसरी शताब्दी से लेकर, जापान द्वारा कृत्रिम मोतियों विकसित करने तक, इस व्यापार का वर्चस्व था.
यह स्थल, समुद्री संसाधनों के पारम्परिक उपयोग और पर्यावरण के साथ मानव के सह-अस्तित्व का एक उत्कृष्ट उदाहरण भी प्रस्तुत करता है. इससे द्वीप की सामाजिक व्यवस्था को सांस्कृतिक पहचान व अर्थव्यवस्था को आकार मिला.
मोहम्मद अलसलाइस याद करते हैं, “मैं जब पर्यटकों को लेकर वहाँ जाता हूँ तो उनसे हमेशा पूछता हूँ कि वो यह मोती किसके लिए लेकर जाना चाहेंगे. जब उनका जवाब होता है, ‘मेरी माँ के लिए,’ तो वहाँ से मिले मोती का आकार, अचानक बहुत बड़ा लगने लगता है.”
वह बताते हैं, “मैं उन लोगों में से हूँ, जो अपने माता-पिता या परिवार से मार्गदर्शन मिले बिना ही मोती ग़ोताख़ोरी के प्यार में पड़ गए. हमसे पहले की पीढ़ी को कम उम्र में ग़ोताख़ोरी की अनुमति नहीं थी, क्योंकि तेल की खोज के बाद सभी रोज़गार, तेल उद्योग में स्थानान्तरित हो गए थे.”

मोती संग्रहण को मिली नई ज़िन्दगी
मोहम्मद अलसलाइस के अनुसार, 2017 में जब बहरीन के अधिकारियों ने मोती ग़ोताख़ोरी के लाइसेंस जारी करने शुरू किए, तो कई ऐसे लोग इस परम्परा से जुड़े, जिन्हें इसका पहले कोई ज्ञान नहीं था.
अब, सात वर्षों के बाद, बहरीन के बहुत से लोग इस विरासत से फिर जुड़ गए हैं.
“हमने, अपनी ख़ुद की पहल के साथ, एक नई प्रणाली बनाई. हमने ग़ोता ख़ोरी की तकनीक और मोतियों की बिक्री का तरीक़ा भी बदला है. बहुत से लोग, नई पीढ़ी द्वारा विकसित इस नई प्रणाली से प्रेरित होकर मोती ग़ोताख़ोरी की ओर आए.
अब 1,000 से अधिक ग़ोताख़ोर पंजीकृत हैं और नियमित रूप से मोती ग़ोताख़ोरी करते हैं, जिससे उन्हें आमदनी हो रही है.”
आधुनिक तरीक़े से मोती संग्रहण
1970 के दशक से ग़ोताख़ोरी कर रहे ख़ालिद सलमान बताते हैं कि वैसे तो ग़ोताख़ोरी आज भी जारी है, लेकिन पुराने तरीक़े बदल दिए गए हैं.
“आजकल ग़ोताख़ोर, तकनीकी प्रगति के कारण लम्बे समय तक पानी के नीचे रहकर, विशाल मात्रा में मोती निकालने में सक्षम हैं. पहले, एक ग़ोताख़ोर पानी के नीचे चार मिनट तक रहता था, लेकिन अब स्कूबा ग़ोताख़ोर एक घंटे या उससे भी अधिक समय तक पानी के नीचे रह सकते हैं.”

मोती की कम क़ीमतों के बारे में सलमान कहते हैं, “कई लोग अपने निकाले गए मोती नहीं बेचते; वे क़ीमतें बढ़ने तक उन्हें संग्रहित करते हैं, और ऐसा समय आने पर बहरीन के व्यापारियों को बेचते हैं.”
कुछ मोतियों का उपयोग स्थानीय उद्योगों में किया जाता है, जबकि अन्य को बहरीन के बाहर बेच दिया किया जाता है.
वो यह भी बताते हैं कि मोतियों के तीन प्रकार होते हैं: कृत्रिम (synthetic), संवर्धित (cultured), और प्राकृतिक (natural). उन्होंने बताया, “अनुभव और आधुनिक उपकरणों से इन प्रकारों के बीच अन्तर करना सम्भव होता है.”
जहाज़ निर्माण पर प्रभाव
मोती उद्योग के पतन ने बहरीन के जहाज़ निर्माण उद्योग को भी प्रभावित किया है.
35 वर्षों से अधिक समय से लकड़ी के जहाज़ और नावें बनाने वाले अब्दुल्ला कहते हैं: “बहरीन अपने जहाज़ निर्माण उद्योग के लिए प्रसिद्ध है. यह मोती संग्रहण का एक अभिन्न हिस्सा था.”
“जहाज़ों के कई प्रकार होते हैं, जो डिज़ाइन में भिन्न होते हैं. लेकिन अब मांग घटने के कारण मोती संग्रहण के लिए छोटे जहाज़ों का उपयोग किया जाने लगा है.”
जहाज़ निर्माण के लिए लकड़ी, अफ़्रीका और सिंगापुर से आयात की जाती है, और “एक जहाज़ 100 वर्षों से अधिक समय तक चल सकता है.

प्रौद्योगिकी और स्थिरता
मोहम्मद अलसलाइस मानते हैं कि स्कूबा डाइविंग जैसी नई पीढ़ी द्वारा उन्नत तकनीकों के कारण सीप बिस्तरों का क्षरण हो रहा है.
लेकिन वो कहते हैं, “स्कूबा डाइविंग आपको एक सीमित समय तक ही पानी के नीचे रहने देती है – आप डीकम्प्रेशन बीमारी और अन्य जोखिमों के कारण, दिन में केवल तीन बार ही ग़ोता लगा सकते हैं.”
वो भविष्य को लेकर आशान्वित हैं और कहते हैं, “यदि ईश्वर ने मुझे स्वास्थ रखा, तो मैं मोती ग़ोताख़ोरी जारी रखूंगा. इससे मुझे बहुत सन्तुष्टि मिलती है.”
